एक ऐसे ही वीर और स्वाभिमानी पुरूष थे राजा ‘श्रीमंत महाराजा तुकोजीराव होलकर द्वितीय’। भारतीय इतिहास के इस राजा ने अंग्रेजों के सामने सिर झुकाना तो दूर बल्कि उन्होंने अंग्रेजों की सत्ता को कभी घांस तक नही डाली।
महाराजा तुकोजीराव होलकर द्वितीय ने अंग्रेजों को करोड़ों रुपयों का कर्जा देकर खुद अंग्रेजों को ही अपना कर्जदार बना लिया था। उन्होंने स्वयं अंग्रेजो को अपने सामने भीख मांगने पर मजबूर किया।
उस दौरान ‘मध्य भारत के महाराजा’ के नाम से जाने जाने वाले इस राजा ने अंग्रेजों को एक करोड़ रुपये दिये थे। उस समय अंग्रेज रेलवे प्रकल्प पर काम कर रहे थे। इससे आम जनता को काफी लाभ होने वाला था। इसी बात को ध्यान में रखते हुए महाराजा तुकोजीराव होलकर ने इस बड़ी रकम को कर्जस्वरुप दिया था।
इस कर्ज के बलबूते अंग्रेजों ने इंदौर के पास के तीन रेलवे स्टेशनों को जोड़ने का काम सफलतापूर्वक पूरा किया। महाराजा द्वारा दिए गए इन रुपयों से अंग्रेजों ने सात वर्ष के अंदर ‘खंडवा-इंदौर’, ‘इंदौर-रतलाम-अजमेर’ और इंदौर-देवास-उज्जैन’ इन तीन रेलवे लाइनों का निर्माण किया। इनमें से ‘खंडवा-इंदौर’ लाईन को ‘होलकर स्टेट रेल्वे’ नाम से संबोधित किया जाता है।
इतना ही नहीं आम जनता को होने वाले लाभ को ध्यान में रखते हुए उन्होंने रेलमार्ग निर्माण के लिए अंग्रेजों को मुफ्त में जमीन भी दे दी थी।
यह इलाका पहाड़ी होने के कारण यहां रेल की पटरियां बिछाने में काफी मेहनत लगी। इस रेल की पटरी को बनाने के दौरान बीच में आई नर्मदा नदी पर भी एक बड़ी सी पूल बनाई गई।
इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इंदौर में टेस्टिंग के लिए लाया गया पहला भाप का इंजिन हाथियों की मदद से खींचकर रेलवे पटरियों तक लाया गया। इस घटना को भारतीय इतिहास और भारतीय रेलवे के इतिहास में महत्वपूर्ण दर्जा प्राप्त है।