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वाराणसी

अंग्रेजी हटाओ आंदोलन के स्वर्णजयंती वर्ष में निकला समाजवादियों का मार्च

समाजवादियों ने कहा, न्याय पालिका में अंग्रेजी के प्रयोग से फांसी पर चढ़ने वाले को पता नही चल पाता कि कानून किस मामले में सजा दे रहा।

वाराणसीDec 24, 2017 / 08:58 pm

Ajay Chaturvedi

समाजवादियों का अंग्रेजी हटाओ कूच

समाजवादियों का अंग्रेजी हटाओ कूच

वाराणसी. भारतीय भाषा को बचाने की दिशा में काशी हिंदू विश्वविद्यालय सिंह द्वार से संकल्प कूच “अंग्रेजी हटाओ ,भारतीय भाषा लाओ” ऐतिहासिक रत्नाकर पार्क पहुंची। जिसमे सैकड़ो समाजवादी और प्रबुद्धजन सम्मिलित हुए। डॉ राममनोहर लोहिया के अंग्रेजी हटाओ आंदोलन से प्रेरणा लेते हुए प्रबुद्धजन के साथ युवाओ का हुजूम भी संकल्प कूच में सम्मिलित हुआ। सन 1967 से 2017 के बीच एक लंबी अवधि के बाद अंग्रेजी हटाओ आंदोलन के बाद इसे दूसरे आंदोलन के रूप में देखा जा सकता है। अंग्रेजी हटाओ आंदोलन की स्वर्ण जयंती के अवसर पर प्रबुध्दजन काफी चिंतित दिखे। हाथों में नारो की तख्तियां देश मे भारतीय भाषाओं की दुर्गति बया कर रही थीं। संकल्प कूच रत्नाकर पार्क पहुंच कर सभा मे तब्दील हो गया।
समाजवादियों का अंग्रेजी हटाओ कूच
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ समाजवादी चिंतक विजय नारायन ने कहा कि इस ऐतिहासिक पार्क में 1967 के दौरान अंग्रेजी के खिलाफ बगावत वाराणसी में दिखी थी। समाजवादी नेता देवव्रत मजूमदार के नेतृत्व में हजारों की संख्या में युवा आंदोलनरत थे। उस दौर के प्रशासन ने युवाओं पर गोलियां चलाई जिसमे कई लोग घायल हुए थे। आज विदेशी भाषा ने राष्ट्र की उन्नति का रास्ता रोक दिया है। सरकारें भी भारतीय भाषाओं के प्रति बहुत संवेदनशील नही रहीं। विश्व के अनेक राष्ट्रों ने अपनी भाषा को महत्व दिया और प्रगति की लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्र में भाषा की उपेक्षा ने यहां की प्रगति रोक दी। योगेंद्र नारायण शर्मा ने कहा कि भारत की न्याय पालिका में संविधान द्वारा प्रदत्त अंग्रेजी का प्रयोग यह दर्शाता है कि फांसी पर चढ़ने वाले व्यक्ति को भी पता नही चल पाता कि कानून किस मामले पर सजा दे रहा है या इस मामले में कोर्ट ने किस तरह से आरोप तय किए।
 अंग्रेजी हटाओ आंदोलन के स्वर्ण जयंती वर्ष में समाजवादियों की सभा
चौधरी राजेन्द्र ने कहा कि देश मे ऐसी व्यवस्था आई है कि अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों ने शिक्षा का पूर्णतःबाज़ारीकरण कर रखा है। अंग्रेजी पढ़ाने के नाम पर मनमाना फीस वसूली करना इनका ध्येय बन गया है, जिसकी वजह से शिक्षा की गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है। यहां तक कि भारतीय युवाओं को चिकित्सा और इंजीनियरिंग सहित सभी पाठ्यक्रम अंग्रेजी में होने से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। निजी कंपनियां ,सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाए अंग्रेजी को अधिक महत्व दे रही हैं। इसकी बजह से भारतीय भाषाओं में पढ़े युवा अवसरों से वंचित कर दिए जा रहे है, जिनकी अपनी भाषा पर मजबूत पकड़ है। अभूतपूर्व ज्ञान होने के बावजूद अवसरों से बंचित कर दिए जा रहे है।
समाजवादियों का अंग्रेजी हटाओ कूच

इस मौके पर देवव्रत मजमूनदार सहित दिवंगत सभी लोगो को श्रद्धांजलि दी गईं तथा आंदोलन को आगे गति देने एवं अंग्रेजी स्कूलों का विरोध करने की दिशा में रणनीति तथा आगामी 23 मार्च को लोहिया के जन्मदिवस पर एक बड़ा कार्यक्रम निर्धारित किया गया। सभा में डॉ गया सिंह, डॉ बहादुर यादव, चौधरी राजेन्द्र, संजीव सिंह, सलीम शिवालिक, डॉ रामाज्ञा शशिधर, डॉ विश्वास श्रीवास्तव, डॉ प्रभात महान, शिवेंद्र मौर्य, रविन्द्र प्रकाश भारती, विजेंद्र मीणा ने भी विचार रखे। डॉ महेश विक्रम, डॉ स्वाति, डॉ नीता चौबे, डॉ मुनीज़ा खान, पूर्व राज्यमंत्री सुरेंद्र पटेल, कुंवर सुरेश सिंह, श्यामबाबू मौर्य, राजीव मौर्य, चंचल, विनोद टंडन, आशीष मौर्य, अमन यादव, विनय आदि मौजूद रहे। अध्यक्षता विजय नारायन ने की जबकि संचालन अफलातून देसाई ने किया।
 अंग्रेजी हटाओ आंदोलन के स्वर्ण जयंती वर्ष में समाजवादियों की सभा

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