इस बार माघ महीने की संकष्टी चतुर्थी गुरूवार को है जिसके चलते इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। दरअसल, गुरूवार के दिन सकट चौथ का पड़ना काफी शुभ माना जाता है। इस दिन व्रतीजन परिवार की सुख समृद्धि के साथ बच्चों की खुशहाली की कामना करती हैं, ताकि उन पर किसी तरह का कोई संकट न आए।
चंद्रोदय का वक्त
संकष्ठी चतुर्थी चंद्रोदय का शुभ मुहूर्त रात 8.20 बजे है। चंद्रोदय के वक्त चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही यह व्रत पूरा होगा। चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही प्रसाद ग्रहण किया जाना चाहिए। व्रत का पारण भी तभी होना चाहिए।
संकष्ठी चतुर्थी चंद्रोदय का शुभ मुहूर्त रात 8.20 बजे है। चंद्रोदय के वक्त चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही यह व्रत पूरा होगा। चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही प्रसाद ग्रहण किया जाना चाहिए। व्रत का पारण भी तभी होना चाहिए।
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
धर्मग्रंथों में वर्णित कथा के मुताबिक सत्यवादी महाराज हरिश्चंद्र के काल में एक कुम्हार था। एक दफा उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया, पर आवां पका ही नहीं। वह जब भी बर्तन बनाता सभी कच्चे रह जाते थे। इससे तंग आ कर वह एक तांत्रिक के पास गया और संकट निवारण का रास्ता पूछा। तांत्रिक ने बताया संकट से मुक्ति के लिए बलि देनी होगी इस पर उसने तपस्वी ऋषि जिनकी मौत हो चुकी थी, उनके बेटे की बलि दे दी। उस दिन सकट चतुर्थी थी, लेकिन जिस बच्चे की बलि दी गई उसकी मां ने उस दिन व्रत रखा था। सवेरे कुम्हार ने देखा कि वो बच्चा जिंदा है, अच्छा खासा खेल रहा है। इससे डर कर कुम्हार ने राजा के सामने अपना पाप स्वीकार किया। राजा ने वृद्धा से इस चमत्कार का रहस्य पूछा, तो उसने गणेश पूजा के विषय में बताया। उसके बाद से ही राजा ने सकष्ठी चतुर्थी की महिमा को माना और पूरे शहर में पूजा का आदेश दिया।
धर्मग्रंथों में वर्णित कथा के मुताबिक सत्यवादी महाराज हरिश्चंद्र के काल में एक कुम्हार था। एक दफा उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया, पर आवां पका ही नहीं। वह जब भी बर्तन बनाता सभी कच्चे रह जाते थे। इससे तंग आ कर वह एक तांत्रिक के पास गया और संकट निवारण का रास्ता पूछा। तांत्रिक ने बताया संकट से मुक्ति के लिए बलि देनी होगी इस पर उसने तपस्वी ऋषि जिनकी मौत हो चुकी थी, उनके बेटे की बलि दे दी। उस दिन सकट चतुर्थी थी, लेकिन जिस बच्चे की बलि दी गई उसकी मां ने उस दिन व्रत रखा था। सवेरे कुम्हार ने देखा कि वो बच्चा जिंदा है, अच्छा खासा खेल रहा है। इससे डर कर कुम्हार ने राजा के सामने अपना पाप स्वीकार किया। राजा ने वृद्धा से इस चमत्कार का रहस्य पूछा, तो उसने गणेश पूजा के विषय में बताया। उसके बाद से ही राजा ने सकष्ठी चतुर्थी की महिमा को माना और पूरे शहर में पूजा का आदेश दिया।
ऐसे रखें व्रत, करें पूजन
-सुबह सवेरे नहा धोकर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख कर गणेश जी की पूजा करें
– गणेश जी को दुर्वा, पुष्प, रोली, फल सहित मोदक व पंचामृत चढ़ाएं
-सकट चौथ के दिन गणेश को तिल के लड्डू का भोग लगाएं
-संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा सुनें और गणपति जी की आरती करें
-शाम को चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोलें
-सुबह सवेरे नहा धोकर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख कर गणेश जी की पूजा करें
– गणेश जी को दुर्वा, पुष्प, रोली, फल सहित मोदक व पंचामृत चढ़ाएं
-सकट चौथ के दिन गणेश को तिल के लड्डू का भोग लगाएं
-संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा सुनें और गणपति जी की आरती करें
-शाम को चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोलें