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वाराणसी

हरतालिका तीज व्रतः अखण्ड सौभाग्य का देता है वर

मनचाहा वर पाने के लिए कुंवारी कन्याएं रहती हैं ये व्रत

वाराणसीSep 03, 2016 / 02:26 pm

sarveshwari Mishra

Hartalika Teej

Hartalika Teej

वाराणसी. पति की लम्बी उम्र के लिए भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाले हरतालिका तीज व्रत चार सितंबर को है। यह व्रत सुहागिनों के लिए है लेकिन उत्तर भारत में ये व्रत कुंवारी कन्याएं भी करती हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए इस व्रत को पार्वती जी ने शादी से पहले किया था।
हरतालिका तीज में महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करती हैं। इसलिए यह त्योहार काशी की महिलाएं बहुत धूमधाम से मनाती हैं।




बाबा विश्वनाथ की नगरी में तीज के हफ्ते भर पहले से भी बाजार में तीज व्रत का सामान उपलब्ध हो जाता है। हर घर में हरतालिका तीज पर्व की तैयारियां घरों में शुरू हो जाती है। अखंड सुहाग की कामना से निराजल रह मनाये जाने वाले इस कठिन पर्व को लेकर सुहागिन महिलाआें में जबरदस्त उत्साह रहता है।





पूजन सामग्री के साथ नई साड़ियां चूड़ियां खरीदने के लिए बाजारों में सुबह से ही महिलाओं का जमावड़ा लग जाता है। वहीं सजने संवरने के लिए ब्यूटीपार्लर में भी महिलाओं की भीड़ जुटी रहती है। महिलाओं के साथ युवतियों और किशोरियों में भी हाथ में महावर रचाने की होड़ रहती है।




तीज से पहले बहन बेटी और बहुओं को तीज पहुंचाने का भी रिवाज है। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाये जाने वाला यह पर्व रविवार को है।





हरतालिका तीज की कथा
लिंग पुराण की एक कथा के अनुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। इस दौरान उन्होंने अन्न का सेवन नहीं किया। काफी समय सूखे पत्ते चबाकर काटी और फिर कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे।




इसी दौरान एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वह बहुत दुखी हो गई और जोर-जोर से विलाप करने लगी। फिर एक सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई।



Hartalika Teej

भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।


मान्यता है कि इस दिन जो महिलाएं विधि-विधानपूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वह अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं। साथ ही यह पर्व दांपत्य जीवन में खुशी बरकरार रखने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है। उत्तर भारत के कई राज्यों में इस दिन मेहंदी लगाने और झुला-झूलने की प्रथा है।
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