राजनीतिक विश्लेषक 1998 का जिक्र भी करते हुए कहते हैं कि प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने के बाद उनका चुनाव लड़ना जरूरी है। वो बताते हैं कि 1998 में सोनिया गांधी ने जब पहली बार सक्रिय राजनीति में आना स्वीकार किया था, तब पार्टी ने सत्ता में रहने के लिए किसी अन्य दल के साथ समझौता नहीं किया था जैसे इस बार। मई 1991 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान राजीव गांधी की निःशंस हत्या के बाद उस हत्याकांड की जांच को गठित जैन कमेटी की रिपोर्ट आ चुकी थी। पार्टी को भरोसा था कि राजीव गांधी की हत्या पर आई जैन कमेटी की रिपोर्ट का फायदा उसे जरूर मिलेगा। ऊपर से सोनिया गांधी के भी सक्रिय राजनीति में आने से दिग्गज से आम कांग्रेस नेताओं तक को नई संजीवनी बूटी मिल चुकी थी। लेकिन सोनिया ने चुनाव लड़ना भी मंजूर नहीं किया था। नतीजा यूपी में काग्रेस का खाता तक नहीं खुल पाया। मत प्रतिशत भी दहाई से नीचे पहुंच गया।
गांधी परिवार के एक बार फिर कांग्रेस से जुड़ने पर भले ही दिग्गज कांग्रेसी उत्साह से भरे हुए थे। लेकिन उधर सभी विपक्षी पार्टियों ने चुनाव के लिए कांग्रेस को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया और जैन कमेटी की रिपोर्ट पर भी कांग्रेस को मतदाताओं का साथ नहीं मिला। सही मायने में 12वां लोकसभा चुनाव बीजेपी की ताकत का मुजाहिरा बना। बीजेपी को छोड़ दें तो लगभग सभी पार्टियों के वोट शेयर गिरे। बीएसपी के वोट शेयर जरूर ढाई फीसदी बढ़े लेकिन पार्टी की सीटें घटकर 11 से 05 ही रह गईं।
1998 के लोकसभा चुनावों में मतदाताओं ने भारत के लोकतंत्र की एक नई इबारत लिख दी थी। पहली बार कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी बज चुकी थी और उसे कड़ी टक्कर थर्ट फ्रंट से नहीं बल्कि बीजेपी से मिल रही थी। कोई भी पार्टी कांग्रेस के टक्कर की तभी मानी जा सकती थी जब वो न सिर्फ कांग्रेस से ज्यादा सीटें जीतें बल्कि देश भर में उसका जनाधार हो।
1998- 00- 6.02- 57- 36.49