बता दें कि, आजमगढ़ सीट सपा मुखिया अखिलेश यादव के लिए काफी मायने रखती है। उनकी पार्टी ने वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में दस में से नौ विधानसभा सीटें हासिल की थी। यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में अखिलेश को काफी मदद मिली थी। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जब सपा बसपा को पूरे यूपी में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था उस समय आजमगढ़ सीट सपा के खाते में गयी थी और मुलायम सिंह यादव यहां से सांसद चुने गए थे।
वर्ष 2014 के चुनाव में मुलायम के आजमगढ़ से चुनाव लड़ने का बड़ा कारण थी पार्टी की गुटबंदी।
पार्टी ने पहले बलराम यादव को प्रत्याशी बनाया था, लेकिन बाद में बलराम विरोधी लाबी भारी पड़ी और उनका टिकट काटकर हवलदार यादव को प्रत्याशी बना दिया गया था। अंत में हवलदार का टिकट काटकर मुलायम सिंह यादव को खुद मैदान में उतरना पड़ा था। मुलायम सिंह यादव भाजपा के रमाकांत यादव को हराकर चुनाव जीतने में सफल रहे थे लेकिन हार जीत का अंतर मात्र 70 हजार मतों का था। चुनाव जीतने के बाद मुलायम सिंह आजमगढ़ नहीं आये। वहीं इस चुनाव के बाद से पार्टी में गुटबंदी और बढ़ गयी।
हार जीत का अंतर कम होने के बाद से ही माना जा रहा था कि, मुलायम यहां से चुनाव नहीं लड़ेगे। पार्टी परिवार के किसी अन्य सदस्य को मैदान में उतार सकती है। इससे पार्टी में खामोशी छाई थी। पिछले दिनों रमाकांत यादव के सपा में शामिल होने की चर्चा शुरू हुई तो पार्टी में हलचल बढ़ गयी। अबू आसिम और रमाकांत की मुलाकात फिर प्रो. रामगोपाल के साथ बैठक ने सपा के रमाकांत विरोधियों को सक्रिय कर दिया लेकिन उन्हें तब भी यह भरोसा था कि, अंत में चुनाव कोई अखिलेश यादव के परिवार को ही लड़ेगा।
अब कुछ दिन पूर्व सपाध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा खुद के कन्नौज और मुलायम सिंह के मैनपुरी से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद जिले का सियासी पारा चरम पर पहुंच गया है। सूत्रों की माने तो रमाकांत यादव ने सपा में शामिल होने के लिए टिकट की शर्त रखी है। स्थानीय नेताओं में रमाकांत से दमदार नेता किसी पार्टी के पास नहीं है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि, यदि रमाकांत की वापसी होती है तो उनकों टिकट मिल जाएगा। वहीं टिकट की दावेदारी बलराम यादव भी कर रहे हैं। बलराम यादव पहले भी लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। बलराम ने अब तक ईमानदारी से सपा के लिए काम किया है, जबकि रमाकांत यादव अपने स्वार्थ के लिए लगातार पार्टिंया बदलते रहे हैं। ऐसे में सपाई बलराम का भी दावा काफी मजबूत मान रहे हैं।
इन सब के बीच दो और नाम चर्चा है। वह है जिलाध्यक्ष हवलदार यादव और पूर्व मंत्री दुर्गा प्रसाद यादव। दोनों ही नेता अखिलेश यादव के गुट के माने जाते हैं, जबकि बलराम यादव हमेशा से मुलायम और शिवपाल के साथ रहे। दुर्गा के पास दो चुनाव लड़ने का अनुभव है तो हवलदार यादव को पिछले चुनाव में अखिलेश यादव उम्मीदवार बना चुके हैं और उस समय उनका टिकट यह कहकर काटा गया था कि नेताजी लड़ेगे आगे आपको मौका मिलेगा। ऐसे में इनकी दावेदारी को कमजोर नहीं माना जा रहा है। अहम बात है कि, सपा में आज जितने भी दावेदार है उनके अपने अलग-अलग गुट हैं। सभी हमेशा से एक दूसरे को मात दने में लगे रहे हैं। ऐसे में आने वाला समय राजनीति की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण और दिलचस्प दिख रहा है।