scriptJLF में शामिल हो चुकी कमाल की एनआरआई राइटर है यह महिला, जानिए सक्सेस स्टोरी | Success story of NRI litterateur Divya Mathur living in London | Patrika News
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JLF में शामिल हो चुकी कमाल की एनआरआई राइटर है यह महिला, जानिए सक्सेस स्टोरी

World News in Hindi : भारत से बाहर भी एक भारत है और वह है प्रवासी भारतीयों के दिलों में बसा भारत। प्रवासी भारतीय जिस देश में भी रहते हैं, वे वहां एक लघु भारत बना लेते हैं। इनमें साहित्यकार भी शामिल हैं। ब्रिटेन में रह रहीं ऐसी ही एक प्रतिष्ठित प्रवासी भारतीय साहित्यकार ( NRI Writer) हैं दिव्या माथुर ( Divya Mathur) । पेश है उनसे सीधे यूके से बातचीत पर आधारित उनकी सक्सेस स्टोरी ( Success Story) :
 
 

नई दिल्लीApr 13, 2024 / 04:56 pm

M I Zahir

England.Jpg

England

 

International News In Hindi : नई दिल्ली ( New Delhi) से ताल्लुक रखने वाली विलक्षण प्रवासी भारतीय साहित्यकार वातायन-यूके की संस्थापक हैं दिव्या माथुर (Divya Mathur) । जानते हैं उनकी सक्सेस स्टोरी। वे एक वरिष्ठ और बहु-पुरस्कृत लेखिका और अनुवादक हैं, जिन्हें पिछले दो दशकों के दौरान भारत और ब्रिटेन ( Britain) की सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थाओं की ओर से सम्मानित किया जा चुका है। यहां यह उल्लेखनीय है कि उन्होंने लॉकडाउन के दौरान, वातायन ने 175 से भी अधिक सुन्दर और सार्थक संगोष्ठियों का आयोजन कर एक अप्रतिम रिकॉर्ड क़ायम किया है, यह सिलसिला आज भी जारी है। आज विश्व भर के लेखक, कलाकार और श्रोता इन कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।
Latest NRI News in Hindi : दिव्या माथुर का जन्म 23 मई 1949 में दिल्ली हुआ। वे स्नातकोत्तर (अंग्रेज़ी), आई.टी.आई-दिल्ली से साचिविक-उपाधि पत्र हैं और उन्होंने चिकित्सा-पत्रकारिता दिल्ली में की और ग्लासगो पॉलिटेक्निक्स से चिकित्सा-आशुलिपि का स्वतंत्र अध्ययन किया है। वे दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्वेदिक संस्थान ( New Delhi Aims) में चिकित्सा-आशुलिपिक (1971-1985) रहीं, जहां उन्होंने नेत्र-विज्ञान से संबंधित शब्दावली का अध्ययन किया और अपनी और नेत्र-विशेषज्ञों की सुविधा के लिए मेडिकल-आशुलिपि ईजाद की। वहीं निजी तौर पर नेत्रहीनों/अक्षम मरीज़ों की मदद की, जिन्हें केंद्र में व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाता था। उन्होंने पोषण, नेत्र-रोग, नेत्रहीनता और नेत्र-दान आदि पर अगनित लेख भी लिखे, जो समय समय पर प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में छपे।
Indian Diaspora : वे 1985 में भारत़ीय उच्चायोग-लंदन से जुड़ीं और सन 1992 में डॉ गोपालकृष्ण गांधी के प्रोत्साहन पर उन्होंने नेहरू सेंटर-लन्दन ( Nehru
Centre London) में पुस्तकाध्यक्ष/वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी का पद सम्भाला और उसकी स्थापना में योगदान दिया। उनके उत्कृष्ट योगदान और नवरचना के लिए उन्हें आर्ट्स-कौंसिल आॅफ इंग्लैंड ( Arts Council of England) ने आर्ट्स-अचीवर ( Arts Acheiver) के सम्मान से सुशोभित किया गया। उनका लन्दन के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन मे अपूर्व योगदान रहा है। स्वतंत्र लेखन-अध्ययन और वातायन के कार्यक्रमों के अतिरिक्त आजकल वे हैदर-क्लब फ़ॉर डिमेंशिया (Haider-Club For
