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वाराणसी

पति की लंबी आयु चाहती हैं तो करें ये व्रत अनुष्ठान कभी नहीं होगी हानि

वट सावित्री व्रत अनुष्ठान शुरू, मंगल को होगी वट वृक्ष की पूजा, रखा जाएगा उपवास।

वाराणसीMay 14, 2018 / 12:48 pm

Ajay Chaturvedi

वट सावित्री व्रत अनु्ष्ठान

वट सावित्री व्रत अनु्ष्ठान

वाराणसी. पति के दीर्घ जीवन के लिए यूं तो महिलाएं कई व्रत अनुष्ठान करती हैं। लेकिन ज्येष्ठ मास में पड़ने वाले इस व्रत अनुष्ठान का खास महत्व है। इस व्रत का संबंध सीधे तौर पर सती सावित्री से है। पुराण एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यह भी तीन दिवसीय होता है लेकिन इसका खास महत्व ज्येष्ठ मास की अमावस्य़ा को होता है जो इस बार मंगलवार को पड़ रहा है। यह अनुष्ठान और कोई नहीं वट सावित्री व्रत अनुष्ठान है।

ज्योतिषियों की मानें तो वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है जिसे सौभाग्य की कामना से किया जाता है। स्त्रियां पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती है। ज्येष्ठ मास की अमावस्या को पड़ने वाले इस व्रत की प्रक्रिया त्रयोदशी से ही शुरू हो जाती है। पहले दिन ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी को प्रातः स्नान के पश्चात् ‘ मम वैधव्यादिसकलदोषपरिहारार्थं ब्रह्मसावित्रीप्रीत्यर्थं च वट सावित्री व्रतमहं करिष्ये।’ इस मंत्र से संकल्प करके तीन दिन के उपवास का प्रावधान है। यदि तीन दिन का अनुष्ठान नहीं कर सकतीं तो त्रयोदशी की रात्रि में भोजन किया जा सकता है। चतुर्दशी को अयाचित और अमावस्या को उपवास करके शुक्ल प्रतिपदा को अनुष्ठान को पूर्ण किया जा सकता है। अमावस्या के दिन वट वृक्ष के समीप बैठकर बांस के एक पात्र में सप्तधान्य भर कर उसे दो वस्त्रों से ढक दे और दूसरे पात्र में ब्रह्मसावित्री तथा सत्य सावित्री की मूर्ति स्थापित करके गन्धाक्षतादि से पूजन करें। तत्पश्चात वट वृक्ष में सूत लपेट कर उसका यथाविधि पूजन करके परिक्रमा करे।
फिर इस मंत्र से सावित्री को अर्घ्य दे और समस्त मनोकामना को पूर्ण करें।
”अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते। पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोस्तु ते।।”

इस श्लोक से वट वृक्ष की प्रार्थना करें।
”वट सिञ्चामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः।
यथा शाखा प्रशाखाभिर्वृद्धोसि त्वं महीतले।।”

सती सावित्री और सत्यवान की कथा
कहा जाता है कि मद्रगेश के राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री का द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से इसका विवाह हुआ था। विवाह के पहले नारदजी ने कहा था कि सत्यवान् सिर्फ सालभर जियेगा, किन्तु दृढव्रता सावित्री ने अपने मन से अंगीकार किए हुए पति का परिवर्तन नहीं किया और एक वर्ष तक पातिव्रत धर्म मे पूर्णतया तत्पर रहकर अंधे सास- ससुर की और अल्पायु पति की प्रेम के साथ सेवा की। अन्त मे वर्ष समाप्ति के दिन( ज्येष्ठ शुक्ल 15 को) सत्यवान् और सावित्री समिधा लाने को वन में गये। वहां एक विषधर सर्प नें सत्यवान् को डस लिया। वह बेहोश होकर गिर गया। उसी अवस्था में यमराज आए और सत्यवान के सूक्ष्म शरीर को ले जाने लगे। लेकिन तभी उन्हें सती सावित्री की तपस्या का ध्यान आया। सति सावित्री ने अपनी तपस्या और पतिव्रत धर्म से यमराज को प्रसन्न कर लिया। यमराज सावित्री की तपस्या के आगे झुकना पड़ा और सृष्टि के इतिहास में यह एक मात्र उदाहरण है कि मृत सत्यवान के शरीर में यमराज को प्राणवायु का संचार करना पड़ा। इतना ही नहीं उन्होंने सावित्री को सौ पुत्र होने तथा राज्यच्युत अंधे सास- ससुर को राज्य सहित दृष्टि प्राप्त होने का वर दिया।
क्यों करें वट वृक्ष का पूजन
वट सावित्री व्रत में में वट वृक्ष का बहुत खास महत्व होता है। कहा जाता है कि इस पेड़ में लटकी हुई शाखाओं को देवी सावित्री का रूप माना जाता है। पुराणों के अनुसार बरगद के पेड़ में त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। इसलिए इस पेड़ की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

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