वाराणसी के कुछ मशहूर और भीड़-भाड़ वाले आयोजनो की गिनती करें तो कज्जाकपुरा स्थित बाबा लाटभैरव के विवाह का आयोजन का नाम इसमें प्रमुख रूप से आता है। इसके लिये प्रशासन लक्खा मेले की तर्ज पर तैयारियां करती है और पूरी बैंड बाजे के साथ बड़े धूमधाम से बाबा की बारात निकलती है। वहां मेला भी लगता है। पर इस बार यह आयोजन भी कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गया।
बुधवार को कज्जाकपुरा स्थित बाबा लाटभैरव का विवाह जिस सादगी और खामोशी से सम्पन्न हुआ, ऐसा इतिहास में पहली बार हुआं कोविड संक्रमण के खतरे के चलते बाबा का विवाह बेहद सादगी से सम्पन्न हुआ। इस दौरान कोविड प्रोटोकाॅल, सोशल डिस्टेंसिंग और प्रशासन की गाइड लाइंस का पूरा ध्यान रखा गया। शाम को रजत मुखौटे को विग्रह पर स्थापित कर नए वस्त्र, मुंडमाला, चांदी के आभूषण धारण कराए गए। उनका आकर्षक श्रृंगार के बाद आचार्यगणों के निर्देशन में पूजन शुरू हुआ। इस मौके पर रात में हजारा दीपक से बाबा की विशेष आरती भी हुई।
समिति के पदाधिकारियों ने जानकारी दी कि इस बार मंदिर प्रांगण में सरकार की गाइडलाइंस का पालन करते हुए सिर्फ पांच लोगों द्वरा ही अनुष्ठान को सम्पन्न कराया गया। उन्होंने बताया कि इस दौरान बाबा से कोरोना महामारी से मुक्ति की कामना की गई, ताकि अगले साल पहले की तरह हर्षोल्लास के वातावरण में हम सारे पर्व मना सकें।
उधर साल भर बाबा लाट भैरव के विवाह का इंतजार करने वाले भक्तों को भी इस मौके पर सूनापन अखर गया। स्थानीय लोगों का कहना था कि बाबा के विवाह के मौके पर बारात निकलती है तो लगता है कि जैसे सड़क पर जश्न का माहौल है। कोनिया के मदन यादव ने बताया कि आस्था से सराबाेर श्रद्घालुओं का जमघट लगता था, जो इस बार न होने से लोगों में मायूसी है। बारात के मार्ग में पड़ने वाले मंदिरों की सजावट और प्रसाद वितरण के साथ-साथ विविध सांस्कृतिक आयोजन होते थे, लेकिन इस बार सबने इसे मिस किया। कई सालों से बाबा की आरती करने वाले रमेश शंकर ने कहा कि घरों में ही लोगों ने मन में बाबा का ध्यान कर उनसे इस संकट से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की।
बताते चलें कि बाबा लाट भैरव की बारात शहर के लक्खा मेले में शुमार है। विश्वेश्वरगंज से निकलकर बारात करीब दो किलोमीटर लम्बा रास्ता तय करते हुए कज्जाकपुरा स्थित बाबा लाट भैरव के मंदिर पहुंचता था। आकर्षक रूप से सजे हुए विशाल रथ पर बाबा विराजमान होते थे और उनकी शोभायात्रा में हाथी, घोड़े और बैंड-बाजे व डमरू दल शोभा बढ़ाता था। रास्ते भर जगह-जगह श्रद्घालुओं की भीड़ द्वारा बाबा की आरती, श्रृंगार व पुष्प वर्षा होती थाी।