राज्य और केंद्र सरकार भी शिक्षा पर फोकस किए हुए है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अपने पसंद के विषयों का चुनने का पूरा अधिकार है, वहीं प्रदेश में सीएम राइज स्कूलों के नाम से सरकारी स्कूलों को भी प्रायवेट स्कूलों के बराबरी में लाकर खड़ा करने की तैयारी है। बच्चों को पुस्तकें, साइकिल, यूनीफार्म सब दिया जा रहा है, लेकिन फिर भी विदिशा जिले के करीब 10 हजार बच्चे आठवीं से दसवीं के बीच स्कूल छोड़ बैठे हैं। और ये आंकड़ा सिर्फ एक वर्ष के बीच का है। शिक्षा विभाग के रिकार्ड में ये बच्चे अब स्कूल नहीं आते। जिले में ऐसे बच्चों की सबसे ज्यादा संख्या सिरोंज ब्लॉक में है।
दरअसल आठवीं तक किसी को फेल न करने की नीति और नवीं में आते ही सीधे अपेक्षाकृत जटिल पाठ्यक्रम से सामना इसका मुख्य कारण माना जा रहा है। विदिशा जिले का सिरोंज ब्लॉक ऐसा है जहां सबसे ज्यादा बच्चों ने अधूरी पढ़ाई छोड़ स्कूल को अलविदा कहा है। इस ब्लॉक में कक्षा 8 वीं से 12 वीं के बीच 3088 बच्चों ने स्कूल छोड़ा है। जबकि पूरे जिले में इसी स्तर पर स्कूल छोडऩे वाले बच्चों की संख्या 10 हजार 931 है।
शिक्षाविदों की मानें तो सबसे ज्यादा शालात्यागी बच्चे कक्षा 8 के बाद ही होते हैं। इसका मुख्य कारण है आठवीं तक फेल न करने की शासन की नीति। पहले पांचवींआठवीं बोर्ड परीक्षाएं होती थीं, जिसमें पासफेल का डर होता था, शिक्षक को भी चिंता रहती थी अपने स्कूल के रिजल्ट की। लेकिन अब किसी को भी आठवीं तक फेल न करने की नीति के कारण पढे लिखे बिना ही बच्चे नवीं तक पहुंच जाते हैँ। ऐसे में जब उनका नवीं कक्षा के अपेक्षाकृत कठिन कोर्स से सामना होता है तो उनके हाथपांव फूल जाते हैं और वे पढ़ाई छोड़ बैठते हैं। पहले आठवीं बोर्ड में वही बच्चे पास हो पाते थे जो वाकई थोड़ा बहुत ही सही, लेकिन पढऩा लिखना जानते थे। लेकिन अब वह स्थिति नहीं है और सीधे नवीं में आकर उन्हें जटिल पाठ्यक्रम से सामना करना होता है, यही कारण है कि नवीं का रिजल्ट भी 50 फीसदी तक नहीं पहुंच पाता।
क्या कहते हैं जिला शिक्षा अधिकारी
जिला शिक्षाधिकारी अतुल मुदगल इस बारे में बताते हैं कि सामान्यत: आठवीं तक बच्चे पढ़ाई नहीं छोड़ते, लेकिन आठवीं से नवीं तक आते ही बच्चे गायब हो जाते है। दरअसल आरटीइ के तहत हम आठवीं तक के बच्चों को तो जबरन स्कूल में प्रवेश दिला सकते हैं, लेकिन आठवीं के बाद ऐसा नहीं कर सकते। फिर कोविड में भी स्कूल न खुलने से कई बच्चों ने प्रवेश नहीं लिया था। खासकर बाहर से आने वाली छात्राओं ने प्रवेश नहीं लिया। जिले के लटेरी सिरोंज क्षेत्र में स्कूल अपेक्षाकृत दूरदूर हैं, रास्ते में जंगल और काफी सुनसान रहता है, इसलिए पालक भी अपनी बेटियों को दूर स्कूल भेजने मेें हिचकते हैं। फिर भी हम प्रयास कर रहे हैं कि अब तो कोविड भी नहीं है, इसलिए शत प्रतिशत प्रवेश का लक्ष्य पूरा करें। संकुल स्तर पर और शाला स्तर पर भी शिक्षकों को ऐसे बच्चे तलाशकर उनके घर जाकर प्रवेश के लिए मनाने को कहा गया है।
ये कारण हैं पढ़ाई अधूरी छोडऩे के
-आठवीं तक तो सभी पास हो जाते हैं, लेकिन नवीं में पहुंचते ही अपेक्षाकृत जटिल कोर्स का सामना करना पड़ता है।
-ग्रामीण क्षेत्र के कई बच्चे पढ़ाई अधूरी छोड़ जीविकोपार्जन में लग जाते हैं।
-आठवीं के बाद आतेआते बच्चे परिवार और खेती मजदूरी के काम में लगने लगते हैं।
-गांव में आज भी कई जगह स्कूल दूर हैं। ऐसे मेें पालक बच्चियों को स्कूल नहीं भेजते।
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ग्रामीण क्षेत्रों के कई बच्चे जीविकोपार्जन के लिए पढ़ाई अधूरी छोड़ देते हैं। वे रोजगार से जुडकऱ खुद कमाने और परिवार को आर्थिक मदद देने में ज्यादा जोर देते हैं। फिर छोटी कक्षाओं से आए बच्चे नवीं दसवीं की पढ़ाई में खुद को फिट न पाकर पढ़ाई छोड़ देते हैं।
-ज्ञानप्रकाश भार्गव, प्राचार्य उत्कृष्ट विद्यालय गंजबासौदा