पर्ण-फूल-फल-शाखाओं में
एकोऽहम अभिव्यक्त हुआ,
मूल भूल कर, अचिर फूल पर
भावुक भंवरा मत्त हुआ,
लीला मान असंग रहे वे
जिनके नयन उघारे हैं! प्रकृति-पुरुष के प्रथम मिलन का
बिना हेतु संयोग बने,
फिर अपनी ही रचना से छिप
उसके लिए वियोग बने,
भ्रम के इस परदे में तुमने
कितने रहस संवारे हैं !
एकोऽहम अभिव्यक्त हुआ,
मूल भूल कर, अचिर फूल पर
भावुक भंवरा मत्त हुआ,
लीला मान असंग रहे वे
जिनके नयन उघारे हैं! प्रकृति-पुरुष के प्रथम मिलन का
बिना हेतु संयोग बने,
फिर अपनी ही रचना से छिप
उसके लिए वियोग बने,
भ्रम के इस परदे में तुमने
कितने रहस संवारे हैं !
प्रस्तुति-जयप्रकाश सेठिया
(कन्हैया लाल सेठिया के पुत्र) यहां जुड़िए पत्रिका के ‘परिवार’ फेसबुक ग्रुप से। यहां न केवल आपकी समस्याओं का सामाधान मिलेगा बल्कि यहां फैमिली से जुड़ी कई गतिविधियां भी पूरे सप्ताह देखने-सुनने को मिलेंगी। यहां अपनी रचनाओं (कविता, कहानी, ब्लॉग आदि) भी शेयर कर सकेंगे। इनमें चयनित पाठनीय सामग्री को अखबार में प्रकाशित किया जाएगा। अपने सवाल भी पूछ सकेंगे। तो अभी जॉइन करें पत्रिका ‘परिवार’ का फेसबुक ग्रुप Join और Create Post में जाकर अपना लेख/रचनाएं/सुझाव भेज देवें।
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