साल 1998 में पाकिस्तान के तब के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने परवेज मुशर्रफ पर भरोषा करते हुए उन्हें पाकिस्तानी आर्मी के प्रमुख की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी, लेकिन जल्द ही परवेज मुशर्रफ की नियति खराब हो गई और लगभग एक साल बाद ही तख्तापलट कर दिया था।
तख्तापलट से पहले तब के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के निमंत्रण पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लाहौर का दौरा किया था, जिसमें द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने की कोशिश की गई थी। लेकिन इसके कुछ हफ्तों बाद तख्तापलट हुआ और पाकिस्तानी सैनिकों ने नियंत्रण रेखा (LOC) के पास गुप्त रूप से घुसपैठ करने की कोशिश की, जो आगे चलकर कारगिल युद्ध में बदल गया। कारगिल युद्ध पाकिस्तान के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ और भारतीय सैनियों के हाथों हताहत होने के बाद पाकिस्तान को अपने सैनिकों को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।
कारगिल युद्ध के ठीक दो साल बाद मुशर्रफ ने जुलाई 2001 में आगरा के ताजमहल शहर में एक शिखर सम्मेलन के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया। बैठक से बड़ी उम्मीदों के बावजूद बाद वार्ता विफल हो गई। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लालकृष्ण आडवाणी जैसे भाजपा नेताओं में मुशर्रफ के बारे में संदेह ने भी इसमें भूमिका निभाई है। इसके बाद मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों की सरकारों ने संपर्क किया। जिसके परिणामस्वरूप कश्मीर मुद्दे को सुलझाने को लेकर पहल हुई,लेकिन यह पहल कभी पूरी नहीं हो सकी।