घड़े के पानी को पी जाता है राक्षस इस घड़े के बारे में एक प्राचीन मान्यता है कि इसमें कितना भी पानी भरा जाए, यह कभी नहीं भरता है। ऐसा माना जाता है कि इस घड़े में डाले जाने वाले पानी को राक्षस पी जाता है। हैरानी की बात यह है कि आज भी वैज्ञानिक इसके बारे में कोई पता नहीं लगा पाए है कि ऐसा क्यों और कैसे होता है।
साल में केवल दो बार खोला जाता है ये घड़ा इस घड़े के बारे में लोगों का कहना है कि यह परंपरा पिछले 800 सालों से ऐसे ही चली आ रही है। इस घड़े को साल में केवल दो बार ही खोला जाता है, इस पर रखे हुए पत्थर को शीतला सप्तमी पर और ज्येष्ठ माह की पूनम पर ही हटाया जाता है। दोनों ही समय गांव की सभी महिलाएं घड़े में पानी भरने का प्रयत्न करती हैं, लेकिन कितना भी पानी डाला जाए पर यह घड़ा भरता ही नहीं है। मान्यतानुसार मंदिर का पुजारी आखिर में माता के चरणों में दूध का भोग लगाता है, जिसके बाद ही घड़ा भर जाता है। दूध का भोग लगाने के बाद घड़े को बंद कर दिया जाता है।
वैज्ञानिक भी हैं हैरान इस घड़े के पर कई बार वैज्ञानिकों द्वारा शोध किया जा चुका है, लेकिन अभी तक इसके बारे में कोई भी पता नहीं लगा पाया है। जो भी पानी डाला जाता है वह कहां चला जाता है, इसके रहस्य को वैज्ञानिक भी जानने में नाकामयाब रहे हैं।
800 साल पहले रहता था एक राक्षस गांव वालों के अनुसार आज से लगभग 800 साल पहले बाबरा नाम का एक राक्षस रहता था। इस राक्षस के आतंक से गांव वाले बहुत दुखी थे, वह किसी भी ब्राह्मण के घर होने वाली शादी के दिन दुल्हे को मार देता था। राक्षस के प्रकोप से बचने के लिए गांव के सभी ब्राह्मणों ने शीतला माता की तपस्या की, इसके बाद एक ब्राह्मण के सपने में शीतला माता आई और बताया कि जब उसकी बेटी का विवाह होगा, उसी दिन वह राक्षस को मार देंगी।
बच्ची के रूप में प्रकट हुई शीतला माता समय बीता और विवाह का दिन नजदीक आया, उस दिन माता एक छोटी बच्ची के रूप में प्रकट हुई और अपने घुटनों से दबोंचकर राक्षस का अंत कर दिया। राक्षस ने माता से वरदान मांगा कि उसे बहुत ज्यादा प्यास लगती है, इसलिए उसे साल में दो बार ढेर सारा पानी पिलाया जाए। शीतला माता ने उसे वरदान दे दिया, उसी दिन से गांव में यह परंपरा चल रही है।