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अफगानिस्तान में हिंसा और गरीबी का दौर, रोटी के लिए बच्चों को बेच रहे मां-बाप

तालिबान के कब्जे के बाद से अफगानियों की जिंदगी बदतर हो गई है। नौकरी छूटने के बाद अब परिवारों पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। दो वक्त के भोजन की व्यवस्था भी नहीं हो पा रही है। ऐसे में खाने की व्यवस्था करने और कर्ज चुकाने के लिए लोगों को अपने बच्चों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।  

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Ashutosh Pathak

Oct 19, 2021

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नई दिल्ली।

अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार आने के बाद हालात बेहद खराब होते जा रहे हैं। लोग आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। कई परिवारों के सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है।

लोग कर्ज चुकाने के लिए अपने बच्चे बेचने को मजबूर हो रहे है। अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था करीब-करीब पूरी तरह ध्वस्त होने के कगार पर खड़ी है।

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हाल यह है कि तालिबान के कब्जे के बाद से अफगानियों की जिंदगी बदतर हो गई है। नौकरी छूटने के बाद अब परिवारों पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। दो वक्त के भोजन की व्यवस्था भी नहीं हो पा रही है। ऐसे में खाने की व्यवस्था करने और कर्ज चुकाने के लिए लोगों को अपने बच्चों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था करीब करीब ढह चुकी है, तमाम उद्योग धंधे जो पिछले 20 सालों में लगाए गये थे, वह बंद हो गये हैं। ऐसी स्थिति में मजबूर मां-बाप ने अपने बच्चों को बेचना शुरू कर दिया है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान के पश्चिमी शहर हेरात में एक घर की सफाई का काम करने वाली एक महिला ने बताया कि उस पर 40,000 रुपये का कर्ज है। उसने एक व्यक्ति से परिवार के भरण-पोषण के लिए पैसे लिए थे। महिला को कर्जदाता ने कहा कि अगर वह अपनी तीन साल की बेटी को उसे बेच देती है तो वह उसके कर्ज को माफ कर देगा।

हालात यह है कि अफगानिस्तान की मुद्रा दर में लगातार गिरावट हो रही है। वहीं, खाने की सामान्य चीजों की आपूर्ति में भी कमी है, इस वजह से कीमतें काफी महंगी हो गई हैं। इन सब वजहों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान में खाना जल्द ही खत्म हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने दुनियाभर के देशों से अपील की है कि वे अफगान अर्थव्यवस्था में कैश का फ्लो बढ़ाएं, जिससे यह फिर मजबूत हो सके।

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अफगान अर्थव्यवस्था का तीन चौथाई हिस्सा अंतरराष्ट्रीय सहायता पर निर्भर करता है। अफगानिस्तान की मुसीबत इसलिए भी अधिक बढ़ गई है, क्योंकि अमरीका और अन्य देशों में इसकी संपत्तियों को फ्रीज कर दिया गया है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय संगठनों के जरिए मिलने वाली मदद पर भी रोक लगा दी गई है।

अफगानिस्तान में आर्थिक संकट के बेहद घातक परिणाम देखने को मिल रहे हैं। देश की करीब 35 प्रतिशत आबादी 150 रुपये प्रतिदिन से कम खर्च पर रह रही है।

तालिबान के सत्ता संभालने के बाद अफगानिस्तान में आटा, दाल और तेल के कीमत दोगुना से ज्यादा बढ़ चुके हैं। मध्य वर्ग के लोगों को घर का कीमती सामान माटी के मोल बेचना पड़ रहा है। काबुल के बाजारों में लोग अपना टीवी और फ्रीज बेचने के लिए पहुंच रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने चेतावनी दी है कि अफगानिस्तान में मानवीय संकट विकराल हो रहा है और देश के करीब एक करोड़ 80 लाख से ज्यादा लोगों की जिंदगी बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। अब लोगों को पैसे कमाने के लिए अलग अलग उपायों का सहारा लेना पड़ रहा है।