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वाराणसी

सपा की एक और योजना पर भाजपा का कब्जा, गृह कर वृद्धि के बाद अब नगर निगम सीमा में बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव भी पास

-2015 में सपा सरकार ने नगर निगम सदन के निगम सीमा में वृद्धि के प्रस्ताव को दी थी सैद्धांतिक सहमति-तत्कालीन मेयर रामगोपाल मोहले के कार्यकाल में पारित हुआ था प्रस्ताव-तब बीजेपी के लोगों ने किया था विरोध

वाराणसीDec 03, 2019 / 08:35 pm

Ajay Chaturvedi

योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव

योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. सपा और कांग्रेस सरकार की योजनाओं को आत्मसात करने की कड़ी में अब योगी सरकार ने एक और फेहरिस्त जोड़ दी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई बैठक में वाराणसी नगर निगम की सीमा बढ़ाने संबंधी प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई। बता दें कि यही पहल 2015 में अखिलेश यादव सरकार ने की थी, तब वाराणसी के तत्कालीन मेयर रामगोपाल मोहले की अध्यक्षता वाली सदन की बैठक में यह प्रस्ताव पारित किया गया था। तब भाजपा ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था। पत्रिका ने तब भी खबर लिखी थी, “नगर निगम का सीमा विस्तार ग्रामीणो संग छल”। इस खबर के साथ जनवरी 2015 की खबरें भी देखें….
क्या है सीमा विस्तार का प्रस्ताव

79 गांव शामिल होंगे, आबादी होगी लगभग साढ़े तीन लाख
-शहर का दायरा 90 किलो मीटर और बढेगा
-वार्डों की संख्या नगर निगम अधिनियम के तहत 90 से बढ़ कर 110 हो जाएंगे
-शहर की सीमा अब नुआंव, चुरामनपुर, सरसवां, हाशिमपुर तक बढेगी
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बता दें कि लगभग साढ़े छह दशक बाद शहर का सीमा विस्तार होगा। फिलहाल निगम के पास 90 वार्ड हैं जो अब 110 के आस-पास पहुंच जाएंगे। यहां यह भी बता दें कि इससे पहले 1967-68 में नगर निगम का हुआ था। तब शहर के दक्षिण-पूर्व में सामनेघाट, बीएचयू, दक्षिण-पश्चिम में चितईपुर,कंदवां, भिखारीपुर, तुलसीपुर, रानीपुर, उत्तर-पश्चिम में सारनाथ, आशापुर जैसे इलाके नगर निगम सीमा में मिलाए गए थे। इस तरह से फिलहाल 120 गांव नगर निगम सीमा में है। यह दीगर है कि इन 52 साल गुजर गए लेकिन इन गांवों में अभी तक नगर निगम लोगों को आधारभूत सुविधाएं नहीं दे सका है।
मसलन न तो वहां सीवर लाइन पहुंच सकी है न पेयजल की पाइप लाइन। न स्ट्रीट लाइटें है। मुख्य मार्ग से इन इलाकों को जोड़ने वाली सड़कों का बुरा हाल है। यहां तक कि शहर के मध्य स्थित बजरडीहा जैसे इलाके में भी नगर निगम अब तक सीवर लाइन नहीं डाल सका है। लेकिन इन सभी 120 गांवों में रहने वालों से सीवर टैक्स, वाटर टैक्स, हाउस टैक्स नगर निगम अधिनियम के तहत लगातार वसूल रहा है।
नगर निगम अधिनियम में क्या है व्यस्था

