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हिन्दी के साथ सौतेला व्यवहार क्यों ?

अंग्रेजी की अंधभक्ति से दूर होना होगा

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Pawan Kumar Rana

Sep 12, 2016

school

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- गायत्री शर्मा

हम
हर वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाकर यह याद दिलाना चाहते हैं कि
हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है। एक तरफ तो यह कहते हुये नहीं थकते कि सारे
जहां से अच्छा हिन्दोस्ता हमारा और दूसरी ओर राष्ट्र एवं मातृभाषा हिन्दी
को ही उपेक्षा के तलघर मेें कैद कर पराई मां को सम्मान दे रहे हैं। हमें
अपनी ही मातृभाषा एवं राष्ट्रभाषा का दिवस मनाकर उसकी याद दिलानी पड़ रही
है, यह राष्ट्रभाषा की उपेक्षा नहीं तो और क्या है? दुनिया में शायद ही ऐसा
कोई देश हो जो अपनी मातृभाषा का दिवस मनाता हो.

संविधान
मेें राष्ट्रभाषा की मान्यता मिलने पर भी आज हम सभी कार्य हिन्दी में ना
करके क्या दिखाना चाहते हैं। फर्राटेदार अंगे्रेजी बोलने वालों को सभ्य एवं
विद्वान समझकर हम स्वयं को बौना समझने की भूल कर रहे हैं और फिर भी हमें
भूल का अहससास नहीं होता है। हमारी औछी मानसिकता से ही हिन्दी ग्रामीण भाषा
बनकर रह गई है। वर्तमान में हिन्दी की ऐसी उपेक्षा देखकर ऐसा प्रतीत हो
रहा है जैसे अपने ही पांव बेचकर बैसाखी का साहरा लिया जा रहा है, आखिर
बैसाखी के सहारे हम कब तक चल पायेंगे। आज हिन्दी भाषा पर अंग्रेजी भाषा ने
इतना शिकंजा कस लिया है कि एक छोटा सा बच्चा भी अपनी तुतली जबान से मां एवं
पिताजी ना बोलकर माम-डेड कहकर गर्व महसूस करता है। हमारा रहन-सहन, खान-पान
एवं पहनावे पर इसका असर होता जा रहा है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाली
पीढियों को बताना पड़ेगा कि हम हिन्दी भाषी थे, हमारा देश हिन्दुस्तान कहलता
था और हमारी मातृभाषा एवं राष्ट्रभाषा हिन्दी थी।

पहली
बार जब अटल बिहारी वाजपेयी जी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में अपना भाषण
हिन्दी भाषा में दिया तो सभी भारतीयों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा एवं सभी
को सुखद अहसास हुआ कि हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर
स्थापित करने के प्रयास की शुरूआत तो हुई लेकिन उसके बाद अधिकांश समय
हमारे देश के राष्ट्राध्यक्षों द्वारा अंग्रेजी भाषा में अपने भाषण दियें।
यहां तक की राष्ट्रीय पर्व 15 अगस्त एवं 26 जनवरी को भी देशवासियों को
अंग्रेेजी भाषा में ही सम्बोधित किया जाता है, यह राष्ट्रभाषा की उपेक्षा
नहीं तो क्या है? जब प्रश्न भाषा को समझने पर उठता है तो अधिकांश
बुद्धिजीवी इसका जवाब यही देते हैं कि भाषण के साथ उसका हिन्दी मेें
अनुवाद भी बताया जाता है। अब प्रश्न यह है उठता है कि जब अंग्रेेजी भाषा का
अनुवाद अन्य भाषाओं में हो सकता है तो फिर हिन्दी भाषा का अनुवाद अन्य
भाषाओं में क्यों नहीं किया जा सकता है। ऐसा करने से देश की गरिमा को
बढावा मिलेगा।

भारतीय
संसद में भी अधिकांश संसद सदस्य सदन में होने वाली बहस एवं प्रश्नकाल में
अंग्रेजी भाषा का ही उपयोग करते हैं और अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते
हैं। उनसे कौन पूछे कि जिस भारत में अधिकांश लोगोें द्वारा हिन्दी बोली एवं
समझी जाती है उनके लिये हिन्दी बोलने में परहेज क्यों? यदि हिन्दी भाषा को
वास्तव में राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाना है तो आज हम सभी को हिन्दी के
प्रति निष्ठा का प्रदर्शन करना होगा।

माना कि वर्तमान
परिप्रेक्ष्य में अंग्रेजी भाषा एक अन्तर्राष्ट्रीय भाषा केे रूप में
स्थापित है अतः अगर हम अंग्रेेजी की नहीं अपनाएंगे तो विकसित देशों की
श्रेणी में नहीं आ पाएंगे परन्तु इसके साथ-साथ हमें हमारी राष्ट्रभाषा
हिन्दी को भूलाना गलत है। हम अपनी नींव को ना भूले, अपने मूल्यों और
आदर्शों को ना भूले हम अपनी राष्ट्र भाषा को न भूले। महात्मा गांधी ने कहा
था कि पाश्चात्य संस्कृति को हमें अपनाना हो तो उसकी अच्छी बाते अपनाएं
परन्तु अपने आधार भूत मूल्यों को न भूले अपनी भाषा को ना भूले। भाषा के दो
रूप होते है लिखित और मौखिक और इन दोनों के माध्यम से ही व्यक्ति अपने
विचारों को अभिव्यक्त करता है। और अगर इस अभिव्यक्ति का माध्यम राष्ट्रभाषा
हो तो फिर कहना ही क्या?

हिन्दी
हमारी राष्ट्रभाषा है इसके महत्व को कम आंकना इसकी छवि को धूमिल करना है।
हिन्दी से हम सबको अपनत्व होना चाहिए। आज हमें हिन्दी दिवस मनाने के बजाय
ऋग्वेद का एक सूक्त - ‘‘सब एक साथ चले एक ही भाषा बोले और एक ही दिशा में
सोचने पर अमल करें’’, पर बल देना चाहिए। बात भाषा की है तो हमारे देश की
राष्ट्रभाषा हिन्दी है। हम सभी देशवासियों को राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति
निष्ठा से समर्पित होना चाहिए। हिन्दी पढे, हिन्दी बोले, हिन्दी के लिये
हमारा यह व्यवहार ही राष्ट्र की राष्ट्रभाषा हिन्दी के लिये सच्ची निष्ठा
व्यक्त करता है।

आज
अंग्रेजी भाषा हमारी संस्कृति को निगल रही है जिससे भारत की सभ्यता एवं
संस्कृति खतरे में पड़ गई है। हमेें अंग्रेजी विरोधी नहीं अंगे्रजियत का
विरोधी होना चाहिये। किसी भी भाषा को सीखना अच्छा है। ज्ञान के विस्फोट के
समय में अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं को जानना, समझना बुद्धिमानी है लेकिन
उसकी अन्ध भक्ति ठीक नहीं है। हमें आज अंग्रेजी की अन्ध भक्ति से मुक्त
होकर राष्ट्रभाषा के प्रति सच्ची निष्ठा प्रदर्शित करनी होगी तब ही हम
राष्ट्रभाषा हिन्दी को सच्चे अर्थों में राष्ट्रभाषा एवं मातृभाषा का दर्जा
दिला पायेंगे।

(राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षाविद् )

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