1956 से प्रक्रिया में आया श्रीरामलीला समिति का संविधान 1962 में लागू हो सका और रामलीला समिति का विधिवत गठन कर कलेक्टर को उसका पदेन अध्यक्ष बनाया गया। रामलीला के प्रधानसंचालक पं. चंद्रकिशोर शास्त्री तथा मानसेवी सचिव डॉ सुधांशु मिश्र ने बताया कि यह अपने आप में ऐसी अनोखी रामलीला है जिसका गजट नोटीफिकेशन किया गया है और उसका अपना लिखित संविधान होने के साथ ही कलेक्टर उसके अध्यक्ष होते हैं।
रामलीला के प्रथम प्रधान संचालक पं. विश्वनाथ शास्त्री ने तत्कालीन मुख्यमंत्री तख्तमल जैन से अनुरोध किया था कि रामलीला तो मैंने शुरू करा दी, मेला भी भरने लगा, लेकिन अब रामलीला को कुछ ऐसा स्वरूप दे दो जिससे यह आगे भी निर्विघ्न रूप से व्यवस्थित चलती रहे। इस पर बाबू तख्तमल जैन ने इसका संविधान बनाने की तैयारी की।
इसमें उनके साथ मध्यभारत विधानसभा के तत्कालीन स्पीकर बाबू रामसहाय, नेता प्रतिपक्ष निरंजन वर्मा, द्वितीय प्रधानसंचालक चंद्रशेखर शास्त्री, रघुनाथ प्रसाद पांडे आदि के प्रयासों से रामलीला मेले का संविधान बना, जो 1956 से प्रक्रिया में आया, लेकिन उसको1962 में लागू किया जा सका।
संविधान में प्रावधान किया गया कि रामलीला मेला समिति के अध्यक्ष कलेक्टर होंगे। इसमें 12 सदस्य होते हैं, मानसेवी सचिव भी सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं, जबकि दो सदस्यों को शासन द्वारा और दो नपा के पार्षदों को मनोनीत किया जाता है। इसके अलावा रामलीला रजिस्टर्ड सभा और लीला दर्शन समिति भी होती है।
विदिशा की रामलीला में 24 जनवरी को दशरथ सभा की लीला होगी। राजा दशरथ अपने मंत्रियों और गुरजनों के साथ सलाह कर राम को राज्याभिषेक देना चाहेंगे। इसके लिए सबकी बातें सुनी जाएंगे। राजा दशरथ अपना पक्ष भी बताएंगे कि राम को क्यों राजा बनाना चाहिए। यहां महत्वपूर्ण है कि यह रामलीला 118 वां वर्ष है, लेकिन रामलीला सूत्रों के मुताबिक इस अवधि में मात्र चार लोगों ने ही दशरथ सभा के दिन राजा दशरथ का किरदार निभाया है। इस किरदार को निभाने वालों में द्वितीय प्रधानसंचालक चंद्रशेखर शास्त्री, शंकरदयाल शर्मा और गोविन्द प्रसाद शास्त्री रहे हैँं।
जबकि वर्तमान में मुकेश नारायण शर्मा लम्बे समय से दशरथ का पात्र बन रहे हैं। इस बार मानसेवी सचिव डॉ सुधांशु मिश्र कैकई संवाद और श्रवण कुमार की कथा के दिन दशरथ की भ्ूामिका निभाएंगे।