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गुरू पूर्णिमा- जब बनारस की नगरवधू ने स्वामी विवेकानंद को कराया सन्यासी होने का अहसास

locationवाराणसीPublished: Jul 19, 2016 04:00:00 pm

Submitted by:

Ashish Shukla

स्वामी विवेकानंद ने स्वयं किया इस वाकये का जिक्र

swami story

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वाराणसी. दुनियां भर में विश्वगुरु के नाम से विख्यात स्वामी विवेकानंद का नाम भला कौन नहीं जानता। भारत के साथ ही दुनियां भर के कोने-कोने में अपने ज्ञान और उपदेश के लिए जाने जाने वाले स्वामी जी के आज भी दुनियां में अन्नय और असंख्य भक्त हैं। पर क्या आपको पता है कि स्वामी जी खुद इस बात का जिक्र अपने किताब में किए हैं कि ज्ञान कब कहां और किससे प्राप्त हो इसे तय नहीं किया जा सकता। इससे जुड़े एक वाकये को स्वामी जी अपनी किताब में बताते हैं कि कैसे बनारस की एक नगर वधू ने स्वामी जी को सन्यासी होने का अहसास करा दिया था। 

स्वामी विवेकानंद के विश्व धर्मसम्मेलन में दिए भाषण को भारत ही नहीं पूरी दुनियां याद करती है आज भी स्वामी जी का विश्व धर्मसम्मेलन में दिया हुआ भाषण लोगों के लिए ऐतिहासिक है और विवेकानंद जी को पूरी दुनियां याद करती है, वो एक सच्चे सन्यासी थे। पर बनारस की एक नगरवधू (वेश्या) से स्वामी जो को जो सीख मिली वह उन्हे असल सन्यासी होने का अहसास करा गई। और स्वामी जी ने स्वयं इस बात को अपनी किताब के जरिए लोगों से साझा किया। 

यह वाकया उस समय का है जब स्वामी जी शिकागो से स्वदेश लौटे थे उसी दौरान स्वामी जी को जयपुर की रियासत के एक राजा ने अपने यहां आने का न्यौता दिया । लाजमी था कि स्वामी जी मेहमान बनकर राजा के घर पधार रहे थे तो राजा भी स्वामी जी के स्वागत और इंतजाम में किसी तरह की कमी नहीं देखना चाहता था। राजा के लिए यह अवसर मेहमान नवाजी का नहीं बल्कि एक बड़े उत्सव का अवसर था। 




swami ji ऐसे में समारोह के लिए विशेष तौर पर बनारस से एक वैश्या को बुलाया गया जो की उस समय देश भर में अपनी कला और नृत्य के लिए काफी मशहूर थी। स्वामी जी को जब इस बात की जानकारी हुई कि आज इस तरह के समारोह का आयोजन किया गया है तो स्वामी जी बहुत ही कश्मकश में पड़ गए. रात होने पर उन्होंने कार्यक्रम में जाने से मना कर दिया और अपने ही कमरे में बैठे रहे स्वामी जी ने निश्चय कर लिया कि उन्हे कार्यक्रम में नहीं जाना है और वो नही गए ये सोच कर की एक वैश्या के कार्यक्रम में मेरा (सन्यासी) क्या काम.

स्वामी जी के इस फैसले से राजा भी दुखी हुए, पर बाकि मेहमानो के लिए कार्यक्रम जारी रखना था जब बनारस से पधारी वेश्या को इस बात की जानकारी हुई तो उसने भी ठान लिया कि अगर मुझमें भी कला का वरदान होगा तो स्वामी जी को इस कार्यक्रम में पधारने के लिए मजबूर कर दूंगी। उसने भी कमाल कर दिया. उस वैश्या ने समारोह में सूरदास का मधुर भजन गाना शुरू कर दिया स्वामी जी के कानो में जब ये भजन पड़ी तो वो भी अपने कक्ष में न रह सके और वैश्या के समारोह में पहुँच गए, वेश्या को भी अपने इस भाव से ऐसा प्रतीत होने लगा मानो उसने इस समारोह में साक्षात भगवान को प्राप्त कर लिया हो इसी दौरान स्वामी जी ने उसे देखा. उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे, लेकिन उसे देख कर स्वामी जी के मन में कोई भाव न जगा चाहे वो कितनी ही सुंदर क्यों न रही हो। 



swami ji  बनारस की इस नगरवधू के समारोह के दौरान स्वामी जी को पहली बार अपने सन्यासी होने का अहसास हुआ। स्वामी जी ने जी अपने द्वारा लिखी गई पुस्तक में इस वाकये का जिक्र किया और बताया कि जो सच्चा सन्यासी होता है उसे इस बात की परवाह नही होती की वो आम जन में है या वैश्याओ के बीच वो सिर्फ सन्यासी होता है और कुछ नही, इस तरह बनारस की एक वैश्या की वजह से स्वामी जी को सन्यास के सही मायने समझ में आये थे। जिसका जिक्र उन्होने बाद में स्वयं किया था। 
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