विपक्ष की पार्टी मे जिम्मेदार पद पर बैठे नेता के द्वारा उक्त जमीन को कोडिय़ों के भाव खरीदकर सांठगाठं करके करोड़ों में विक्रय कर दी गई। नियमानुसार वन विभाग की भूमि किसी भी स्थिति में दूसरे विभाग मे स्थानांतरित भी नहीं होती है। भूमि विक्रय तो हो ही नहीं सकती है। मगर तहसील के अधिकारियो के नियमो को ही बदलकर अपने हिसाब से निमय बनाकर तत्कालीन पटवारी और अधिकारियो ने इस काम को अंजाम दे दिया और वन विभाग की जमीन को ही बैच दिया गया।
शासकीय पट्टे की जमीन के विक्रय और नामातंरण के मामले की उच्च स्तरीय समिति से निष्पक्ष जांच होती है, तो अधिकारी-कर्मचारियों के साथ रसूखदार नेताओं की भी पोल खुल जाएगी। क्योंकि इन्होने अपने पावर और पैसे की दम पर शासन के नियमों को ही ताक पर रख कर न होने वाले काम को ही करवा और करोड़ों रुपए का घोटाला कर दिया गया।
शासकीय पट्टे की जमीन को विक्रय करने वाले, खरीदने वाले एवं जिन अधिकारी-कर्मचारियों की मिलीभगत से इस फर्जीवाड़े को अंजाम दिया गया था। उन सभी पर कार्रवाई करने एवं जमीन को घोषित करने के लिए दो माह पूर्व गोपाल प्रजापति ने एसडीएम से शिकायत की थी, लेकिन अधिकारियों ने कार्रवाई करने के नाम पर खानापूर्ति कर दी गई। जिन सदस्यों के नाम पर बंटवारा हुआ उन्हें नोटिस जारी करके जवाब मांगा। शेष जिन लोगों ने नियम -कायदे, कानूनों को ताक पर रखकर जमीन खरीदकर विक्रय कर दी है। उनको तो तहसील से नोटिस भी नहीं भेजा गया है। कई सदस्यों ने जवाब में लिखा है कि जमीन को गलत विक्रय किया गया है। इसलिए इस जमीन को शासकीय घोषित किया जाए। इसके बाद भी अधिकारी कार्रवाई नही कर पा रहे है।
-सबकी मिली भगत से इस फर्जीवाड़े को अंजाम दिया गया है, तभी तो अधिकारी कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। अब मैं इस मामले को न्यायालय मे लेकर जाउंगा। – गोपाल प्रजापति, शिकायतकर्ता