dementia) व ‘हर्ट्स विज़न-लॉस (Hurts vision-loss)’ में स्वयंसेविका के रूप में कार्यरत हैं।
Indian Origin : दिव्या माथुर अंतरराष्ट्रीय वातायन कविता संस्था की संस्थापक, रॉयल सोसाइटी ऑफ़ आर्ट्स ( Royal Society of Atrs) की फ़ैलो, ब्रिटिश-लाइब्रेरी ( Brotish Library) की ‘फ़्रेंड’ और आशा फ़ाउंडेशन ( Asha Foundation) की संस्थापक-सदस्य, चारनवुड-आर्ट्स (लफ़बरा) और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एलुमिनाई ( AMU Alumni) की सलाहकार, पेन-फॉउंडेशन ( Pen Foundation) की सहयोगी, अक्षरम संस्था और सर सय्यद फाउंडेशन ( Sir Sayed Foundation) की सदस्य हैं। वे यू.के. हिन्दी समिति की उपाध्यक्ष और कथा-यूके की अध्यक्ष, लंदन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन-2000 की सांस्कृतिक अध्यक्ष रह चुकी हैं।
उन्हें जयपुर लिटरेचर फ़ेस्टिवल ( JLF), विश्व-रंग-भोपाल, कोलंबिया विश्वविद्यालय-न्यूयॉर्क, महात्मा गांधी हिंदी विश्विद्यालय-वर्धा, जैसे अनगिनत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सलनों और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों की ओर से आमंत्रित किया जा चुका है। वे ‘प्रवासी टुडे’ की प्रबंध-सम्पादक और कई महत्वपूर्ण प्रवासी पत्रिकाओं – पुरवाई, विश्व विवेक, अक्षरम – आदि के संपादन-मंडल में भी शामिल रही हैं।
Overseas Indian : दिव्या माथुर सन 2003 में स्थापित, वातायन-यूके, और उसके पूर्व 1985 से वह हिन्दी के प्रचार-प्रसार में 1985 से जुड़ीं हैं। वे भारतीय उच्चायोग-लन्दन के फ्रेडरिक-पिन्कॉट पुरस्कार से सम्मानित की जा चुकी हैं। वातायन संस्था ने पिछले 19 वर्षों में कई ऐतिहासिक कार्यक्रम किए हैं, जिसमें भारत और अन्य देशों के कवियों, लेखकों और प्रकाशकों निदा फ़ाज़ली, प्रसून जोशी, जावेद अख्तर, राजेश रेड्डी, कुंवर बेचैन, अरुण माहेश्वरी, पुष्पिता अवस्थी, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, डॉ मधु चतुर्वेदी, अनिल शर्मा-जोशी और योगेश पटेल आदि को सम्मानित किया जा चुका है।
उपन्यास: तिलिस्म’ और ‘शाम भर बातें’ (दिल्ली विश्विद्यालय के पाठ्यक्रमों में शामिल) हैं और बाल उपन्यास: बिन्नी बुआ का बिल्ला, कहानी संग्रह: कोरोना चिल्ला, मेड-इन-इंडिया, हिंदी@स्वर्ग.इन, 2050, पंगा, आक्रोश, ज़हरमोहरा (उर्दू में) और दि गेम ऑफ़ प्रीटैन्स (अंग्रेज़ी में) ; कविता संग्रह: अंतःसलिला, ख़याल तेरा, रेत का लिखा, 11 सितंबर, चंदन पानी, झूठ, झूठ और झूठ, जीवन हा मृत्यु; बाल कविता संग्रह: सिया-सिया। अँग्रेज़ी से/में संपादन: Odyssey, Aashaa, Desi-Girls, इक सफ़र साथ-साथ, तनाव (दो खंड)।
उनकी पांच बाल-पुस्तकों का काव्यानुवाद हो चुका है। वे उन्हें नेशनल फ़िल्म थिएटर के लिए सत्यजीत रे के फ़िल्म रैट्रो और बीबीसी की ओर से निर्मित कैंसर पर बनी एक डाक्युमेंट्री का रूपांतर कर चुकी हैं। आक्रोश, औडिस्सी व आशा संग्रहों के पेपरबैक संस्करण आ चुके हैं। नेत्रहीनता विषय पर लिखीं उनकी रचनाएं ब्रेल-लिपि में प्रकाशित हो चुकी हैं।


