फ्लै ट थ्योरी के मुताबिक सूर्य 51 किमी चौड़ा (ह्यूस्टन शहर के व्यास बराबर) और धरती के 4828 किमी ऊपर परिक्रमा करता है। यदि ऐसा है तो सूर्य सपाट सतह पर कैसे अस्त होगा। इस गणित से तो उसका विकिरण सब जला देगा। वक्रीय पृथ्वी की तुलना में सपाट का disc (मंडल) का ढाई गुना सतही क्षेत्रफल अधिक होगा। यदि मौजूदा भूगोल बराबर ही सतही क्षेत्रफल व उतनी ही सौर ऊर्जा मानें तो आग जैसी गर्मी से कोई जिंदा नहीं बच पाएगा। सपाट सतह का असर चंद्र ग्रहण पर भी होगा। थ्योरी के अनुसार धरती पर सबको एक ही समय पर अलग अलग चंद्र कलाएं देखने को मिलती।
सपाट पृथ्वी का मतलब है कि गुरुत्वाकर्षण ग्रह के मध्य में होगा। फ्लैट थ्योरी के अनुसार यह हिस्सा उत्तरी ध्रुव होगा और इससे बारिश, ओले और ऐसी मौसमी घटनाएं उसी तरफ होंगी। इससे वहां भयंकर वायुदाब होगा। आसपास के क्षेत्रों में अत्यधिक आद्र्रता होगी। महासागरों का स्तर बढ़ेगा। उत्तरी ध्रुव जम जाएगा। भूवैज्ञानिक इस थ्योरी को नकारते हैं क्योंकि पृथ्वी का केंद्र ऐसे खनिज-धातुओं से बना है जो इसके गुरुत्वाकर्षण को धरती के केंद्र तक बनाए रखते हैं। ऐसे में सपाट पृथ्वी का सिद्दांत इसके गुरुत्वाकर्षण के नियम को भी नकार देता है। यह निराधार है।
फ्लैट थ्योरी में उत्तरी ध्रुव का जिक्र है पर उनकी नजर में दक्षिण ध्रुव नहीं है। वे मानते हैं कि दुनिया का दक्षिणी सिरा बर्फ से ढंका अंटार्कटिका ही है। धरती का चुंबकीय क्षेत्र भी दोनों ध्रुवों में बंटा है। यदि उत्तरी ध्रुव है तो इसके नीचे दक्षिण होना चाहिए और चुंबकीय क्षेत्र अंटर्काटिका में नहीं, यहीं होना चाहिए। इसे सपाट थ्योरी वाले तार्किकता से नहीं बता पाए। यदि वे धरती के कोर (भूगर्भीय केंद्र) को न मानकर, घूमते चुंबकीय कोर को मानते हैं तो इसके 1200 किमी चौड़े भार (Mass) को कहां रखेंगे?