शिक्षाविद् विजय चतुर्वेदी बताते हैं कि डंडापुरा का वह स्कूल भवन जिसमें अब एमएलबील संचालित है, वहां पहले बालकों के लिए माध्यमिक शाला लगती थी। 1960 में विदिशा में कन्या उमावि शुरू हुआ तो उसका संचालन नीमताल पर स्थित उस भवन में हुआ जिसे अब माधवगंज क्रमांक एक कहा जाता है। लेकिन जैसे ही एक सत्र बीता तो शहर के लोगों और पालकों ने इस जगह छात्राओं के स्कूल पर आपत्ति जताई, क्योंकि उस समय यहां जंगल सा था, जिस जगह सडक़ है, वहां कब्रस्तान और गोचर की जमीन थी। नीमताल जलाशय इतना विशाल था कि स्कूल की सीढिय़ों तक उसकी लहरें हिलोरें मारती थीं। इस परेशानी को वाजिब मानते हुए प्रशासन ने विकल्प निकाला और डंडापुरा के स्कूल भवन में शासकीय कन्या उमावि को शिफ्ट कर दिया और इस नीमताल के पास वाले भवन में बालकों की माध्यमिक शाला शिफ्ट कर दी गई। इसके करीब एक-दो साल बाद ही शासकीय कन्या उमावि को महारानी लक्ष्मीबाई के नाम से एमएलबी उमावि नाम दे दिया गया। यह नाम छात्राओं में लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगना, साहस की प्रतिमूर्ति और देशभक्ति भरने के लिए मप्र शासन ने दिया था।
स्वतंत्रता सेनानी ने स्थापित कराई प्रतिमा
विदिशा में इस वीरांगना के नाम से स्कूल की स्थापना के 60 वर्ष बाद भी लक्ष्मीबाई की कोई प्रतिमा नहीं थी। स्वतंत्रता सेनानी रघुवीर चरण शर्मा ने अपनी सम्मान निधि की राशि से लक्ष्मीबाई की घोड़े पर सवार प्रतिमा मंगाई। ट्रस्ट के लोगों ने प्रतिमा स्थापना के लिए एमएलबी के पास का ही स्थान सबसे मुफीद समझा और 30 अक्टूबर 2020 को सेनानी रघुवीर चरण और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल ने इस प्रतिमा का अनावरण किया।