चंदेल परिवार के गजेंद्र सिंह और युवराज सिंह बताते हैं कि महोबा से करीब 400 साल पहले हमारा परिवार सांगुल आया था। सांगुल जब हमारे पूर्वज दुर्जनसाल को जागीरदारी में मिली तो उन्होंने यहां गढ़ी बनवाई और हमारा परिवार यहां बस गया। इतिहास में दर्ज है कि 1739-40 में इमलिया गांव भी दुर्जनसाल को जागीरदारी में मिला। इस परिवार को 12 गांव की जागीरदारी मिली, लेकिन उसका मुख्यालय सांगुल रहा। चंदेल परिवार के इन लोगों की कुलदेवी विंध्यवासिनी शारदा माई मानी जाती हैं। इस परिवार ने सांगुल में मठ और मंदिरों का निर्माण कराया जो अभी भी मौजूद हैं। गढ़ी में भले ही वक्त के साथ बदलाव आ गया हो, लेकिन उसका मुख्य प्रवेश द्वार आज भी हाथी वाले द्वार के रूप में ही आकार लिए हुए है, उसके फाटक पर अब भी बड़े-बड़े कीले लगे हुए हैं, जो मुश्किल के समय शत्रु के आक्रमण से बचने के लिए लगाए जाते थे। गजेंद्र सिंह और युवराज सिंह बताते हैं कि उनके यहां हाथी था जिस पर बैठकर ही गढ़ी के अंदर परिवार के लोग प्रवेश करते थे। लेकिन ये अब बीते जमाने की बातें हो गईं।
सांगुल गांव में हाइस्कूल तक शिक्षा का इंतजाम है, लेकिन पांच हजार आबादी वाले इस गांव में स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर कुछ नहीं। उपचार के लिए लोग सीधे 22 किमी दूर शमशाबाद ही जाते हैं। इसी तरह हायरसेकंडरी की पढ़ाई के लिए बच्चों को वर्धा जाना पड़ता है। गांव में सडक़ तो पक्की है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से नलजल योजना अनियमित हो गई है। हैंडपंप बंद पड़े हैं। फसलें बरसाती नालों और खुद के साधनों पर टिकी हैं। सांगुल में केंद्रीय वन रोपणी है, इसके जरिए मजदूरों को काम मिल जाता है। काफी मजदूर खेतों में काम करते हैं, लेकिन फिर भी पलायन की समस्या है। स्कूल और गांव के बीच पुलिया बहुत नीची होने से बारिश में आवागमन बाधित होता है।
गांव की मजबूती
1. भोपाल-सिरोंज रोड पर स्थित गांव।
2. हाइस्कूल तक पढ़ाई का इंतजाम।
3. वन विभाग की नर्सरी मौजूद है।
4. गांव में पक्की सडक़ों की मौजूदगी।
गांव की कमजोरी
1. स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर कुछ नहीं।
2. नल जल योजना बंद पड़ी है।
3. रोजगार के लिए पलायन मजबूरी है।
4. बारिश में नाले के कारण आवागमन बंद रहता है।