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जीवन की कसौटी पर सौ फ़ीसदी खरी नारी शक्ति पर बात-बात में दोषारोपण क्यों

वो सशक्त है… तुम्हारे लाख तंज कसने और चारित्रिक छीछालेदारी करने पर भी वो बखूबी सर ऊँचा कर जीना जानती है

Dec 07, 2016 / 03:05 pm

सुनील शर्मा

what happens to a girls body in younger age

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– डॉ. विमलेश शर्मा

वो सशक्त है… तुम्हारे लाख तंज कसने और चारित्रिक छीछालेदारी करने पर भी वो बखूबी सर ऊँचा कर जीना जानती है। तुम्हारी मानसिकता में खोट है क्योंकि तुम उसकी सार्वजनिक उपस्थिति से घबराते हो, ठीक इसीलिए तुम उसके चरित्र पर सीधा हमला करते हो। स्थितियाँ जो लिख रही हूँ, सच है, तल्ख़ यथार्थ!

हमला करने वाला यह पुरूष वर्ग भूल जाता है कि वह भलीभाँति जानती है, वह वही सीता रही है जिसे राम जैसे तथाकथित आदर्श ने भी अस्वीकार कर दिया था तो तुम्हारा चरित्र तो छलनी के छेदों से भी अधिक छलनी है। वह जानती है कि सीता जैसी अग्निपरीक्षा जग में अब तक जारी है और पूर्ण विश्वास भी कि यह अभी कई दशकों (?) तक जारी रहेगा। सनद रहे अब वो खारिज़ करती है तुम्हारी तमाम कसौटियों को। अपनी बौद्धिकता से वो तुम्हारी हमकदम, एक साथी के रूप में बनती है परन्तु तुम अपनी ईर्ष्या और अहं से उसे दोयम ठहराते हो।

कितनी तुच्छ सोच है ना कि समाज स्त्री को पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर अलग-अलग ट्रीटमेंट देता है। खुशी है कि अब उसमें इतनी समझ है कि वह तुम्हारे द्वारा घोषित घर की स्त्री और पराई स्त्री के इस फर्क को बखूबी जानती है। वो धरा है, वो राधा है, वो सृष्टि के पोर-पोर में रमकर फिर-फिर उगना और यूँ सृष्टि को सिरजना जानती है और यूँ वो स्वयं सृष्टि है। वो समंदर की तरह बेमाप है जो तुम्हें आगोश में लेकर बेसुध कर सकता है तो थाम कर दे सकता है अनिर्वचनीय आनंद भी। वो आधुनिका है, परंपरागत बेचारी औरत नहीं। वो परम्पराओं को जीना जानती है, परम्पराएँ उसके कदमों पर झुकती है। दोष तुम्हारी नज़र का है, तुम भले ही उसके सवालों पर प्रश्न चिन्ह लगाओ पर जान लो वो कमजोर कतई नहीं..

देह के इर्द-गिर्द नज़रें तुम्हारी ही भटकती है, स्त्री तो सही मायने में जीवन की कसौटी पर सौ फ़ीसदी खरी उतरने वाली नायिका है।

लिखना होगा अनवरत यूँही, इन्हीं मुद्दों को क्योंकि हालात अभी भी विषम है।

– लेखिका युवा कवि एवं साहित्यकार है

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