नगर निगम अधिनियम कहता है कि निगम की सीमा में शामिल करने के बाद अगले वित्त वर्ष से ही निमग हर घर से सारे टैक्स वसूलेगा। इसमें हाउस टैक्स, वाटर टैक्स और सीवर टैक्स सभी शामिल है। जिस भी जमीन की चहारदीवारी खींच दी गई उससे टैक्स के रूप में फिक्स्ड चार्ज लिया जाएगा। ऐसे में अगर नगर निगम चालू वित्त वर्ष में ने 79 गांवों को नगर सीमा में शामिल करता है तो आगामी वित्त वर्ष से इन गांवों के भवन-भू स्वामियों पर टैक्स का अतिरिक्त भार पड़ना तय है।
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सबसे ज्यादा दिक्कत जो आने वाली होगी वह है सफाई। निगम सूत्रों की मानें तो 89 से ही बनारस ही नहीं पूरे प्रदेश में नई नियुक्तियों पर रोक लगी है। इसके चलते सफाई की तकरीबन 200 बीट रिक्त हैं। यह दीगर 1989 में पहली बार नगर निगम सदन ने प्रस्ताव पारित कर संविदा सफाई कर्मियों की नियुक्ति की। कुछ मृतक आश्रितों की नियुक्ति हुई. बावजूद इसके पूरा शहर गंदगी और कूड़े के अंबार से गंधा रहा है।
सामनेघाट, चितईपुर, कंदवां, भिखारीपुर, आशापुर, बजरडीहा, तुलसीपुर, रानीपुर आदि ऐसे इलाके हैं जहां न रोजाना झाड़ू लगता है न कूड़ा उठता है। नगर निगम को सीमा विस्तार से पहले इसका आंकलन करना चाहिए था कि उसे नगर के क्षेत्र के हिसाब से कितने सफाई कर्मियों की जरूरत होगी। फिर शासन से उतने पद सृजित कराने चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और सीमा विस्तार का प्रस्ताव तैयार कर शासन के सम्मुख रख कर सैद्धांतिक सहमति भी ले ली गई।
निर्माण एवं आलोक विभाग के अभियंताओं के अतिरिक्त पद सृजित करने होंगे

जानकार बताते हैं कि 79 गांवों को निगम सीमा में शामिल करने की सूरत में सिर्फ सफाई कर्मियों के ही नहीं बल्कि आलोक व निर्माण विभाग के अभियंताओं के पद भी सृजित करने होंगे। कारण न आलोक विभाग में पर्याप्त जेई-एई हैं न निर्माण विभाग में। ऐसे में अभियंताओं के न होने की सूरत में पथ प्रकाश का समुचित इंतजाम हो पाएगा न निर्माण कार्य हो पाएंगे। यहां तक कि जल निकासी तक की व्यवस्था नहीं हो पाएगी।
1998 से लगातार ऐसे प्रस्ताव पारित होते रहे हैं सदन में
जानकारों की मानें तो 1098 में से ही निगम सदन में सीमा विस्तार का प्रस्ताव पारित होता रहा है। पहला प्रस्ताव मेयर सरोज सिंह के कार्यकाल में 1998 में पास हुआ। उसके बाद उन्हीं के कार्यकाल मे एक और प्रस्ताव पारित हुआ। फिर मेयर अमर नाथ यादव के कार्यकाल में एक औ र प्रस्ताव पारित हुआ। उसके बाद मेयर कौशलेंद्र सिंह ने अपने कार्यकाल में इस तरह का कोई प्रस्ताव सदन में नहीं आने दिया। फिर अब मेयर रामगोपाल मोहले के कार्यकाल में 2015 में एक और मसौदा पारित हुआ जिस पर मुहर लगी है।
तब निगम ने ब्लू प्रिंट तैयार करने का दिया था सुझाव

मेयर सरोज सिंह के कार्यकाल में जब नगर निगम सीमा विस्तार की बात आई तो सदन ने एक स्वर से प्रस्ताव पारित किया कि प्रस्तावित गांवों को निगम सीमा में शामिल करने के लिए पहले उन गांवों के विकास के बाबत समयबद्ध ब्लू प्रिंट तैयार किया जाए। लोगों को बताया जाए कि कब तक सीवर लाइन पड़ेगी, पेयजल पाइप लाइन कब तक डाली जाएगी, स्ट्रीट लाइटें कब तक लग जाएंगी। सड़कें कब तक बन जाएंगी। पार्क आदि कब तक तैयार होंगे।
वीडीए की सूची में हैं 200 अवैध कालोनियां
वीडीए के रिकार्ड बताते हैं कि उसकी सूची में 200 कालोनिया ऐसी हैं जिनका ले आउट स्वीकृत नही है। ऐसी ज्यादातर कालोनियां इन्हीं इलाकों में हैं। यह दीगर है कि इन कालोनियों में रहने वाले मतदाताओं की सहूलियत के मद्देनजर कभी विधायक तो कभी सांसद निधि से सड़कें बन जाती हैं, सीवर लाइन डाल दी जाती है, पेयजल पाइप लाइन भी पड़ जाती है पर पूरी नहीं। सफाई कभी नहीं हो पाती।

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