यकीनन पिछले कई वर्षों से मु_ी भर जुनूनी श्रमदानियों की बदौलत बेतवा के घाटों, नदी, उसके आसपास के उद्यानों और मुक्तिधाम की सूरत काफी हद तक संवरी है, लेकिन इसमें सरकारी मशीनरी और जनसहयोग की भारी कमी साफ दिखाई देती है। तमाम प्रयासों के बावजूद जागरुकता की कमी है और लोग अब भी घरों से लाई पूजा सामग्री और अन्य सामान भी बेतवा में उड़ेल देते हैं। मुर्दों की राख चरणतीर्थ के पास उड़ेलने के साथ ही वहां बड़ी तादाद में प्लास्टिक की बोरियां भी फेंक जाते हैं। पिछले वर्षों में पत्रिका के अमृतम् जलम् के तहत खारी विसर्जन घाट को बिल्कुल साफकर दिया गया था, प्राचीन धर्मशाला भी साफ निकल आई थी, लेकिन लोगों की नासमझी ने फिर उसे बदहाल कर दिया है। प्रशासन चेते न चेते, लेकिन शहर के लोगों को अपनी इस धरोहर को बचाने के लिए प्रयास करना होंगे, ताकि हम फिर आने वाले वर्षों में कह सकें कि बेतवा का जल अमृत था और अमृत ही है।
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी पत्रिका का पर्यावरण और जल संरक्षण से जुड़ा महत्वपूर्ण अभियान अमृतम् जलम् 19 मई से शुरू हो रहा है। सुबह 6.30 बजे से बेतवा तट पर लखेरा घाट के पास पुराने पुल के नीचे श्रमदान के जरिए सफाई कर बेतवा की गंदगी को साफ किया जाएगा। इसमें सभी पर्यावरण प्रेमियों और शहर वासियों की सहभागिता रहेगी।