शैलचित्र विशेषज्ञ डॉ नारायण व्यास ने इन शैलचित्रों को ताम्रकालीन और करीब 4 हजार साल पुराना बताया है। इन शैलचित्रों के बारे में बताते हुए डॉ व्यास ने कहा कि शैलचित्रों में पशुओं का चित्रण है जो गेरुआ रंग के प्राकूृतिक रंगों से बनाए हैं। ये शैली से ताम्रश युगीन प्रतीत होते हैं जो करीब चार हजार साल प्राचीन हो सकते हैं। इनमें से कुछ का रंग हल्का हो गया है। यहां 15-16 वीं शताब्दी के कुछ शैलचित्र भी मिले हैं जिनमें पूजा से संबंधित चित्रों को चट्टानों पर उकेरा गया है। डॉ व्यास ने कहा कि प्रशासन को चाहिए कि इन दुर्लभ शैलचित्रों को सहेजने के प्रयास करे। गौरतलब है कि विदिशा के पास ही निमखिरिया-जाफरखेड़ी की पहाड़ी पर भी शैलचित्र थे, लेकिन प्रशासन की अनदेखी और अवैध पत्थर उत्खनन के चलते ये शैलचित्र अब पूरी तरह खत्म हो चुके हैं।