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जिम्मेदारों को जवाबदेही का अहसास दिलाइए

मतदाता अतीत की यादों का रहगुजर नहीं बनना चाहता

Jul 22, 2018 / 10:24 am

सुनील शर्मा

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– श्रुति अग्रवाल

दिनभर टीवी के सामने सांस थामकर बैठे लोग अंततः खीजते नजर आए। वे अपने सामने कुछ गंभीर होते देखना चाहते थे, पूरा सदन नर्सरी क्लॉस के बच्चों की उम्र का लग रहा था। कोलाहल, हंसी-ठहाके और तंज। इसी को तो कहते हैं द ग्रेट इंडियन पॉलिटिकल ड्रामा…जिसका पटाक्षेप पहले से तय था, हुआ भी लेकिन मन में टीस दे गया।
मुल्क का हर बाशिंदा जानता था, यह अविश्वास प्रस्ताव ताश के पत्तों की तरह धराशायी होगा। यह ऐसा मैच था, जिसमें पहले से ही ‘हार’ तय थी। जीत पर सट्टा लगाने का भाव शून्य से भी नीचे था फिर भी मतदाताओं का बड़ा वर्ग टीवी स्क्रीन से चिपका था। क्यों ? इस क्यों का जवाब अपने मन-मस्तिष्क में खोजिए, मिल जाएगा। हर मतदाता चाहता था कोई तो प्रधानसेवक से सवाल करे। बड़े-बड़े वादों के सवाल करें…सदन में गंभीरता से आम लोगों का पक्ष रखे…फिर उन्हें जवाब मिले। जिन जवाब के बूते पर बैचेन मन को शांति दे सकें, धैर्य रख सकें, बोल सकें, एक दिन सब अच्छा होगा…हम विकास की तरफ बढ़ रहे हैं। कदम लड़खाएं जरूर हैं, हौंसला वही है लेकिन प्रधानसेवक का भाषण अंत में बैचेन रूह को राहत ना दे सका। विपक्ष के दावों की धार भी अंततः भोथरी साबित हुई।
बैंकों को आम लोगों तक पहुंचाने की बात कह नोटबंदी के बाद उठी परेशानियों को सिरे से खारिज करने की कोशिश की गई। भाषण को कुछ इस तरह कहा गया, जैसे इससे पहले बैंकों के संबंध में कुछ किया ही ना गया हो। निजी बैंको का राष्ट्रीयकरण…इंदिरा गांधी के इस साहसिक निर्णय को इतिहास-वर्तमान तो क्या भविष्य भी झुठला ना सकेगा। मतदाता, माल्या के बाद बैंकों को चूना लगाने वाले नीरव के बारे में भी जानना चाहती थी। इस पर घिर जाने के डर से विपक्ष ने ना कुछ पूछा, पक्ष ने कुछ ना बताया। मतदाता…टीवी स्क्रीन से चिपका बैठा रहा, अब कोई पूछेगा…कोई जवाब आएगा। राफेल डील को लेकर जब फ्रांस से खंडन आया तो यह मुझे राहुल गांधी के आंख मारने से कहीं ज्यादा शर्मनाक लगा। सोचिए…हमारे देश की छवि हम ग्लोबल दुनिया में कैसी बना रहे हैं।
कैसे विपक्ष में सिरमौर का ताज पहने राहुल गांधी पूरे देश के सामने कह सकते हैं, उनकी फ्रांस के राष्ट्रपति से बातचीत हुई है। उन्होंने खुद कहा, ऐसा कोई करार नहीं हुआ…कुछ देर बाद फ्रांस की ओर से खंडन आ जाता है। समझिए, इस खोखले दावे से विपक्ष अपनी कब्र को दो हाथ और गहरी खोद चुका है। अविश्वास प्रस्ताव के नाम पर देश की संसद में जिस तरह का पॉलिटिकल ड्रामा खेला गया समझ नहीं आता अब मतदाता किसकी शरण में जाएं। सवालों का माखौल उड़ाया जा रहा था, जनता की समस्याओं से पक्ष और विपक्ष दोनों को ही सारोकार ना था।
राहुल गांधी की परिपक्वता नौ दिन चले अढ़ाई कोस की तरह महसूस हुई…इतने सालों के राजनीतिक ज्ञान के बाद वे कुछ ही परिपक्व हो पाए। वहीं प्रधानसेवक बातों ही बातों में सुभाषचंद्र बोस, वल्लभ भाई पटेल जैसे लोगों को सामने ले आए जैसे ये सर्वमाननीय-सम्माननीय नेता भाजपा की नींव हो…भ्रम। फिर गर्वोक्ति…भगवान शिव कांग्रेस को 2024 में भी अविश्वास प्रस्ताव लाने की ताकत दें। माफ कीजिए सरकार, मतदाता अतीत की यादों का रहगुजर नहीं बनना चाहता। ना ही भविष्य के सुंदर सपनों में खोया मुंगेरीलाल। वह वर्तमान परिदृश्य में जो हो रहा है, उसके जवाब चाहता था….वो जवाब नहीं मिले…नहीं पता चला कितना कालाधन मिला। कब तक 15 लाख आएंगे। भीड़ की भेड़चाल से किस तरह निपटा जाए। मतदाता अराजक हो रही भीड़ से डर कर दुबकना नहीं चाहता। जवाब में आरोप-प्रत्यारोप नहीं सुनना चाहता। मैं जनता के लिए किए कार्यों का मूल्यांकन सुनने के लिए टीवी स्क्रीन से चिपकी हुई थी… अंत में समझ आया किस्सा कुर्सी का। मतदाताओं की ऐसी हालत देख, दुष्यंत जी की कविता बहुत याद आ रही है…
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए….
काश कहीं से कोई आए और ये सूरत बदले….. नहीं इस दिवास्वप्न से बाहर निकलिए। कोई नहीं आएगा। आपको अपना रक्षक स्वयं बनना होगा। बहुत हो गया मुर्दों की तरह जीना… आपके पक्ष में ससंद में बात करने वाला कोई विपक्ष नहीं तो क्या हुआ… स्वयं को तैयार कीजिए… 2019 सामने है। जब भी कोई नेता आपकी गली या मुहल्ले में आए… पूछिए.. सवाल पूछिए… मजबूर कीजिए। जिम्मेदारों को उनकी जवाबदेही का अहसास दिलाइए।
– फेसबुक वाल से साभार

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