अब चीन कई मसलों पर मलेशिया में भी बिखरा हुआ नजर आएगा। इसकी चेतावनी बीआरआई को लेकर संशय लगाने वालों ने पहले ही दे दी थी कि एशियाई देशों में इस तरह की चीजें देखने को मिलती हैं। मलेशिया एकमात्र बहुचर्चित उदाहरण है। म्यांमार के योजना एवं वित्त मंत्री सोइ विन कहते हैं कि सरकार बंगाल की खाड़ी में नया बंदरगाह चाहती है। चीन के लिए ये बंदरगाह महत्वपूर्ण है। इससे हिंद महासागर से दक्षिणी चीन तक तेल पहुंचाना आसान हो जाएगा। हालांकि इसके लिए कई नीतियों को दरकिनार किया जाएगा लेकिन म्यांमार को पता है कि उसके ऊपर चीन का 40 फीसदी कर्ज है। इसी कारण सोइ संभलकर बोल रहे हैं।
पाकिस्तान ने भी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सी-पेक) प्रोजेक्ट को अधर में डाल दिया है। पाकिस्तान ने पिछले साल चीन से करीब 400 करोड़ रुपए का कर्ज लिया है। अब पाकिस्तान ने चीन को धमकी दी है कि चीन उसे कर्ज देता रहे नहीं तो वह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से फंड की गुहार लगाएगा। वह उन सभी शर्तों को भी बता देगा कि किस आधार पर चीन ने इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाने की बात स्वीकारी थी। अनुमान है चीन को भरपाई करनी होगी। चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की राह आसान नहीं है। इस प्रकरण का वैश्विक स्तर पर असर होगा। जिससे राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति बनेगी क्योंकि चीन लगातार निजी क्षेत्र जैसा बर्ताव कर रहा है।
मालूम हो कि चीनी मदद का हर्जाना श्रीलंका की एक सरकार को अपनी सत्ता खोकर चुकाना पड़ा था। श्रीलंकाई सरकार को 1100 करोड़ रुपए की धनराशि चीन को ब्याज के तौर पर देनी पड़ती थी जो वहां वसूले जाने वाले कर के बराबर थी। श्रीलंका को कर्ज के बदले खाली पड़े हंबनटोटा बंदरगाह को का कुछ हिस्सा चीन को देने की नौबत आ गई थी। इस समझौते के बाद से भारत डर गया था कि चीन उसकी सीमा से महज बीस किमी. दूर स्थित बंदरगाह के पास आ गया है।
(वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत)