इस शख्स के दिमाग में सबसे पहले आया था रसगुल्ला बनाने का ख्याल, सदियों पहले ऐसे रचा गया था इतिहास

Arijita Sen | Publish: Feb, 07 2019 12:06:37 PM (IST) अजब गजब
बच्चे को रसगुल्ला भी खाने को दिया चूंकि खाली पानी किसी को पिलाना अच्छा नहीं माना जाता है।
नई दिल्ली। रसगुल्ला एक ऐसी मिठाई है जो वैसे तो बंगाल से है, लेकिन पूरे देश में इसे पसंद करने वालों में कोई कमी नहीं है। छेने से बनने वाली यह मिठाई स्वास्थ्य के लिए भी काफी अच्छी मानी जाती है।
आज हम रसगुल्ले के बारे में कुछ ऐसी बात बताने जा रहे हैं जिसके बारे में अभी भी ज्यादातर लोगों को नहीं पता होगा। क्या आप बता सकते हैं इस मशहूर मिठाई को कब और किसने शुरु किया?
इसे बनाने का ख्याल सबसे पहले किसके दिमाग में आया और क्यों? आइए इसी जानकारी से आपको रुबरु करवाते हैं।

हम यह तो जानते हैं कि दूध को फाड़ कर छेने का निर्माण किया जाता है और फिर उसी से कई प्रकार की स्वादिष्ट मिठाईयों को बनाया जाता है, लेकिन एक जमाना ऐसा भी था जब दूध को फाड़कर छेना बनाया नहीं जा सकता था क्योंकि इस पर रोक थी। ऐसा इसलिए क्योंकि गाय को हमारे यहां मां का दर्जा दिया जाता है और उसी के दूध को फाड़ना लोग अशुभ मानते थे।

इतिहास के पन्नों को पलटने पर हमें इस बात का पता चलता है कि एक सफल खोजकर्ताओं में से एक पूर्तगाली वास्को डी गामा सन 1498 में भारत आए। इसके बाद सन 1511 में मलक्का की विजय के बाद पुर्तगाली व्यापारियों का संपर्क भारत के बंगाल से धीरे-धीरे बढ़ने लगा। जैसे-जैसे उनका यहां आना बढ़ा वैसे-वैसे उन्होंने कई कारखानों का निर्माण भी किया। देखते- देखते पूर्तगालियों की जनसंख्या में काफी इजाफा हुआ।

पुर्तगालियों को पनीर का सेवन करना अच्छा लगता था जिसके चलते छेने की डिमांड बढ़ने लगी। फलस्वरूप अब भारतीयों को भी दूध को फाड़कर छेने बनाने में कोई आपत्ति नहीं थी। उस वक्त बंगाल के हलवाई छेने के साथ कई तरह के प्रयोग करने लगे। इन्हीं हलवाइयों में से एक थे नोबिन चंद्र दास। उनकी नॉर्थ कोलकाता के बाग बाजार इलाके में मिठाई की एक दुकान थी।

साल 1868 में उन्होंने छेने को गोलाकर आकार देकर उन्हें चासनी में उबाला। इसी बीच एक दिन उस समय के मशहूर मारवाड़ी व्यापारी भगवन दास बागला अपने परिवार संग नोबिन चंद्र दास की दुकान के सामने से गुजर रहे थे।

तभी उनके बच्चे को प्यास लगी और पानी पिलाने के लिए सभी नोबिन चंद्र दास की दुकान पर गए। पानी के साथ नोबिन चंद्र दास ने बच्चे को रसगुल्ला भी खाने को दिया चूंकि खाली पानी किसी को पिलाना अच्छा नहीं माना जाता है।

बच्चे ने जैसे ही रसगुल्ले के स्वाद को चखा तो उसे वह इतना पसंद आया कि उसने और खाने की मांग की। इसके बाद उत्सुकता के चलते सभी ने खाया और तारीफों के पूल बांधने लगे। उसी दिन भगवन दास ने ढेर सारे रसगुल्लों का आर्डर भी दे डाला। बात धीरे-धीरे फैलने लगी और रसगुल्ले की मांग बढ़ने लगी और देखते ही देखते मिठाइयों का राजा बन बैठा रसगुल्ला। इसी के चलते रसगुल्ले के आविष्कारक नोबिन चंद्र दास को “रसगुल्ले का कोलंबस” भी कहा जाता है।
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