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गजकेसरी योग में आज घर-घर विराजेंगे भगवान गणेश

गणेशोत्सव की शुरुआत गुरुवार को विशेष गजकेसरी योग में हो रही है। मिट्टी के गणेश घर-घर बनाने की पत्रिका की मुहिम का तेजी से असर हो रहा है।

विदिशाSep 13, 2018 / 09:52 am

मनोज अवस्थी

ganesh

गजकेसरी योग में आज घर-घर विराजेंगे भगवान गणेश

विदिशा. गणेशोत्सव की शुरुआत गुरुवार को विशेष गजकेसरी योग में हो रही है। यह सुखद संयोग है कि मिट्टी के गणेश घर-घर बनाने की पत्रिका की मुहिम का तेजी से असर हो रहा है। पिछले चार साल से पत्रिका द्वारा चलाई जा रही मिट्टी के गणेश की मुहिम इस बार व्यापक रूप से प्रभावी दिखाई दी है।
वात्सल्य स्कूल, साकेत एमजीएम, ओलम्पस स्कूलों में मिट्टी की गणेश प्रतिमाएं बनाने के लिए वर्कशाप आयोजित किए गए। अब बेतवा उत्थान समिति ने मिट्टी की प्रतिमाएं बनाकर निशुल्क वितरित कीं। गुरूवार को घर-घर भगवान गणपति की मिट्टी की प्रतिमाओं की स्थापना भक्तिभाव से की जाएगी।

बेतवा उत्थान समिति के मीडिया प्रभारी राजकुमार अग्रवाल ने कहा कि मंगलवार को साकेत एमजीएम स्कूल में कक्षा ८ और ९ के विद्यार्थियोंं को मिट्टी के गणेश बनाने का प्रशिक्षण दिया था। उधर वात्सल्य स्कूल मेंं पिछले ८ दिन से मिट्टी के गणेश बनाने के लिए वर्कशॉप लगाया गया, जिसमें २०० से ज्यादा प्रतिमाएं बच्चों ने बनाईं। इसी तरह अब बेतवा उत्थान समिति ने कन्हैया हजारी के बाड़े में राजकुमार अग्रवाल और सुशील अग्रवाल द्वारा बनाई गई ५१ गणेश प्रतिमाओं का वितरण किया गया।

जबकि बाजार में भी इस बार अपेक्षाकृत मिट्टी की ही अधिकांश प्रतिमाएं बिकीं। हालांकि उनके दाम बहुत अधिक थे। मात्र ६ इंच की प्रतिमा भी २०० रूपए तक की बिकीं। ये प्रतिमाएं भी बिना रंग रोगन वाली थीं। सबसे छोटी प्रतिमा ६० रूपए की बिक रही है। लेकिन प्लास्टर ऑफ पेरिस की प्रतिमाएं बहुत कम हुईं हैं। यह अच्छा संकेत है। जबकि कईलोगों ने अपने ही घरो में ईकोफे्रंडली प्रतिमाएं बनाई गई हैं।

 

मप्र की सबसे प्राचीन बालरूप गणेश प्रतिमा विदिशा में

विदिशा में गणेशोत्सव आज से शुरू हो रहा है। पूरे देश में गणपति की धूम होगी, लेकिन मप्र की सबसे प्राचीन गणेश प्रतिमा विदिशा की उदयगिरी में है। यह प्रतिमा १८०० वर्ष प्राचीन है। चंद्रगुप्त द्वितीय के काल में गणेश प्रतिमाओं को ज्यादा अलंकृत नहीं किया जाता था, प्रमाण मौजूद है, क्योंकि यहां मौजूद गणेश प्रतिमा अपने हाथी रूप में ही मौजूद है। उसका विशाल और चौड़ा मस्तक हाथी के समान है, जिस पर कोई मुकुट नहीं है। गले में बस हार की तरह एक कंठा मौजूद दिखता है, बाकी पूरी प्रतिमा पर वस्त्रों का आवरण भी दिखाई नहीं देता। इसे बालरूप गणेश माना गया है। पुरातत्ववेत्ता डॉ नारायण व्यास के मुताबिक मप्र में इससे प्राचीन गणेश प्रतिमा और कहीं नहीं मिलती। उदयगिरी में मौजूद यह प्रतिमा सबसे पुरानी है।

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