एक आंकड़े के अनुसार हाई स्कूल में पढऩे वाले छात्रों में ई-सिगरेट का चलन तेजी से बढ़ा है। एक साल के भीतर इसका आंकड़ा ७५ फीसदी के करीब पहुंच गया है। ई-सिगरेट तेजी से फैलने वाला नशा है जो किशोरों और युवाओं के लिए खतरे की घंटी है। इसे किसी हाल में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। भाप (वेपिंग) के रूप में शरीर में जाने वाला निकोटिन लोगों को नशे की लत का आदी बना रहा है। कुछ मामलों में इसका अधिक इस्तेमाल सिगरेट से भी अधिक खतरनाक है। ई-सिगरेट का मकसद धूम्रपान करने वाले लोगों को नशे की लत से आजादी दिलाने का था। हकीकत ये है कि पूरे अमरीका में अभी भी सिगरेट पीने से पांच लाख से अधिक लोगों की मौत हर साल हो रही है, जबकि दुनिया में ये आंकड़ा करोड़ों में पहुंच गया है।
एफडीए को उम्मीद है कि तंबाकू उत्पादों का निर्माण करने वाली कंपनियां सिगरेट में निकोटिन की मात्रा अपने स्तर से कम करेंगी जिससे लोगों को सिगरेट की लत छोडऩे में आसानी होगी। इसके बाद भी लत नहीं छोड़ पाते हैं तो ई-सिगरेट, निकोटिन गम्स का इस्तेमाल डॉक्टरी सलाह पर ही करें। तंबाकू उत्पादों का निर्माण करने वाली कंपनियां ऐसा करती हैं तो एफडीए लोगों को स्वस्थ रखने के लिए एक बड़ी जंग जीत लेगा। इससे भविष्य में लाखों लोग कैंसर जैसी कई जानलेवा बीमारियों से बच सकेंगे।
एफडीए ने ई-सिगरेट बनाने वाली कंपनियों से कहा है कि वे ई- सिगरेट के इस्तेमाल से बचाने के लिए रणनीति बनाएं या इसे बेचना बंद करें जब तक जांच पूरी नहीं होती है। बच्चों को ई-सिगरेट बेचने वाले 1100 दुकानदारों को चेतावनी पत्र भी दिया चुका है। विशेषज्ञों ने जांच में पाया है कि निकोटिन दिमाग को नुकसान पहुंचाता है। ई-सिगरेट में केमिकल्स के रूप में तरल पदार्थ होता है जिससे सेहत संबंधी अन्य समस्याएं होती हंै। ये भी मानना है कि कश लगाने से दूसरे तंबाकू उत्पादों की लत लग जाती है।