बता दें कि हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट बोर्ड का परीक्षा का शुल्क 200 रुपेय व 220 रुपये से बढ़ाकर सीधे 500 रुपये और 600 रुपये कर दिया गया है। ऐसे में शुल्क वृद्धि होते ही सबसे पहले वित्त विहीन शिक्षकों ने इसका विरोध शुरू किया है। माध्यमिक वित्तविहीन शिक्षक महासभा के जिला अध्यक्ष प्रमोद कुमार मिश्र और संगठन के प्रधान महासचिव अशोक राठौर ने कहा है कि पिछले वर्ष यह धनराशि 200 रुपेय व 220 रुपये की गई थी। वही अधिक थी क्योंकि पहले एक-एक विषय के दो- दो पेपर हुआ करते थे, तब बोर्ड परीक्षा शुल्क 80 रुपेय और 90 रुपेय हुआ करता था। इसके बाद एक एक पेपर हो जाने के बाद भी बोर्ड परीक्षा के किसी मद में इस प्रकार की कोई अप्रत्याशित वृद्धि नहीं हुई है जिससे सरकार एवं शासन ने बिना शिक्षक संगठनों को संज्ञान में लिए हुए बिना किसी प्रस्ताव के 10 जुलाई को यह हिटलर शाही आदेश पारित कर दिया है।
बता दें कि शिक्षा सत्र 1 अप्रैल से प्रारंभ हो गया था जिसमें प्रत्येक अभिभावक यह जान लेता है कि उसे बोर्ड परीक्षा फीस कितनी जमा करनी है। इसके बाद जब 200 की जगह 500 या 220 की जगह 600 रुपये की मांग छात्रों से की जाएगी तो यह छात्र हित में बिल्कुल नहीं होगा। यूपी बोर्ड इस बात का भी ध्यान रखे कि केवल यही एक ऐसा बोर्ड है जिसके सहारे गरीब व बेसहारा बच्चे भी अपना अध्यापन करके आगे बढ़ रहे हैं। उन्होने कहा कि बोर्ड की यह वृद्धि छात्रों की शिक्षा आगे न हो पाए इसका एक षड्यंत्र है। इसका महासभा विरोध करती है।
शिक्षक नेताओं ने जिला व प्रदेश के समस्त प्रधानाचार्यों से अनुरोध है कि इस फीस को लेकर जल्दबाजी न करें। हमारा सरकार से विरोध दर्ज हो गया है सरकार को इस पर सुनवाई करनी ही होगी। फैसला आ जाने के बाद ही फीस बच्चों से या ट्रेजरी के माध्यम से जमा कराएं।
बता दें कि यूपी बोर्ड परीक्षा 2020 के लिए 16 अगस्त तक आवेदन किए जाने हैं। बोर्ड सचिव नीना श्रीवास्तव की ओर से मंगलवार को यह निर्देश जारी किया गया है। इसके तहत 10वीं और 12वीं में दाखिला लेने और परीक्षा शुल्क जमा करने की अंतिम तिथि 5 अगस्त निर्धारित की गई है। प्रधानाध्यापक और प्रधानाचार्य सभी छात्रों से एकत्र परीक्षा शुल्क का 10 अगस्त तक ट्रेजरी चालान बनवा कर 10 अगस्त तक कोषागार में जमा करेंगे। कोषागार में जमा फीस की रसीद व छात्र-छात्राओं के शैक्षणिक विवरण 16 अगस्त की आधी रात 12 बजे तक बोर्ड की साइट पर अपलोड किए जा सकेंगे।