फ्रांसीसी मीडिया रिपोर्टों के अनुसार करीमी नासेरी का जन्म 1945 में हुआ था। वे 1988 से 2006 तक हवाई अड्डे के टर्मिनल 1 में रहे। पहले कानूनी चुनौतियों के चलते क्योंकि उनके पास रेजीडेंसी कागजात की कमी थी और बाद में अपनी पसंद से। रिपोर्ट के अनुसार नासेरी के पिता एक ईरानी डॉक्टर थे। मां स्कॉटलैंड की एक नर्स थीं। वे ब्रैडफोर्ड विश्वविद्यालय में यूगोस्लाव स्टडी में तीन वर्षीय पाठ्यक्रम लेने के लिए सितंबर 1973 में यूनाइटेड किंगडम पहुंचे। नासेरी का दावा था कि ईरान के अंतिम शाह राजा मोहम्मद रजा पहलवी के विरोध के कारण उन्हें ईरान से निष्कासित कर दिया गया था। वे ब्रिटेन (Britain) में बसना चाहते थे लेकिन उनके कागजात खो गए और उन्हें फ्रांस (France) लौटा दिया गया। जहां उन्हें शुरू में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन फिर एयरपोर्ट पर उनका प्रवेश कानूनी होने के कारण रिहा कर दिया गया था और उनके पास लौटने के लिए कोई मूल देश नहीं था; इस तरह टर्मिनल 1 पर रहने का उनका सफर शुरू हुआ।
नासेरी को एयरपोर्ट से 2006 में हटाकर अस्पताल में भर्ती कराया गया और उनके बैठने की जगह को नष्ट कर दिया गया। जनवरी 2007 के अंत में, उन्होंने अस्पताल छोड़ दिया और फ्रेंच रेड क्रॉस की हवाई अड्डे की शाखा द्वारा उनकी देखभाल की गई। उन्हें कुछ हफ्तों के लिए हवाई अड्डे के पास एक होटल में रखा गया था। 6 मार्च 2007 को, एम्मॉस चैरिटी रिसेप्शन-सेंटर में स्थानांतरित कर दिया गया। 2008 तक, वह पेरिस के एक आश्रय में रह रहे थे। हालांकि मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि अपनी मृत्यु से पहले हाल में वे वापस एयरपोर्ट लौट आए थे।
चार्ल्स डी गॉल हवाई अड्डे के टर्मिनल 1 पर अपने 18 साल के लंबे प्रवास के दौरान, नासेरी ने अपना सामान अपने पास रखा और अपना समय पढ़ने, अपनी डायरी में लिखने या अर्थशास्त्र का अध्ययन करने में बिताया। एयरपोर्ट के कर्मचारियों से लेकर यात्री तक उनके भोजन-पानी की व्यवस्था कर देते थे। यहीं बैठे—बैठे उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी जो टर्मिनल मूवी की प्रेरणा बनी। उनकी जिंदगी पर एक और फ्रांसीसी फिल्म टॉम्बस डू सिएल भी बनी थी।