उन्हें ‘नया ज्ञानोदय’ की ओर से ‘पिछले पचास वर्षों की सर्वश्रेष्ठ कहानियों’ और ‘सन्डे-इंडियंस’ की ओर से हिन्दी की 25 बेहतरीन कहानीकारों में शामिल किया जा चुका है। बहुत सी भाषाओं में भी अनूदित और प्रकाशित, उनकी कहानियाँ और कविताएं महत्वपूर्ण संग्रहों में सम्मिलित हैं।

दिव्या माथुर की कहानी अनिल जोशी की ओर से 2050, के नाट्य रूपांतरण, ‘फ्यूचर परफेक्ट – इदम पूर्णम’ की वयम नाट्य संस्था की ओर से अक्षरा थिएटर दिल्ली में प्रस्तुति की गई। पॉल रौबसन की ओर से ‘Tête-à-tête’ और ‘ठुल्ला किलब’ नाटकों का मंचन सफल रहा है। दिल्ली दूरदर्शन ने उनकी कहानी, सांप सीढ़ी, पर एक फ़िल्म बनाई है। डॉ निखिल कौशिक की ओर से उनकी सांस्कृतिक और लेखकीय गतिविधियों पर एक फ़िल्म, घर से घर तक का सफ़र, बनाई गई है, जिसे अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म-उत्सवों में शामिल किया जा चुका है।
दिव्या माथुर वतन की खुशबू के संपादन के अतिरिक्त प्रसिद्ध गायक गायिकाएं राधिका चौपड़ा, रीना भारद्वाज, कविता सेठ और सतनामसिंह दिव्या की ग़ज़लें और गीत गा चुके हैं। कला-संगम की निदेशक डॉ गीता उपाध्याय के नर्तकों की ओर से उनकी कविताओं पर आधारित एक अभूतवपूर्व नाटिका, एक बौनी बूँद, की कार्टराइट म्यूज़ियम-ब्रैडफर्ड में प्रस्तुति की जा चुकी है। उन्हें स्थानीय टीवी, सनराइज़, बीबीसी रेडियो, आकाशवाणी भवन और दिल्ली-दूरदर्शन पर नियमित रूप से आमंत्रित किया जाता रहा है।
वे केंद्रीय हिंदी संस्थान की ओर से पद्मभूषण मोटुरी सत्यनारायण पुरस्कार, आर्टस काउंसिल आॅफ़ इग्लैंड का कला-साधना-सम्मान व प्रथम वनमाली कथा सम्मान से पुरस्कृत हैं। उन्हें दिल्ली के कई महाविद्यालयों सहित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों की ओर से आमंत्रित व सम्मानित किया जा चुका है। इस सूची में कोलंबिया-न्यूयॉर्क, Universidad de Valladolid (स्पेन), कोलंबिया-न्यूयॉर्क, राजस्थान, अंडमान निकोबार, जे.एन.यू-पोर्टब्लेयर, टैगोर-विश्वरंग-भोपाल, इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी अमरकंटक ( Indira Ganhi National Univrsity Amarkantak ), रायपुर, अमृतसर-पंजाब, हरियाणा व कोलकाता इत्यादि शामिल हैं।

ये सम्मान भी मिले

दिव्या माथुर को कथाकार मन्नू भंडारी हिन्दी साधिका सम्मान, उदभव मानव सेवा सांस्कृतिक सम्मान; भारत सम्मान, डॉ हरिवंशराय बच्चन लेखन सम्मान, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म-उत्सव सम्मान, कथा यू.के. पदमानंद साहित्य सम्मान, यू.के हिंदी समिति का संस्कृति सेवा सम्मान, अक्षरम का प्रवासी साहित्य सम्मान, चिन्मय मिशन का वैयक्तिक उत्प्रेरणा और समर्पण सम्मान, पोइम्स-फ़ॉर-दि-वेटिंग रूम-यूके, इंटरनेशनल लाइब्रेरी आॅफ़ पोएट्री-अमरीका के उत्कृष्ट उपलब्धि पुरस्कार, काव्यरंग (नाटिंघम) सम्मान आदि से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा ‘पल्स’, ‘साहित्य-समर्था’ और गृहस्वामिनी’ जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के अंक उन्हें समर्पित हैं। उनका नाम ‘इक्कीसवीं सदी की प्रेरक महिलाएं’, आर्ट्स कॉउंसिल ऑफ़ इंग्लैण्ड की ‘वेटिंग-रूम में कविता’, ‘एशियंस हूज़ हू’, ‘विकिपीडिया’ और ‘सीक्रेट्स ऑफ़ वर्ड्स इंस्पिरेशनल वीमेन’ जैसे ग्रंथों में सम्मलित हैं।
दिव्या की रचनाएं कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल हैं और उनकी कई कृतियों का अध्ययन किया जा रहा है। उनका उपन्यास ‘शाम भर बातें’ दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रावीण्य पाठ्यक्रम में शामिल है। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा-मद्रास के अतुल यादव की ओर से ‘दिव्या माथुर कृत उपन्यास ‘शाम भर बांतों’ में प्रवासी भारतीयों की ज़िंदगी का यथार्थ’ पर एम.फ़िल, उप्साला-विश्वविद्यालय -स्वीडन के मन्ने एकडल की ओर से ‘दिव्या माथुर की कहानियों का विश्लेषण’ व अनुवाद हो चुका है । मुंबई विश्वविद्यालयों के कई छात्रों की ओर से ‘दिव्या माथुर के समग्र साहित्य में संघर्षरत नारी-चित्रण’ व ‘प्रवासी साहित्यकार दिव्या माथुर के साहित्य में मानवीय मूल्य’ और कानपुर विश्वविद्यालय ( Kanpur University) की डॉ अर्चनादेवी की ओर से पीएचडी, गुरुनानक देव विश्वविद्यालय-अमृतसर ( Guru Nanakdev University Amritsar) के कई छात्रों की ओर से एम.फ़िल आदि की जा चुकी हैं।

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