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वाराणसी

फूलपुर उपचुनाव में कौशलेंद्र को उम्मीदवार बना कर बीजोपी ने तोड़ दिया 48 साल का रिकार्ड

कौशलेंद्र पहले मेयर जिनके राजनीतिक सफर को लगे पंख। नगर पालिका अध्यक्ष से नगर निगम के मेयर तक का राजनीतिक जीवन खत्म माना जाता रहा।

वाराणसीFeb 20, 2018 / 01:20 pm

Ajay Chaturvedi

कौशलेंद्र सिंह

कौशलेंद्र सिंह

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी


वाराणसी. मिथक तोड़ती भाजपा ने फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में एक और कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। यह कीर्तिमान न केवल बीजेपी से जुड़ा है बल्कि वाराणसी नगर निगम के 48 साल के इतिहास से भी जुड़ा है। बीजेपी ने इस बार बनारस के पूर्व मेयर कौशलेंद्र सिंह को फूलपुर लोकसभा सीट से अपना प्रत्याशी बनाया। यह पहला मौका है जब बनारस के किसी नगर पालिका परिषद चेयरमैन अथवा नगर निगम के मेयर को मेयर बनने के बाद सक्रिय राजनीति में बड़ा मौका मिला हो। कहने को बनारस नगर पालिका परिषद से लेकर नगर निगम तक अगर स्वालेह अंसारी को छोड़ दिया जाए तो प्रायः बीजेपी अथवा संघ की विचारधारा वाले लोगों का ही कब्जा रहा लेकिन एक बारगी मेयर बनने के साथ ही उऩका राजनीतिक सफर वहीं खत्म हो जाया करता रहा है। लेकिन कौशलेंद्र जो सबसे कम उम्र में वाराणसी के मेयर बने उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा को पंख लग ही गए।
और राजनीतिक करियर को लग गए पंख


बनारस नगर पालिका परिषद अध्यक्ष अथवा अथवा नगर निगम के मेयर पद पर कई दिग्गज आसीन हुए। लेकिन किसी को आगे बढ़ने का मौका नहीं मिला। प्रदेश में मंत्री बनने के बाद अमर नाथ यादव बनारस के मेयर बने लेकिन मेयर बनने के बाद उनका राजनीतिक जीवन पूरी तरह से समाप्त ही हो गया। उनसे पहले सरोज सिंह का भी यही हाल रहा। नगर पालिका परिषद और नगर निगम के इतिहास पर नजर डालें तो 1960 में वाराणसी नगर पालिका परिषद के पहले चेयरमैन बने कुंज बिहारी गुप्ता, उसके बाद 1962 शहर के प्रतिष्ठित धनाढ्यों में गिने जाने वाले बृजपाल दास, श्याम मोहन अग्रवाल, सरजू प्रसाद दुबे, पूरन चंद पाठक चाहे मो. स्वालेह अंसारी रहे सभी की अपनी अलग पहचान रही। राष्ट्रीय स्वयंसेवेक संघ से लेकर कांग्रेस तक में सभी की अंदरखाने तक पैठ रही। लेकिन एक बारगी नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष क्या बने कि फिर उसके बाद उनका राजनीतिक जीवन वहीं थम गया। बता दें कि कुंज बिहारी गुप्ता से लेकर मो. स्वालेह अंसारी तक पहले सभासद बने फिर सभासदों ने इन्हें मेयर के रूप में चुना।
नगर पालिका से नगर निगम तक का इतिहास

