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वर्क एंड लाईफ

बेटियां बोझ नहीं, वरदान हैं

बीस साल में 10 करोड़ लड़कियों की भ्रूण हत्या

Nov 30, 2016 / 04:39 pm

पवन राणा

four girls is ran away  women and child care home

four girls is ran away women and child care home

– प्रीति चौधरी

संयुक्त राष्ट्र के विश्व जनसंख्या कोष (वल्र्ड पोपुलेशन फंड) की रिपोर्ट बताती है कि हमारे देश मे पिछले बीस सालों मे लगभग 10 करोड़ लड़कियों को गर्भ में ही मार दिया गया। रिपोर्ट जितनी स्पष्ट है कारण भी उतना ही स्पष्ट है। गर्भ में लड़की का होना। वो लड़की जिसके प्रति हर युग मे समाज के एक बड़े हिस्से की मानसिकता नकारात्मक रही है।

इस मानसिकता के पीछे कई कारण हैं। जिनमें से एक बड़ा कारण है समय के साथ जनसंख्या से भी तेज गति से बढऩे वाली मंहगाई। और इस मंहगाई मे लड़की के लालन -पालन शिक्षा से लेकर उसकी शादी तक होने वाला खर्चा। लेकिन इन सारी मानसिकताओं से दूर कई महिलाएं ऐसी भी है जो मां के रुप मे अपनी बेटी को खुद के लिए बोझ नही बल्कि भगवान का दिया हुआ सबसे खूबसूरत तोहफा मानती है। वे मानती हैं कि अच्छी परवरिश के लिए जरूरी है अच्छी शिक्षा और अच्छी शिक्षा के लिए जरुरी है कि बच्चें कम हो। बच्चे कम होंगे तो बेटा या बेटी दोनो को अच्छी शिक्षा और अच्छी परवरिश दे सकतें हैं।

ज्यादा बच्चें होने से न तो कोई ठीक ढंग से पढ़ पाता है और न ही सबको सही से खाना-पीना मिल पाता है जिसकी वजह से बच्चें सेहतमंद नही रह पाते। कन्या भ्रूण हत्या पर लगाम कसने के इरादे से सरकार ने 1994 में ही भ्रूण परीक्षण पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद चोरी-छुपे ये सिलसिला आज भी जारी है। सबूत है 2001 की जनगणना रिपोर्ट जिसके अनुसार 1000 पुरुषों पर 927 महिलाएं जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति 1000 पुरुषों पर 919 महिलाएं ही बची हैं। ऐसी स्थिति में लड़कियों के प्रति नजरिया समाज के उन तमाम लोगों को बदलना होगा जो शिक्षित होने के बाद भी लड़के-लड़कियों मे भेदभाव की मानसिकता के साथ अपने बच्चों का पालन पोषण करते हैं।

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