तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणा पर गुलाबगंज में इस कॉलेज की शु्ररूआत 2015 में हुई थी। भवन नहीं था, इसलिए माध्यमिक शाला के 4 जर्जर कमरों में कॉलेज लगाना शुरू हुआ। लेकिन पांच साल तक कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की जा सकी। संतापुर में कॉलेज का नया भवन बन रहा है, लेकिन कब बनेगा? इस बीच यदि कोई हादसा हो गया तो जिम्मेदार कौन होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं। मौजूदा जर्जर भवन की हालत ये है कि फर्श के पत्थर उखड़ रहे हैं। ऊपर की सीमेंट की चादरें टूट रही हैं। दीवारें दरक रहीं हैं। बारिश में बैठना तो दूर सामान बचाना तक मुश्किल होता है।
कॉलेज में विद्यार्थियों की फीस और फार्म भरने से लेकर सारा ऑफिस वर्क भी ऑनलाइन हो गया है। लेकिन इस कॉलेज में न तो इंटरनेट है और न डोंगल की व्यवस्था। ऐसे में कॉलेज के स्टॉफ और विद्यार्थियों को काफी असुविधा का सामना करना पड़ता है। प्रभारी प्राचार्य डॉ संजीव जैन कहते हैं कि डोंगल की व्यवस्था तक नहीं। नोडल कॉलेज प्राचार्य डॉ मंजू जैन कहती हैं कि डोंगल दिया गया है। सच जो भी हो, लेकिन गुलाबगंज के स्टॉफ का कहना है कि यहां ऑनलाइन का काम हम अपने मोबाइल के नेट से करते हैं।
गुलबागंज कॉलेज में जब सीसीई की परीक्षाएं कागजों को स्टेपल कराकर लिए जाने संबंधी स्थिति पर सवाल किया गया तो प्रभारी प्राचार्य डॉ संजीव जैन और स्टॉफ का कहना था कि स्टेशनरी ही नहीं मिलती। कई बार मांगपत्र भेजा गया, लेकिन आवश्यकतानुसार स्टेशनरी नहीं मिलने से ये स्थिति बनती है। मजबूरन स्टॉफ ने खुद कागज खरीदकर विद्यार्थियों को दिए हैं उन्हीं पर परीक्षा कराई है।
गुलाबगंज के इस सरकारी कॉलेज मेें लायबे्ररी के लिए विदिशा से 4-6 अच्छी अलमारियां भेज दी गईं हैं। जगह न होने से यहां कुछ अलमारियां दहलान में पड़ी हैं। लायबे्ररी की अलमारियां खाली पड़ी हैं। कॉलेज में स्थाई लायब्रेेरियन है, लेकिन किताबों का अभाव है। स्टॉफ का कहना है कि विद्यार्थियों को इश्यु करने लायक कोई किताब यहां नहीं है।
महाविद्यालय में अनुसूचित जाति-जनजाति के विद्यार्थियों को शासन की योजना के अनुरूप १५०० रुपए प्रति विद्यार्थी के मान से कोर्स की किताबें देने का प्रावधान है। लेकिन फरवरी बीत गया, केवल मार्च का महीना शेष है, अप्रेल में परीक्षाएं होंगी, लेकिन अब तक किताबों का वितरण नहीं हो सका है। यहां अब तक 1500 रुपए में से 14 विद्यार्थियों को 315, 15 को 270 तथा 13 विद्यार्थियों को मात्र 225 रुपए के मान से किताबें मिल सकी हैं। नोडल कॉलेज की मानें तो मप्र हिन्दी गं्रथ अकादमी से ही पुस्तकें प्राप्त नहीं हुई हैं।
महाविद्यालय में नियमित खेल प्रशिक्षक की पदस्थापना है, लेकिन यहां खेलने को न तो मैदान है और न ही खेल सामग्री। ऐसे में खेल प्रशिक्षक विद्यार्थियों को बोर्ड पर ही खेलों की जानकारी देने को मजबूर हैं।
गुलाबगंज के सरकारी कॉलेज में नए आने वाले किसी भी प्राध्यापक को अब तक वेतन का भुगतान नहीं हो सका है। तीन-चार माह बीतने के बाद भी वेतन न मिलने से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उधर नोडल कॉलेज का कहना है कि वेतन स्लिप नहीं निकल पाने से दिक्कत आ रही है।
समस्या इसलिए…
जब से महाविद्यालय शुरू हुआ है तब से गुलाबगंज शासकीय महाविद्यालय के आहरण-संवितरण अधिकार विदिशा के शासकीय कन्या महाविद्यालय के पास ही हैं, जो जिले का नोडल कॉलेज है। ऐसे में कुछ समन्वय की कमी और कुछ नोडल कॉलेज को इन कॉलेजों की समस्याओं का भान न होने के कारण दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। छोटे-छोटे खर्चोँ के लिए भी गुलाबगंज कॉलेज को विदिशा की स्वीकृति का इंतजार करना पड़ता है।
वर्जन…
जर्जर स्थिति का मुझे नहीं बताया गया, ऐसा है तो वैकल्पिक व्यवस्था कराकर जल्दी ही कॉलेज को शिफ्ट कराएंगे। यह सही है कि हिन्दी ग्रंथ अकादमी से अब तक पुस्तकें नहीं आई हैं। लायबे्ररी के लिए गुलाबगंज से पुस्तकों की कोई मांग नहीं आई। गुलाबगंज में नेट नहीं है, लेकिन डोंगल दे रखा है। स्टेशनरी लगातार भेजी जाती है।
-डॉ मंजू जैन, प्राचार्य, नोडल कॉलेज विदिशा