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वर्क एंड लाईफ

अपने रिटायरमेंट के बाद के लिए भी करें कुछ प्लान

बच्चे आपको दें, खुशी से लेंना आपका हक है, पर
आपकी देने की आदत, लेने की मजबूरी में नहीं बदलनी चाहिए

Mar 20, 2015 / 12:13 pm

प्रियंका चंदानी

रिटायरमेन्ट प्लान कर रहे हो? इस सवाल के जवाब पुरूषों से कुछ इस तरह से मिल सकते हैं, “हां कुछ इन्वेस्टमेन्ट किए हैं या हां, प्लानिंग शुरू कर दी है।” यही सवाल अगर बाहर काम करने वाली महिलाओं से पूछा जाए तो हो सकता है कि एक भी सकारात्मक उत्तर न मिले। आ मतौर पर नौकरी से रिटायरमेन्ट से 10-15 साल पहले पुरूष रिटायरम ेन्ट की प्लानिंग शुरू कर देते हैं, पर बात जब नौकरी करने वाली म हिलाओं की हो, विशेषकर भारतीय समाज में तो परिदृश्य कुछ और ही होता है। शिक्षा हासिल करने, नौकरी करने के लिए “हमें भी समान हक है” की भावना रिटायरमेन्ट आने से काफी पहले ही अपना मूल स्वरूप खो देती है और पारिवारिक-सामाजिक जिम्मेदारियों में गुम सी हो जाती है। एक व्यक्ति के रूप में उसकी पहचान नौकरी करने वाले, अर्थोपार्जन करने वाले व्यक्ति/महिला के रूप में तो कायम रहती है, लेकिन रिटायर होने वाले व्यक्ति के रूप में वह खुद को पहचान नहीं पाती।

ठगी-सी ना रह जाएं
“अभी से रिटायरमेन्ट की चिंता क्यों करे, वैसे ही बहुत चिंताएं हैं, बहुत काम बाकी हैं। उनकी सोचें या रिटायरमेन्ट की। रिटायरमेन्ट के बारे में क्या सोचना, एक दिन रिटायर तो होना ही है, चीजें मेरे पति करते हैं।” रिटायरमेन्ट प्लानिंग की बात पर महिलाओं की प्रतिक्रियाएं कुछ इस तरह की होती हैं। वर्तमान में जीना अच्छी बात है, पर मध्यवय तक आते-आते भी भविष्य के बारे में नहीं सोचना, आंख बंद रखना अक्लमंदी तो नहीं कहलाएगी। यह भी सही है कि रिटायरमेन्ट की उम्र से 10-15 साल पहले की अवस्था में बहुत-सी जिम्मेदारियां बाकी रहती हैं, पर इन जिम्मेदारियों के रहते-रहते ही आपको सोचना पड़ेगा। अगर आपने यह सोचा कि पहले जिम्मेदारियां खत्म हो जाएं, तब प्लान करेंगे तो हो सकता है कि प्लानिंग का समय ही न बचे और स्वास्थ्य में परेशानी, दूसरों पर निर्भरता आदि ऎसी परिस्थितियां सामने आ जाएं कि आप खुद को ठगा सा महसूस करने लगें। आपको अचानक ही यह म हसूस हो कि अब तक सब कुछ किया, सबके लिए किया और अब अपने लिए ही कुछ नहीं बचा। आपके साथ ऎसा न हो, इसके लिए सारी जिम्मेदारियों को निभाते हुए ही रिटायरमेन्ट प्लान करिए, आखिर आपकी खुद के प्रति भी तो जिम्मेदारी है। रिटायरमेन्ट की प्लानिंग चिंता को आमंत्रण नहीं है, बल्कि चिंतामुक्त भविष्य को निमंत्रण है।

