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मोटिवेशन : मच्छरों से होने वाली बीमारियों को रोकने के लिए बना डाला बग ट्रैकर

मनु प्रकाश अमरीका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के बायो इंजीनियरिंग विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।

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Amanpreet Kaur

Dec 24, 2017

Manu Prakash

Manu Prakash

मनु प्रकाश अमरीका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के बायो इंजीनियरिंग विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। यहीं पर इनकी प्रकाश लैब है जिसमें इलाज के सस्ते तरीके खोजने में लगे हैं। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के मवाना में हुआ था। स्कूली शिक्षा खत्म होने पर उन्होंने इंजीनियरिंग का फैसला किया और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी), कानपुर में दाखिला लिया जहां से कंप्यूटर साइंस की डिग्री पूरी की। इनके डीन ने इन्हें कॉलेज के रोबोटिक्स प्रोजेक्ट पर लगाया जहां इन्होंने सभी दिशाओं में घूमने वाला (ओमनी डायरेक्शनल) रोबोट और रोबोटिक कठपुतली भी बनाई थी। 2004 में इन्होंने मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मास्टर्स किया। मास्टर्स के बाद 2008 में एमआईटी से ही पीएचडी की पढ़ाई पूरी की थी।

मच्छर जनित बीमारियां रोकने के लिए ‘बग ट्रैकर’

मच्छरजनित जानलेवा बीमारियों जैसे मलेरिया, डेंगू और जीका की रोकथाम के लिए बग ट्रैकर तैयार किया है। इसमें सेलफोन से मच्छरों की आवाज को रिकॉर्ड कर इनके द्वारा बनाए गए ‘एबज सिस्टम’ पर अपलोड किया जाएगा। मच्छर की आवाज सिस्टम पर अपलोड होने पर इनकी टीम उसकी स्टडी करेगी और आसानी से पता कर लेगी कि इस मच्छर के काटने से कौन सी बीमारी होगी। आवाज रिकॉर्ड करते समय ध्यान रखना होगा कि उस वक्त पीछे से कोई तेज आवाज नहीं आनी चाहिए। अगर ऐसा होता है तो सही जानकारी नहीं मिलेगी। अब तक इन्होंने मच्छरों की बीस से अधिक प्रजातियों को खोजा है जो जानलेवा बीमारियां फैलाने का कारण बन रहे हैं।

चर्चा में : हाल ही इन्हें बायो इंजीनियरिंग के क्षेत्र में बेहतर काम के लिए जीनियस ग्रांट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। इसके साथ ही इन्हें करीब 4.51 करोड़ रुपए की प्रोत्साहन राशि मिली है जिसका इस्तेमाल वे अपने शोध को बढ़ावा देने के लिए कर सकेंगे।

नवजात के लिए बनाया इनक्यूबेट

ग्रामीण क्षेत्रों में समय से पहले जन्मे बच्चों की जान बचाने के लिए ट्रांसपोर्ट इनक्यूबेटर भी बना चुके हैं। इस इनक्यूबेटर से प्रीमैच्योर बेबी को सुरक्षित बड़े अस्पताल तक पहुंचाया जा सकता है। इस इनक्यूबेटर मशीन में ऑक्सीजन से लेकर बीपी और पल्स मॉनीटरिंग की सुविधा है।

कागज से बनाया सबसे सस्ता फोल्डस्कोप

वर्ष २०१४ में कागज का फोल्डस्कोप बनाया जिसका प्रयोग आज दुनियाभर के वैज्ञानिक और चिकित्सा जगत से जुड़े लोग बीमारियों का पता लगाने के लिए कर रहे हैं। कागज को फोल्ड कर एक छोटा छेद बनाया। इसमें पीछे से एक चिप की मदद से एलईडी लाइट से रोशनी डाली जिसे एक बटन से नियंत्रित किया जाता है। इस फोल्डस्कोप को बनाने में महज सौ रुपए का खर्च आता है जिसे पॉकेट में भी रखा जा सकता है। कुछ साइंटिस्ट इसे पॉकेट फोल्डस्कोप भी कहते हैं। इसका सबसे अधिक प्रयोग अफ्रीका में किया जा रहा है। इसके अलावा गंदा पानी पीने से होने वाली बीमारी (स्किटोसमायोसिस) का भी पता इस स्कोप की मदद से किया जा सकता है।

खून से प्लाज्मा को अलग करने के लिए एक लाख रुपए की सेंट्रीफ्यूज मशीन इस्तेमाल होती है। इन्होंने कागज से ‘पेपरफ्यूज’ बनाया है। इससे दो मिनट के भीतर प्लाजमा को रक्त से अलग किया जा सकता है। इस तकनीक पर पर दुनियाभर में काम चल रहा है।

उपलब्धि

2008 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने इन्हें फिजिक्स में जूनियर फेलो अवॉर्ड से नवाजा था। फिजिक्स में अच्छी समझ के लिए इन्हें बेस्ट स्टूडेंट का अवॉर्ड भी मिल चुका है।
इनकी पत्नी सोफी ड्यूमॉन्ट यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के डिपार्टमेंट ऑफ सेल एंड टिश्यू बायोलॉजी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। इनके एक बेटी है।
2014 में न्यूयॉर्क में द इंडियन अब्रॉड फेस ऑफ द फ्यूचर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।