प्रदोष व्रत जिस दिन त्रयोदशी तिथि होती है उस दिन विशेष के नाम से प्रदोष व्रत कहा जाता है। मसलन सोमवार को सोम प्रदोष, मंगलवार को भौम प्रदोष ऐसे ही शनिवार को त्रयोदशी तिथि पड़ने पर शनि प्रदोष कहा जाता है। सभी प्रदोषों के व्रत का फल अलग-अलग बताया गया है। लेकिन सभी व्रत के मूल में व्रती का कल्याण ही मुख्य होता है। कहा जाता है कि रवि प्रदोष के व्रत से उपासक की आयु में वृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है। सोम प्रदोष से उपासक को अभीष्ट सिद्धि की प्राप्ति होती है। वहीं शनि प्रदोष के व्रत से पुत्र की प्राप्ति होती है। संतान को हर तरह के कष्ट से मुक्ति मिलती है। इस बार शनि प्रदोष एक जून को पड़ रहा है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को रखने से शिवजी प्रसन्न होते हैं और व्रती को सौ गाय दान देने के बराबर फल की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि भगवान ब्रह्माजी ने प्रदोष तिथि पर ही पृथ्वी की उत्पत्ति की थी। ऐसे में जो भी व्यक्ति एक साल प्रदोष व्रत करता है, उसके सभी पापों का अंत होता है। प्रदोष व्रत में शाम के समय पूजा की जाती है। शनिवार को प्रदोष व्रत पड़ने के कारण इस दिन शिवजी की पूजा करने से शनि के बुरे प्रभावों से भी मुक्ति मिलती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष तिथि के दिन भगवान शिव साक्षात शिवलिंग में अवतरित होते हैं।
शनि प्रदोष व्रत करने वाले उपासक ब्रह्मवेला में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करना चाहिए। फिर शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव को बिल्व पत्र, पुष्प, धूप-दीप, भोग चढ़ाने के बाद शिव मंत्र का जप करना चाहिए। मान्यता है कि शाम के समय एक बार फिर से स्नान करके उत्तर की ओर मुख करके महादेव की अर्चना और हनुमान चालीसा का पाठ करना भी लाभप्रद रहता है।
कहा गया है कि भगवान शिव शनि महाराज के गुरु हैं। इसलिए शिव भक्त शनि के कोप से मुक्त रहते हैं। शनि दोष को दूर करने के लिए लोहे की कटोरी में तेल भरकर उसमें अपनी परछाई देखें और यह तेल किसी को दान कर दें। शनि दोष से मुक्ति के लिए यह बहुत ही अचूक उपाय है। साथ ही जल में काले तिल में डालकर भगवान शिव का जलाभिषेक करें। ऐसा करने से आपकी धन संबंधी समस्या भी दूर होगी।