ऐसा ही कुछ प्रवासी बनारस जिले में हैं, यह इस वक्त चर्चा का विषय बन गए हैं। बनारस से गाजीपुर रुट पर गंगा के किनारे एक गांव है कैथी। यहां के रहने वाले पप्पू निषाद उर्फ भेड़ा गुजरा के मेहसाणा में रहकर गन्ना पेराई का काम करते हैं। लॉकडाउन के बीच जब श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चली तो ये अपने गांव आ गए। पप्पू के परिवार में दो पुत्र, एक पुत्री, और मां है। किराए की नाव गंगा में चलवाकर परिवार का गुजारा करते हैं। पप्पू गांव तक तो आ गया इधर लॉकडाउन से उनकी मां बच्चों को लेकर अपनी पुत्री के घर चंदौली चली गईं थी। पप्पू को इस बात का खयाल था कि वो गुजरात से आया है उसकी लापरवाही समाज के लिए खतरा बन सकती है।
पप्पू ने गंगा में किनारे बंधी पैतृक नाव पर शरण ले ली। गांव के एक मित्र ने बर्तन व उपली दे दी तो रोज बाटी-चोखा खाने के बाद गंगा का पानी पीकर पप्पू क्वारंटाइन का दिन काटने लगे। पप्पू कहते हैं-यहां पर कोई सरकारी सहायता नहीं मिल रही है। गांव में करीब 35 लोग मुंबई, सूरत आदि स्थानों से आए हैं। उन्हें 14 दिन घर से बाहर क्वारंटाइन रहना चाहिए था लेकिन वे घर चले गए।
व्यवस्था की कमी :-गांव में क्वारंटाइन सेंटर के बारे में बताते हुए पूजा यादव, प्रधान कैथी कहती हैं कि गांव के विद्यालय में क्वारंटाइन किए लोगों को सरकार ने कोई व्यवस्था नहीं की है, इसलिए सभी लोग अपने घरों में 14 दिनों के लिए क्वारंटाइन हो गए हैं। हम लगातार जागरूक कर रहे हैं कि लोग घरों में पूरी सावधानी बरतें।
गंगा का पानी प्राकृतिक सेनेटाइजर :- गंगा की लहरों पर दिन काटना इतने दिनों तक वही पानी पीना और नहाना आदि बातों पर आइआइटी-बीएचयू में सिविल इंजीनियरिंग के पूर्व प्रोफेसर व गंगा रिसर्च सेंटर के संस्थापक प्रो. यू के चौधरी ने कहा की अपनी औषधीय गुणों के कारण गंगा का पानी खुद में प्राकृतिक सैनिटाइजर है। उन्होंने कहा कि गंगा के पानी में बड़ी मात्रा में बैक्टिरियोफेज पाया जाता है, यह एक प्रकार का वायरस है जो हानिकारक बैक्टीरिया को खत्म करता है।