हम बहुत ही दुःखदायी परिस्थिति में जबलपुर जा रहे थे। और वो महाशय एक बारात अटैंड करने। स्वाभाविक तौर पर वो काफी खुश और उत्तेजित थे, और हम अपनी ग़मी को छुपाने में भी नाकामयाब हो रहे थे।
जब भी कोई ट्रेन आए महाशय जी पूरा सामान लेकर परिवार के साथ बिल्कुल पटरी वाली जगह पर जाकर खड़े हो जाते, “शाब जी मेरी तो गाड़ी रत्नागिरी आ गई, टाटा” पता चलता कि उनकी नहीं कोई और गाड़ी होती। पत्नी अलग खड़ूस की तरह मुँह बनाये बैठी थी गोया शादी नहीं कोई ग़मी में जा रही हों और पतिदेव ननस्टॉप बुलेट की भाँति रेल हो रहे थे। ऐसा पति पाकर कोई भी ताउम्र ग़मी ही मनाएगा।
एक बार फिर उठे वो एक ट्रेन बॉम्बे से आई थी और उसे कहीं और जाना था लौटकर फिर आना पड़ा पर इसबार आए तो एक मराठी मानुष उनके साथ लगे आये। शायद टीवी ना देखते हों या अपने खून की गर्मी पर जरूरत से ज्यादा भरोसा हो कि ये ठंढी नहीं हो सकती। एसी कोच से निकलने के बाद उनकी हालत खराब हो गई उनका खून जमने लगा। स्टेशन पर लगे कम्बल खोजने।
संजोग से मेरे पास घरेलु शॉल था जो चलते वक्त ऐसे ही रख ली थी जबकि खुद का भी होश नहीं था। मैं उनको ऊपर से ही निकालकर दे दी। हमलोग से पूछे क्या यहाँ आसपास कम्बल मिलेगा? जानकारी तो हमें भी ना थी। तबतक हमारे ऊपर उनकी विश्वसनियता कायम हो चुकी थी, उन्होंने कहा कृपया मेरा सामान देखें हम बाहर जाकर कम्बल देखते हैं। स्वीकृति में हमने सर हिला दिया क्योंकि मेरा शॉल जो उनके पास था। मानवता के नाते माँग नहीं सकती थी और मन वही नारी सुलभ।
अब ये महाशय अपना सारा सामान उठाकर दूसरे बेंच पर जम गए। कहने लगे, “शाब शाब ये जोरूर कोई आतंकवादी है ब्रीफकेश छोड़कर गया है इशमें जोरूर बम होगा। अपने काफी भयभीत थे, हम कहे बम-बारूद से डर नहीं लगता हमारे तरफ बच्चे पैदा ही लेते हैं बम लेकर। हम डरते हैं कि उस इंसान की जान न चली जाए ठंढ़ के मारे।
उनका दिमाग भटकाने के लिए मैं उनसे पूछ ही ली, किसकी शादी में आप जा रहे? उन्होंने बताया मेरे मोमेरे शाला का शादी है, चुकी हमारा वाइफ हमारे मोमेरे भाई का शादी में गया था इशलिये हमारा भी जाना जोरुरी था।
मुझे उनका स्वभाव समझ में आया जब ये सम्बन्धों में इतना जबरदस्त हिसाब कर रहे तो इनकी सोच तो हमेशा हिसाब-किताब करती होगी। इसी बातचीत के क्रम में जाने कब उनकी “रत्नागिरी”आ भी गई और ऐन वक्त पर उन्हें पता भी नहीं चला। पतिदेव बोलते कम हैं पर परिस्थिति पर निगाह रखे रहते हैं। उन्होंने ही बताया देखिए आपकी गाड़ी लग गई प्लेटफार्म पर। अब वो महाशय शुक्रिया अदा करते नहीं थक रहे थे कि शाब आपकी वजह शे पता चला नहीं तो “रत्नागिरी”छूट ही जाता। पतिदेव ने कहा जल्दी चढ़िए नहीं तो शायद छूट ही जाएगी इसको लगे काफी देर हो चुका। वो मराठी मानुष को भी कम्बल मिल गया था, उसने सामान चढ़ाने में काफी मदद की उनकी।
हिसाब -किताब गुजरात में भी काफी देखी हूँ, अक्सर सिलाई-कढाई, सीखने -सिखाने के चक्कर में धागा माँगने आती थी लोग तो बकायदा उतना ही वापस भी करती थी। जबकि अपनी तरफ पूरी रील भी बड़े अधिकार के साथ रख लेती हैं लोग।
जबलपुर से लौटते ट्रेन में ही एक परिवार मिला मणिपुरी। उनकी लड़की नर्स थी, पर लड़का कुछ नहीं करता था। हर स्टेशन पर उतरती और कुछ खरीदकर लाती थी पर लड़का नहीं उतरता। खाने का सामान हमारे पास बहुत था देते डर लग रहा था किंतु उनकी निगाहें बता रही थी कि उनको जरूरत है। हमने पूरा खाना उन्हें दे दिया, परिस्थिवश हमारी भूख गायब थी।
मैं पूछी आपकी लड़की ही सारा कुछ कर रही है लड़का कुछ नहीं तो उन्होंने जो बताया वो सुनकर मुझे हँसी भी आई और आश्चर्य भी उनके परम्परा पर। “लड़का तो मेहमान है शादी होगी तो चला जायेगा। इसलिए काम नहीं लेते।”
सात-आठ घण्टे के सफर में वो काफी घुलमिल गए। हमारा गंतव्य आया, पूरा परिवार नीचे तक छोड़ने आये साथ में माँ भी थी उनका बेटा -बेटी सामान माँ को हाथ थामकर उतारने में काफी सहयोग दिए। उन दिनों बड़ी लाइन की ट्रेनें चलने लगी थी किन्तु प्लेटफार्म छोटी लाइन के ही थे। चढ़ने उतरने में काफी तकलीफ़ होती थी।
शायद भावनाओं का कोई हिसाब -किताब नहीं होता होगा, चन्द घण्टों की मुलाकात में ही जो बेटा उनका बेटी बना बैठा था मेहमान की तरह, पूरी शिद्दत से हमें मदद करता रहा। – फेसबुक वाल से साभार