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वाराणसी

यूपी की सियासत का वह बाहुबली जिसने जेल से जीता था चुनाव, पूर्वांचल में बोलती है तूती

इस सीट से लगातार 6 बार रहे चुके हैं विधायक

वाराणसीSep 26, 2018 / 10:29 am

sarveshwari Mishra

Harishankar Tiwari

Harishankar Tiwari

वाराणसी. 80 के दशक में देश में जेल के अंदर से चुनाव जीतकर रिकॉर्ड बनाने वाले पं. हरिशंकर तिवारी के चर्चे आज भी लोगों के जुबान पर रहते हैं। यहां से चुनाव जीतने वाले बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी सत्ता के बेहद करीबी माने जाते थे, या यह कहें कि यूपी की सत्ता का समीकरण हरिशंकर तिवारी की चौखट पर बनता था तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। चिल्लूपार विधानसभा कभी यूपी की सियासत लिखा करता था। हरिशंकर तिवारी किसी समय में बाहुबलियों के गुरु कहे जाते थे, इन्होंने ही क्राइम का राजनीतिक कनेक्शन फिट किया। हालांकि समय के साथ तिवारी की पकड़ कमजोर होती गई और एक समय वह भी आया जब श्मशान बाबा ने उन्हें चिल्लूपार में हरा दिया। इसके बाद तिवारी ने जीत का स्वाद नहीं चखा। इस लोकसभा 2019 में इनके बड़े बेटे चुनावी मैदान में बिगुल फूंकने के लिए तैयार हैं।
इस सीट से लगातार 6 बार रहे विधायक
दरअसल, चिल्लूपार विधानसभा से लागातार 6 बार विधायक रहने वाले बाहुबली हरिशंकर तिवारी ऐसे नेता थे जो जेल में रहने के बाद चुनाव जीते थे और 23 साल तक लागातार विधान सभा के सदस्य बने रहे। सत्तर के दशक में हथियार उठाने वाले हरिशंकर तिवारी पहले ऐसे नेता थे जिसने शिकजों के पीछे कैद होने के बावजूद चुनाव जीता। हरिशंकर ने कल्याण सिंह और मुलायम सिंह की सरकारों में कैबिनेट मिनिस्टर तक का रुतबा भी हासिल किया। जानकारी के मुताबिक इस बाहुबली नेता के खिलाफ 26 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए। इसमें हत्या, हत्या की कोशिश, एक्सटार्सन, सरकारी काम में बाधा, बलवे जैसे मामले भी शामिल थे। इस बाहुबली के बारे में कहा जाता था कि सरकार भले ही किसी की हो पर हरिशंकर का रूतबा कभी कम नहीं हुआ।

बात पहले 80 के दशक की, तब चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र से हरिशंकर तिवारी व लक्ष्मीपुर से स्व. वीरेन्द्र शाही ने अपने बाहुबल के भरोसे निर्दल प्रत्याशी के रूप में राजनीति में कदम रखा। अप्रत्यक्ष तौर पर हरिशंकर तिवारी को कांग्रेस व वीरेन्द्र शाही को जनता पार्टी ने छांव दी। माना जाता है कि पूर्वाचल में बाहुबलियों के राजनीति में कदम रखने की शुरुआत यहीं से हुई। फिर तो क्षेत्रीय दलों में मुलायम सिंह यादव हों या मायावती। कोई भी राजनीति के हिसाब से बाहुबलियों को गले लगाने से पीछे नहीं रहा।
पाला बदलने की कला में माहिर थे हरिशंकर तिवारी
हरिशंकर तिवारी पाला बदलनें की कला में माहिर थे, पूर्वांचल का यह माफिया सत्ता में बने रहने के लिए कभी भी और कहीं भी जा सकता था। पहले कांग्रेस, फिर बीजेपी और उसके बाद एसपी का साथ दिया। फिलहाल इनका पूरा कुनबा बीएसपी में है। मई 1997 में जब हरिशंकर तिवारी अपनी लोकतांत्रिक कांग्रेस से विधानसभा का चुनाव पहली बार हारे तो उन्हें अपने गिरते रसूख का खयाल सताने लगा, फिर क्या हमेशा की तरह इस बार भी हाथी पर सवार हो गए और मायावती से उसने खुद तो नहीं लेकिन अपने दोनों बेटों के लिए टिकट जुटा लिया। हरिशंकर तिवारी के नाम भर से ये इलाका कांपने लगता है। रेलवे साइकिल स्टैंड से लेकर सिविल की ठेकेदारी में इन्होंने पैसा ही नहीं बल्कि स्याह और दबंग रसूख भी कमाया।
2007 में बसपा के राजेश त्रिपाठी ने हराया था
चिल्लूपार विधानसभा चिल्लूपार विधानसभा सीट बाहुबली हरिशंकर तिवारी के कारण काफी चर्चा में रही है, इस सीट से अजेय माने जाने वाले हरिशंकर तिवारी ने छह बार जीत हासिल की और कैबिनेट मंत्री भी रहे। वर्ष 2007 के चुनाव में बसपा के राजेश त्रिपाठी ने उन्हें हार का स्वाद चखाया और सरकार में मंत्री पद हासिल किया। उल्लेखनीय है कि 2007 का विधानसभा चुनाव हरिशंकर तिवारी समाजवादी पार्टी के समर्थन से लड़े थे। 2007 विधानसभा चुनाव में भी मायावती ने अपनी पार्टी से राजेश त्रिपाठी को ही टिकट दिया था और राजेश हरिशंकर तिवारी को हराकर विधायक बने। मायावती ने उन्हें इसका पुरस्कार देते हुए मंत्री भी बना दिया। यही नहीं, उन्होंने हरिशंकर तिवारी के काले कारनामों की जांच के लिए जिलाधिकारी को सख्त आदेश देकर 15 दिन के भीतर रपट देने को कहा था।
लगा था जानलेवा हमले का आरोप
बसपा छोड़ने के बाद चिल्लूपार के विधायक राजेश त्रिपाठी को उनकी हत्या का डर सता रहा है। राजेश ने हरिशंकर परिवार पर आरोप लगाया है है कि पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी और उनके परिवार के लोग उनकी हत्या करा सकते हैं। राजेश के अनुसार, यह तभी साफ हो गया था, जब डीजीपी बृजलाल और प्रमुख सचिव फतेह बहादुर थे और लखनऊ में एक बदमाश का एसटीएफ ने एनकाउंटर किया था, इसके साथ ही उसकी फोन टैपिंग में यह बात साफ़ हो गई थी कि उनकी हत्या की सुपारी इसी परिवार ने दी है।

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