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वाराणसी

काशी का वह शिवलिंग जिसके दर्शन मात्र से अश्वमेध यज्ञ और तीर्थ राज प्रयाग में स्नान के बराबर मिलता है पुण्य

इस मंदिर को औरंगजेब की सेना भी नहीं तोड़ पाई, भाग खड़े हुए कारीगर।

वाराणसीAug 13, 2018 / 04:01 pm

Ajay Chaturvedi

तिलभांडेश्वर महादेव

तिलभांडेश्वर महादेव

वाराणसी. काशी शिव की नगरी है। भगवान शंकर ने ही इसे बसाया है। ऐसे में यहां भोले बाबा के अनगिनत शिवलिंग मिलेंगे। हर गली, हर कूचे में एक शिवलिंग है और हर शिवलिंग की अपनी महत्ता है। ऐसा नहीं कि काशी में सिर्फ और सिर्फ बाबा विश्वनाथ ही हैं। यहां उनसे पुराने शिवलिंग भी हैं जो विभिन्न ऋषि मुनियों ने स्थापित किए हैं। हर जगह की अपनी अलग मान्यता है। यहीं एक शिवलिंग है तिलभांडेश्वर महादेव का। यहां आम दिनों में भी सोमवार और प्रदोष के दिन शिवभक्तों की भीड़ लगती है जलाभिषेक व दुग्द्धाभिषेक के लिए। फिर सावन में तो इनके दर्शन का महत्व और भी बढ़ जाता है।
हर दिन तिल के बराबर बढ़ता है शिवलिंग
काशी खंड में तिलभांडेश्वर महादेव का उल्लेख आता है। सोमवार और प्रदोष व्रत पर इनके दर्शन-पूजन का विशेष महत्व है। ऐसे में इन दिनों में शिवभक्त विशेष पूजन-अर्चन करते है। इन बाबा के साथ ही रुद्राक्ष शिवलिंग का भी दर्शन होता है। माना जाता है कि बाबा का शिवलिंग प्रतिदिन तिल के बराबर बढ़ता रहता है। इसलिए इनका नाम तिलभांडेश्वर पढ़ा। हालांकि शिवलिंग की कितनी गहराई है वो आज तक कोई नहीं जान पाया है। सावन के हर सोमवार को यहां विशेष झांकी सजाई जाती है। जिसमें झूलनोत्सव श्रृंगार झांकी आकर्षण का केंद्र रहता है। बाबा दरबार में भक्त काल सर्प दोष की शांति पूजन के लिए भी आते हैं। मंदिर परिसर में छोटे-बड़े मिलकर कुछ 53 देवी-देवताओं की प्रतिमाएं है।
पुराणों के अनुसार स्वयंभु है तिलभांडेश्वर का शिवलिंग
तिलभांडेश्वर महादेव की उत्पत्ति कब और कैसे हुई यह कोई नहीं बता सका। जानकार बताते है कि शिवलिंग अनादिकाल से विद्यमान है। पुराणों वे अनुसार स्वयंभु तिलभांडेश्वर शिवलिंग महान ऋषि विभाण्ड के तपोस्थली के नाम से जाना जाता है। ऋषि विभाण्ड यहीं पर पूजन-अर्चन, अनुष्ठान, साधना करते थे, तब भगवान ने उनसे कहा कि यब सिद्ध शिवलिंग कलयुग पर्यन्त रोज एक तिल के बराबर बढ़ते रहेंगे।
ये है महात्म्य
इनका महात्म्य गंगा सागर में बार-बार स्नान, प्रयाग संगम में स्नान और काशी के दशाश्वमेध घाट पर स्नान करने से जो पुण्य की प्राप्ति होती है, उस फल, पुण्य की प्राप्ति केवल एकबार इनके दर्शन मात्र से हो जाती है।
औरंगजेब के सैनिक भाग खड़े हुए
पौराणिक इतिहास के अनुसार जब औरंगजेब काशी आया तो उसने यहां के मंदिरों के बारे में परीक्षा लेनी चाही कि इनके पत्थरों में शक्ति है या नही। औरंगजेब ने अपने सैनिकों को मंदिर ध्वस्त करने की नीयत से तिलभांडेश्वर महादेव भेजा। सैनिको ने शिवलिंग पर जैसे ही फावड़ा चलाया उसमे से रक्त की धारा बहने लगी। इस अद्भुत चमत्कार को देख कर औरंगजेब के सैनिक यहां से पलायित हो गए।
तिलभांडेश्वर महादेव का शिवलिंग

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