कुंज बिहारी गुप्ता एक फरवरी 1960 से 30 अप्रैल 1962, बृजपाल दास एक अप्रैल 1962 से 31 जनवरी 1966 तक, श्याम मोहन अग्रवाल पांच जुलाई 1968 से पांच जुलाई 1970 तक, सरजू प्रसाद दुबे, छह जुलाई 1971 से पांच जुलाई 1971 तक, पूरन चंद्र पाठक छह जुलाई 1971 से 30 जून 1973 तक, मो. स्वालेह अंसारी 12 फरवरी 1989 से पांच फरवरी 1994 तक। वर्ष 1995 में नगर पालिका से नगर निगम बना और पहली मेयर बनी पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष व पूर्व शिक्षा मंत्री ओम प्रकाश सिंह की पत्नी सरोज सिंह। यह मेयर का पहला डायरेक्ट चुनाव था। उसके बाद प्रदेश के पूर्व शिक्षा राज्यमंत्री अमर नाथ यादव फिर शहर को मिला युवा मेयर कौशलेंद्र सिंह। फिर राम गोपाल मोहले को यह मौका मिला। वैसे मेयर का कार्यकाल पूरा करने के बाद से ही कौशलेंद्र अपनी अगली राजनीतिक पारी की जुगत में लगे रहे। लेकिन पार्टी की ओर से उन्हें कोई मौका नहीं दिया गया। इतना ही नहीं लंबे अरसे तक कौशलेंद्र को संगठन में भी कोई महत्वपूर्ण पद नहीं मिला। इसे लेकर तरह तरह की चर्चाएं भी शुरू हो गई थीं। लेकिन केशव मौर्या के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद कौशलेंद्र फिर से सक्रिय हुए। केशव की टीम में उन्हें स्थान भी मिला। हालांकि कौशलेंद्र 2017 के विधानसभा चुनाव में रोहनिया विधानसभा सीट से टिकट चाहते थे, लेकिन इस बार भी उन्हें मौका नहीं मिला और आस निराश में बदल गई। लेकिन इस बार केशव मौर्या से उनकी निकटता काम आई और उन्हें केशव ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में कौशलेंद्र को ही चुना और उन्हें टिकट दिला दिया।
नगर पालिका परिषद के मेयर
कुंज बिहारी गुप्ता एक फरवरी 1960 से 30 अप्रैल 1962, बृजपाल दास एक अप्रैल 1962 से 31 जनवरी 1966 तक, श्याम मोहन अग्रवाल पांच जुलाई 1968 से पांच जुलाई 1970 तक, सरजू प्रसाद दुबे, छह जुलाई 1971 से पांच जुलाई 1971 तक, पूरन चंद्र पाठक छह जुलाई 1971 से 30 जून 1973 तक, मो. स्वालेह अंसारी 12 फरवरी 1989 से पांच फरवरी 1994 तक।
अब तक के मेयर और उनका कार्यकाल
सरोज सिंह 30 नवंबर 1995 से 29 नवंबर 2000, अमर नाथ यादव 30 नवंबर 2000 से 20 जनवरी 2006, कौशलेंद्र सिंह 17 नवंबर से 2006 से 19 जुलाई 2012, रामगोपाल मोहले 20 जुलाई 2012 से अगस्त 2017।
बीजेपी का बड़ा दांव

वैसे कुर्मी बहुल इलाके फूलपुर से कौशलेंद्र को टिकट देकर बीजेपी ने जातीय गणित के हिसाब से बड़ा दांव खेला है। बता दें कि फूलपुर में जातीय समीकरण काफी दिलचस्प है। इस संसदीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा पटेल मतदाता हैं, जिनकी संख्या करीब सवा दो लाख है। हालालंकि मुस्लिम, यादव और कायस्थ मतदाताओं की संख्या भी इसी के आसपास है। लगभग डेढ़ लाख ब्राह्मण और एक लाख से अधिक अनुसूचित जाति के मतदाता हैं। इस जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए ही कांग्रेस ने जहां मनीष मिश्रा को मैदान में उतारा है तो सपा ने नागेंद्र सिंह पटेल को। लेकिन सबसे जबरदस्त है कि कभी सपा में रहे अतीक अहमद ने पहले अपनी पत्नी शाइस्ता परवीन को मैदान में उतारने का ऐलान किया फिर चर्चाओं के अनुसार अंतिम समय में खुद नामांकन कर लड़ाई को और रोचक बना दिया है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि परोक्ष रूप से ही सही अतीक के चुनाव मैदान में आने के बाद बीजेपी के लिए हिंदू मतों का ध्रुवीकरण कराना ज्यादा आसान होगा। लेकिन वो यह भी कहते हैं कि परिणाम को लेकर अभी से कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। यह तो वक्त ही बताएगा कि मतों का ध्रुवीकरण किस तरफ होगा। वैसे एक लाख दलित मतदाता भी खासे मायने रखते हैं क्योंकि इस बार मायावती ने अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है।

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