अभी जो मौजूदा रामलीला परिसर है, वहां करीब 118 साल पहले जंगल सा नजारा था। चौतरफा झाडिय़ां थीं और ऊंचे-नीचे टीले थे। सन् 1901 में पं. विश्वनाथ शास्त्री ने रामलीला के लिए इस जगह का जब चयन किया तो श्रमदान के जरिए लोगों ने झाडिय़ां साफ कीं और अपने स्तर पर मैदान को रामलीला के लायक बनाया। बुजुर्ग बताते हैं कि अयोध्या और लंका भवन के नाम पर दो कमरे भी शुरुआत में नहीं बने थे और किसी तरह टपरियां बनाकर और तम्बू लगाकर रामलीला की शुरुआत की गई थी। समय के साथ हालात बदले और 1935-40 के बीच अयोध्या के छोटे से भवन का निर्माण दहलान हुआ। सन् 1952-53 में चार कमरों के रूप में हुआ। यहां अयोध्याबाई नामकी धर्मपरायण महिला ने भी चार कमरों का निर्माण कराया। वर्तमान अयोध्या भवन की गुम्बज 1965-66 में बनी।
रामलीला देखने के लिए आने वाले लोग यहां अपने साथ लाई दरी-चटाईयां और फट्टे लाकर उन पर बैठते और रामलीला का आनंद लेते थे। इसके बाद वर्ष 1999-2000 में यहां विशाल दर्शक दीर्घा का स्टेडियम के रूप में निर्माण किया गया। अब महिलाएं और पुरुष अलग-अलग दीर्घाओं में बैठकर रामलीला का आनंद लेते हैं। इसके साथ ही पहले की 20 बाय 25 की दहलान के रूप में मौजूद लंका भवन का भी विस्तार हुआ और आज भव्य लंका भवन भी यहां मौजूद है, जहां रावण का दरबार लगता है।