विवादित स्थल पर मस्जिद नहीं 15 अक्टूबर, 1991 को स्वयंभू विश्वेश्वर नाथ मंदिर की तरफ से वाराणसी के सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के समक्ष मुकदमा दाखिल किया था। डॉ. रामरंग शर्मा, हरिहर पांडेय और सोमनाथ व्यास ने एफटीसी कोर्ट में याचिका दायर कर नया नए निर्माण और पूजा के अधिकार की मांग की थी। इसमें प्लॉट संख्या 9130 मौजा शहर खास के दो हिस्सों का हवाला दिया गया है। इसी के साथ पुराने ज्ञानवापी मंदिर, तहखाना, चार मंडप, ज्ञान कूप, मूर्तियां व पेड़ पर हिंदुओं के आधिपत्य एवं उत्तरी गेट पर नौबतखाना व मस्जिद के दावे पर सवाल उठाए गए हैं। यह भी दावा किया गया है कि इस्लामिक कानून के अनुसार विवादित स्थल पर मस्जिद नहीं हो सकती। सतयुग से आज तक स्वयंभू ज्योतिलिंग हटाया नहीं जा सकता। वर्ष 1947 की स्थिति में परिवर्तन नहीं किया जाएगा। इस बारे में सिविल जज ने मुकदमा खारिज कर दिया। फैसले से असंतुष्ट प्रतिवादी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी।
वादी का पक्ष प्राचीन मूर्ति स्वयंभू लार्ड विश्वेश्वर के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल जज सीनियर डिविजन (फास्ट ट्रैक कोर्ट) की अदालत में अपील की थी कि काशी विश्वनाथ मंदिर व विवादित ढांचास्थल का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने का निर्देश दिया जाये। दावा किया कि ढांचा के नीचे काशी विश्वनाथ मंदिर के जुड़े पुरातत्व अवशेष हैं। यह भी कहा गया कि मौजा शहर खास स्थित ज्ञानवापी परिसर के 9130, 9131, 9132 रकबा नं. एक बीघा 9 बिस्वा लगभग जमीन है। उक्त जमीन पर मंदिर का अवशेष है। 14वीं शताब्दी के मंदिर में प्रथमतल में ढांचा और भूतल में तहखाना है। इसमें 100 फुट गहरा शिवलिंग है। यह भी कहा कि 100 वर्ष तक 1669 से 1780 तक मंदिर का अस्तित्व ही नहीं रहा।