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यदि पुलिस को कही पर अपराध की सूचना मिलती है तो एक टीम को मौके पर भेज कर अपराधियों की जानकारी लेने का प्रयास किया जाता है जबकि कई टीम घटनास्थल के आस-पास जाकर सीसीटीवी खोजती है ताकि बदमाशों को फुटेज मिल सके। किसी भी घर या दुकान में कैमरा दिख गया तो पुलिस तुरंत ही उसकी रिकॉडिंग हासिल करती है फिर उसे देख कर संदिग्ध बदमाशों की पहचान की जाती है। पहले घटना होने पर मौके पर जाने के साथ ही पुलिस मुखबिरों के पास जाती थी और अपराधी का सुराग लेने का प्रयास करती थी भले ही वह मुखबिर जेल में हो या फिर कही।
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मुखबिरी की सूचना पर गलती होने की संभावना भी रहती है लेकिन सीसीटीवी फुटेज में ऐसा नहीं है। एक बार घटनास्थल पर बदमाश की फुटेज मिल गयी तो पुलिस को कोर्ट के लिए भी दमदार प्रमाण मिल जाता है। अपराधियों पर पुलिस से अधिक सीसीटीवी का खौफ हो गया है। यदि अपराधी किसी आपराधिक वारदात को अंजाम देने के पहले क्षेत्र की रेकी करते हैं तो पुलिस पिकेट से पहले सीसीटीवी कैमरा ही खोजते हैं ताकि घटना के बाद उनकी पहचान न हो पाये। बनारस के क्राइम ब्रांच प्रभारी विक्रम सिंह का कहना है कि इस बात में जरा भी संदेह नहीं है कि सीसीटीवी से हमें बहुत मदद मिलती है। आम तौर पर किसी घटना के बाद लोग पुलिस से कुछ बोलने में डरते हैं यदि लोगों ने बदमाशों का हुलिया भी बता दिया तो तुरंत उनकी पहचान करना कठिन होता है लेकिन सीसीटीवी में एक बार अपराधी आ गया तो उसका बचना असंभव हो जाता है। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी बात है कि सीसीटीवी में बदमाश दिख जाता है तो इसकी जानकारी भी बाहर नहीं हो पाती है इसलिए बदमाश थोड़ा निश्चित होता है और पुलिस के लिए पकडऩा आसान हो जाता है।