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कश्मीर पर जहर उगलने वाले तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन की कुर्सी खतरे में

विपक्षी पार्टियों ने एक बैठक में कहा कि इस नए गठबंधन को और व्यापक करने से उन्हें वर्ष 2019 के स्थानीय चुनावों में एर्दोगन को झटका देने में मदद मिली थी। बैठक में तय किया गया कि साल के अंत तक एक सिद्धांत पर सहमति तक पहुंचने के लिए साप्ताहिक बैठकें की जाएंगी।  

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Ashutosh Pathak

Oct 09, 2021

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नई दिल्ली।

तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयब एर्दोगन की कुर्सी खतरे में दिख रही है। एर्दोगन भारत और खासकर कश्मीर के खिलाफ अक्सर जहर उगलते रहते हैं। एर्दोगन और उनकी पार्टी को सत्ता से हटाने के लिए तुर्की की छह विपक्षी पार्टियां एकजुट हो गई हैं। देश में 2023 में चुनाव होने हैं। मगर चुनाव से पहले ओपिनियन पोल के नतीजे संकेत दे रहे हैं कि सत्तारुढ़ गठबंधन के समर्थन में कमी आई है, जिससे राष्ट्रपति एर्दोगन पर सत्ता छोड़ने का दबाव बढ़ रहा है।

विपक्षी पार्टियों ने एक बैठक में कहा कि इस नए गठबंधन को और व्यापक करने से उन्हें वर्ष 2019 के स्थानीय चुनावों में एर्दोगन को झटका देने में मदद मिली थी। बैठक में तय किया गया कि साल के अंत तक एक सिद्धांत पर सहमति तक पहुंचने के लिए साप्ताहिक बैठकें की जाएंगी।

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राजनीतिक मामलों के जानकार बताते हैं कि तुर्की में विपक्षी दल ऐसा कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं, जो पहले कभी भी नहीं हुआ है. वह पहली बार सरकार का सामना करने के लिए वे एकजुट हो रहे हैं। महंगाई, बेरोजगारी, कोरोना महामारी, जंगलों में लगी आग, बाढ़ और आर्थिक संकट से निपटने जैसे मुद्दों पर एर्दोगान सरकार की काफी आलोचना हुई है। इस कारण उनके समर्थन में भी कमी आई है।

ओपिनियन पोल में एर्दोगन की एके पार्टी को करीब 31-33% वोट के बीच दिखाया गया है, जो 2018 में हुए संसदीय चुनाव की तुलना में काफी कम है। उस दौरान उनकी पार्टी को 42.6% मत मिले थे। एके पार्टी की सहयोगी राष्ट्रवादी एमएचपी पार्टी के वोट प्रतिशत में भी कमी देखी गई है, साल 2018 में इसे 11.1% वोट मिले थे, लेकिन ओपिनियन पोल में पार्टी को 8-9% वोट ही मिलते दिख रहे हैं। अगर ओपिनियन पोल के नतीजे ही चुनावों में भी आते हैं तो एर्दोगान सत्ता में बमुश्किल वापसी कर पाएंगे। आईवाईआई पार्टी के उपाध्यक्ष बहादिर एर्डेम ने कहा कि इन छह पार्टियों के एक साथ आने से लोगों में उम्मीद जगी है।

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तुर्की राष्ट्रपति एर्दोगान पाकिस्तान के करीबी सहयोगी हैं। कश्मीर में आर्टिकल 370 हटने के बाद से लगातार भारत की आलोचना कर चुके हैं। उन्होंने पाकिस्तान की वकालत करते हुए कश्मीर को लेकर भारत के लिए सख्त बयान दिए थे और राज्य का विशेष दर्जा बहाल करने की मांग भी की थी।