किसी पर निर्भर क्यों रहें
अभी तक आत्मनिर्भर रहती आई हैं, ऎसा लगा ही नहीं होगा कि दूसरों पर निर्भर होना पड़ेगा और होना भी पड़ेगा तो बच्चे कोई दूसरे तो होते नहीं हैं, अपने ही तो होते हैं, बच्चे हमारा ध्यान नहीं रखेंगे तो कौन रखेगा? ऎसा भाव गलत तो नहीं है, पर अपूर्ण जरूर है, क्योंकि जैसे माता-पिता बच्चों के प्रति जिम्मेदारी का निर्वहन करते हैं, वैसे ही बच्चे बड़े होकर अपनी गृहस्थी बसाने के बाद माता-पिता के लिए नहीं कर पाते/नहीं करते। आय कम जरूरतें ज्यादा, जरूरत के नाम पर विलासिता की चाह, महंगाई या आपकी जरूरतों को अहमियत न देने की मानसिकता, इसके पीछे कुछ भी कारण हो सकते हैं। आपको क ठिनाई न झेलनी पड़े, आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर न रहना पड़े, इ सके लिए भविष्य की प्लानिंग करनी चाहिए।

बड़प्पन कायम रहे
भविष्य में आत्मनिर्भर बने रहने के साथ-साथ इस ओर भी ध्यान दें कि अभी तक आर्थिक रूप से परिवार का सम्बल रही हैं, सबके लिए कुछ न कुछ करती आई हैं। जन्मदिन हो, विवाह हो, गृह-प्रवेश हो या अन्य कोई आयोजन, उपहार देकर सबको खुशी देने की कोशिश की है आपने। मकान बनाने की बात हो या घर के लिए सामान लाने की, आपका योगदान हमेशा रहा है। आपके बच्चों के साथ भतीजियों-भांजों ने भी छोटी-छोटी ख्वाहिशों के लिए आपको उम्मीद से देखा है तो फिर रिटायरमेन्ट के बाद भी आपका बड़प्पन कायम रहना चाहिए न। बच्चे आपको कुछ दें, खुशी से लें, आपका हक है, पर आपकी भी देने के अभ्यास की आदत, लेने की मजबूरी में नहीं बदलनी चाहिए।

स्वास्थ्य के लिए रहे इंतजाम
उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं के हार्मोन्स के स्तरों में काफी बदलाव आता है। मीनोपॉज होने के दौरान एवं बाद में महिला स्वास्थ्य के सम्बन्ध में अलग ही दौर से गुजरती है। हडि्डयों में कमजोरी आती है, गर्भाशय व अन्य प्रजनन अंगों से संबंधित परेशानियां आ सकती हैं। स्तन कैंसर के मामले भी सामने आते हैं। इनके अलावा डायबिटीज, हाइपरटेंशन, हाइपो-थॉयराइड, गठिया, दिल, श्वास, पेट आदि से जुड़ी बीमारियां भी आम हैं। इसलिए मेडिकल सेवाओं, दवाइयों आदि के लिए खर्चे की व्यवस्था रखनी चाहिए। ताकि स्वास्थ्य पर खर्चे की व्यवस्था न होने से या कम होने से स्वास्थ्य से समझौता न करना पड़े।

अनुभव को ले काम
मध्यवय एक ऎसी वय होती है, जिसमें आपसे समझदारी के साथ क्रि याशील होने की अपेक्षा की जाती है। इस समय बचपन, किशोरावस्था, युवावस्था पार कर चुकी होती हैं और अपने से बड़ों, माता-पिता, सास -ससुर व अन्य नातेदारों का जीवन करीब से देखती आ रही होती हैं। अधेड़ावस्था से वृद्धावस्था में जाने वाले करीबी परिजनों को देख रही होती हैं। इस समय तक विभिन्न तरह के अनुभवों से, पर्याप्त समझदारी आ जाती है, अगर समझना चाहें तो अपने भविष्य की तस्वीर का अनु मान लगा सकती हैं। अपनी व्यक्तिगत जरूरतों, परिवार की जरूरतों व सामाजिक उत्तरदायित्वों को भविष्य के लिए पहचान कर, अनुभव के आधार पर भावी जीवन की रूपरेखा तैयार कर सकती हैं। विभिन्न जरू रतों के हिसाब से आय और व्यय का अनुमान लगा सकती हैं। ऎसा क रने और सारी चीजों पर विचार करने के बाद आप बेहतर योजना बना पाएंगी।

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