- गायत्री शर्मा
हम
हर वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाकर यह याद दिलाना चाहते हैं कि
हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है। एक तरफ तो यह कहते हुये नहीं थकते कि सारे
जहां से अच्छा हिन्दोस्ता हमारा और दूसरी ओर राष्ट्र एवं मातृभाषा हिन्दी
को ही उपेक्षा के तलघर मेें कैद कर पराई मां को सम्मान दे रहे हैं। हमें
अपनी ही मातृभाषा एवं राष्ट्रभाषा का दिवस मनाकर उसकी याद दिलानी पड़ रही
है, यह राष्ट्रभाषा की उपेक्षा नहीं तो और क्या है? दुनिया में शायद ही ऐसा
कोई देश हो जो अपनी मातृभाषा का दिवस मनाता हो.
संविधान
मेें राष्ट्रभाषा की मान्यता मिलने पर भी आज हम सभी कार्य हिन्दी में ना
करके क्या दिखाना चाहते हैं। फर्राटेदार अंगे्रेजी बोलने वालों को सभ्य एवं
विद्वान समझकर हम स्वयं को बौना समझने की भूल कर रहे हैं और फिर भी हमें
भूल का अहससास नहीं होता है। हमारी औछी मानसिकता से ही हिन्दी ग्रामीण भाषा
बनकर रह गई है। वर्तमान में हिन्दी की ऐसी उपेक्षा देखकर ऐसा प्रतीत हो
रहा है जैसे अपने ही पांव बेचकर बैसाखी का साहरा लिया जा रहा है, आखिर
बैसाखी के सहारे हम कब तक चल पायेंगे। आज हिन्दी भाषा पर अंग्रेजी भाषा ने
इतना शिकंजा कस लिया है कि एक छोटा सा बच्चा भी अपनी तुतली जबान से मां एवं
पिताजी ना बोलकर माम-डेड कहकर गर्व महसूस करता है। हमारा रहन-सहन, खान-पान
एवं पहनावे पर इसका असर होता जा रहा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाली
पीढियों को बताना पड़ेगा कि हम हिन्दी भाषी थे, हमारा देश हिन्दुस्तान कहलता
था और हमारी मातृभाषा एवं राष्ट्रभाषा हिन्दी थी।