इसी गांव में स्थित माता के मंदिर के 70 साल के पुजारी आशाराम बताते हैं कि आज से लगभग 100 साल पहले इस गांव के 3 बागी भाइयों ने नागाजी धाम के महाराज कंधरदास के कहने पर बीहड़ो वाला रास्ता छोड़ कर गौ हत्या रोकने का संकल्प किया था और इस संकल्प को पूरा करने के लिए तीनों भाइयों ने मुरार के कसाईखाने पर हमला कर दिया था, क्योंकि वहां गौ मांस बेचा जाता था।
उस कसाईखाने को खत्म करने के बाद इन भाइयों ने ग्राम कौंथर में शरण ले ली। इस घटना से नाराज उस समय के ब्रिटिश राज के यंग साहब नामक अंग्रेजी अफसर ने इस गांव को बर्बाद करने के लिए सेना को आदेश दे दिया था। लेकिन दो महीने तक अंग्रेजों की सेना गांव के मुट्ठी भर लोगों के सामने अंदर नहीं घुस पाई, इस बात से अंग्रेज परेशान हो गए और उन्होंने अपने एक जासूस को पता लगाने के लिए गांव के अंदर भेजा कि अखिर मामला क्या है।
उस जासूस ने अंग्रेज अफसर को बताया कि गांव मे एक कुआं है। जिसका पानी पीने से लोगों में स्वाभिमान और आत्मसम्मान का भाव पैदा हो जाता है, तब अंग्रेजों ने अन्य लोगों को भेज कर इस कुएं को तथा अन्य कुओं को पटवा दिया और तब कहीं जाकर अंग्रेज सेना गांव के अंदर घुस पाई। ब्रिटिश गजीटियर में इस कुएं के बारे में ये लिखा हुआ है – “कौंथरगांव के प्राचीन कुएं का पानी पीकर लोग स्वाभिमानी हो जाते थे, इसका उल्लेख ब्रिटिश गजेटियर में भी है।
इसमें उल्लेख है कि सन् 1914 में गर्मियों के दिनों में मुरार के कसाईखाने पर हमला किया गया था। तब ई. इलिंग बर्थ रेजीमेंट ने बागियों की घेराबंदी की, लेकिन उन्होंने सरेंडर करते हुए अंग्रेजी सेना को दो माह तक टक्कर दी, इसलिए रेजीडेंट ने गांव के तीनों कुएं ही पाट दिए। कुछ समय पूर्व सबसे पुराने कुएं को खोला भी गया, लेकिन अब उसका जलस्तर काफी नीचे चला गया है।”