scriptप्रकृति सब समझती है | Nature and its relation with human kind | Patrika News
वर्क एंड लाईफ

प्रकृति सब समझती है

मन कहता है कि अधिकार सुख मादक और सार हीन है प्रसाद बहुत पहले कहकर गए हैं

May 16, 2018 / 04:23 pm

सुनील शर्मा

opinion,work and life,rajasthan patrika article,

happy nature

– विमलेश शर्मा

पागल मन सुबह की कुँआरी बयार में भीग जाता है..और मैं महसूस करती हूँ एक शांति, पावित्र्य किसी सद्यस्नाता की ही तरह! रंगबिरंगे पाखियों का मंत्रमुग्ध स्वर, हवाओं का बहना और पत्तों की सरसराहट गुदगुदाने ही लगती है कि कोई आँखें मिलकर एक अजीब सी आश्वस्ति के साथ मुस्कुरा जाती है । लगता है कि यही है वास्तविक दुनिया, मेरी दुनिया और यही है संस्कृति .. अजनबी पर मेरे अपने लोग मेरे, अपने …ये कुछ शब्द अटक जाते हैं स्मृति में।
मन कहता है कि अधिकार सुख मादक और सार हीन है प्रसाद बहुत पहले कहकर गए हैं पर इस मेरे कड़वे नीम से गले लगकर मुझे अपनत्व का अहसास होता है…इस पर बैठी कोयल मानों उसे ऐसे ही भावों के लिए आभार प्रकटती जान पड़ती है। माँ का कहना है कि कोयल की कूक शुभ होती है पर मन उसकी हूक को अधिक समझता है। वक़्त के साथ हम समझते हैं कि शुभ-अशुभ के ये प्राकृतिक प्रतीक हमारी तसल्ली के ही गढ़े गए हैं। इन्हें गढ़ा जाना चाहिए यूँ ही। प्रकृति है ना प्रकट, अप्रकट सब समझती है। एक बच्चा रूआँसा है स्कूल बस की खिड़की पर।
मुझे अपनी बोलती आँखों से स्कूल नहीं जाना कह रहा है शायद! उसके माथे पर स्नेह उँड़ेल कर मैं अपने अबोले में उसे एक दिलासा देने की कोशिश करती हूँ। बस लौट गई है, उसके गाल पर बहते आँसुओं की नदियाँ लेकर और वो आँखें मेरी आँखों में अब तक ठहरी है। स्मृतियों में चेहरे अक्सर यूँ ही तो तस्वीर से ठहर जाया करते हैं। अनमने भाव से मोबाइल को देखने पर जब कुछ दोस्त संजीवनी से मुस्कुराते हैं, कोई अंगद सा यह कह देता है कि चिंता नको और कोई बस एक संबोधन सहोदर भाव का स्क्रीन पर झलक जाता है तो जी उठते हैं हम।
हम कच्ची भावनाओं को जीते लोगों की दीठ और समझ यूँ जीते-जीते ही तो कितनी पक्की हो जाती है…हैं ना!

फेसबुक वाल से

Home / Work & Life / प्रकृति सब समझती है

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो