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वाराणसी

ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वे को कोर्ट की मंज़ूरी, यूपी सरकार वहन करेगी खर्च, जानें पूरा मामला

– रडार तकनीक से होगा एक बीघा नौ बिस्वा ज़मीन का सर्वे, ज़मीन के धार्मिक स्वरूप का चलेगा पता
 

वाराणसीApr 08, 2021 / 10:12 pm

Abhishek Gupta

File Photo of Gyanwapi Shivling in Varanasi Mosque

File Photo of Gyanwapi Shivling in Varanasi Mosque

पत्रिका एक्सप्लेनर.

वाराणसी. अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के बाद वाराणसी की काशी विश्वनाथ (Kashi vishwanath) परिसर में बने ज्ञानवापी मस्जिद (gyanvapi mosque) को लेकर कोर्ट में बहस शुरू हो गई है। गुरुवार को आखिरकार वाराणसी के सिविल कोर्ट (Varanasi civil court) ने विवादित ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने के आदेश दे दिया। रडार तकनीक से पुरातात्विक सर्वेक्षण से ज़मीन के धार्मिक स्वरूप का चलेगा पता चल सकेगा। एक बीघा नौ बिस्वा ज़मीन का सर्वे होगा। कोर्ट के फैसले के बाद ही यह विवादित मामला दोबारा सुर्खियों में आ गया है। मामला 1991 का है, जब पहली बार वाराणसी कोर्ट में काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी को लेकर मामला दाखिल हुआ था। तब प्राचीन मूर्ति स्वयंभू लार्ड विशेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय बतौर वादी इसमें शामिल हैं। मुकदमे के कुछ ही दिनों बाद मस्जिद समिति ने केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए प्लेसेज ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजन) ऐक्ट, 1991 का हवाला देकर मामले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने साल 1993 में स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था।
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हिंदू पक्षकारों का यह है दावा-
ज्ञानवापी को लेकर हिन्दू पक्ष का दावा है कि विवादित ढांचे की जमीन के नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विशेश्वर का स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग स्थपित है। इसके अतिरिक्त विवादित ढांचे के दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र गणित हैं। 1991 में वाराणसी कोर्ट में इस मामले में याचिका दाखिल करने वाले हरिहर पांडेय का कहना है कि विवादित स्थिल के भूतल में तहखाना है व मस्जिद के गुम्बद के पीछे प्राचीन मंदिर की दीवार है। उसे आज भी साफ तौर पर देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि मस्जिद के बाहर विशालकाय नंदी हैं, जिसका मुख मस्जिद की ओर है। इसके अतिरिक्त मस्जिद की दीवारों पर नक्काशियों से देवी देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं। इसका स्कंद पुराण में भी जिक्र है। हरिहर पांडेय ने यह भी बताया कि मौजूद ज्ञानवापी आदि विशेश्वर का मंदिर है, जिसका निर्माण 2,050 साल पहले राजा विक्रमादित्य ने करवाया था। बाद में जब मुगल बादशाह औरंगजेब नेफतवा जारी किया, उसके बाद 1664 में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना दी गई।
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मुस्लिम पक्षकारों ने सिरे से नकारा-
सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील मोहम्मद तौहीद खान ने हिंदुओं के इन तथ्यों को सिरे से खारिज किया है। मुस्लिम पक्षकार अंजुमन इंतजामियां मस्जिद का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद की धार्मिक स्थिति 15 अगस्त 1947 को मस्जिद की थी और चल रहे मुकदमे को इसी आधार पर निरस्त कर दिया जाना चाहिए। सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता अभय नाथ यादव का दावा है कि जब मंदिर तोड़ा गया, तब ज्योतिर्लिंग उसी स्थान पर मौजूद था, जहां आज है। उसी दौरान राजा अकबर के वित्तमंत्री टोडरमल की मदद से नरायन भट्ट ने मंदिर बनवाया था, जो उसी ज्योतिर्लिंग पर बना है। ऐसे में विवादित ढांचा के नीचे दूसरा शिवलिंग कैसे आ सकता है। इसलिए खुदाई नहीं होनी चाहिए।
2019 में दोबारा शुरू हुई सुनवाई-

1993 में स्टे ऑर्डर की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वर्ष 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हो गई। याचिकाकर्ता ने अदालत से मंदिर की जमीन से मस्जिद को हटाने का निर्देश जारी करने व मंदिर ट्रस्ट को अपना कब्जा वापस देने का अनुरोध किया था। इसी पर 2019 में अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने सिविल जज की अदालत में स्वयंभु ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से एक याचिका दायर की थी, जिसमें एएसआई द्वारा संपूर्ण ज्ञानवापी परिसर का सर्वेक्षण करने का अनुरोध किया गया था। उन्होंने स्वयंभु ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर के ‘वाद मित्र’ के रूप में याचिका दायर की थी। इसके बाद जनवरी 2020 में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद समिति ने ज्ञानवापी मस्जिद और परिसर का एएसआई द्वारा सर्वेक्षण कराए जाने की मांग पर प्रतिवाद दाखिल किया।
8 अप्रैल, 2021 को कोर्ट ने सर्वेक्षण को दी मंजूरी

2019 से जारी सुनवाई पर दो अप्रैल को वाराणसी फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सभी दलीलों को सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। गुरुवार 8 अप्रैल, 2021 को कोर्ट के जज आशुतोष तिवारी ने अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) को मामले में जांच करने की मंजूरी दे दी। साथ ही कहा कि जांच का खर्च भी राज्य सरकार उठाएगी। कोर्ट ने केंद्र व उत्तर सरकार को पत्र के जरिए इस मामले में पुरातत्व विभाग की पांच लोगों की कमेटी बनाने व खुदाई करने के निर्देश दिए। कोर्ट ने कमेटी में 2 अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भी रखने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने सर्वे कराकर आख्या प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि सर्वेक्षण कराने का आदेश देने के पीछे मक़सद यह है कि इससे पता चलेगा कि विवादित स्थल पर जो धार्मिक ढांचा है क्या वह किसी के ऊपर रखा गया है, इसमें किसी तरह का परिवर्तन किया गया है या जोड़ा गया है या फिर एक ढांचे को परस्पर दूसरे के ऊपर या साथ में रखा गया है।

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