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वाराणसी

दलित उत्पीडन के आरोपी बीएचयू के डीन ने  महिला रीडर को कहा ‘औकात में रहो ‘

दलित उत्पीडन के आरोपी बीएचयू के डीन ने  महिला रीडर को कहा ‘औकात में रहो ‘

वाराणसीJul 08, 2017 / 09:41 pm

Awesh Tiwary

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 वाराणसी। दलित उत्पीडन के मामले में आरोपी बीएचयू कला संकाय के डीन, पत्रकारिता विभाग के प्रभारी और हिंदी के वरिष्‍ठ अध्‍यापक डॉ. कुमार पंकज के मामले की जांच पुलिस ने शुरू कर दी हैं। पत्रकारिता विभाग की रीडर और पूर्व टीवी जर्नलिस्ट डॉ. शोभना नर्लिकर ने आरोप लगाया है कि डॉ. कुमार पंकज ने उनके साथ अपशब्‍दों का इस्‍तेमाल किया है, जातिसूचक गालियां दी हैं और जान से मारने की धमकी दी है।गौरतलब है कि नार्लीकर पिछले डेढ़ दशक से बीएचयू में पढ़ा रही हैं ।

डॉ नार्लीकर का कहना है कि विगत 6 जुलाई को कला संकाय प्रमुख ने मुझे दोपहर 2 बजे अपने कक्ष में बुलाया और उनसे कहा कि ”विगत 14 वर्षों से विभाग का माहौल तुमने गंदा कर रखा है।” डॉ. शोभना ने जब ”हाथ जोड़कर” उनसे कहा कि उनके मुंह से ऐसे शब्‍द ठीक नहीं लगते, तो डॉ. कुमार पंकज ने ”जातिसूचक शब्‍द का प्रयोग करते हुए भद्दी-भद्दी गालियां दी” और ”कहा कि औकात में रहो नहीं तो जान से मरवा दूंगा”। जिस वक्त डॉ कुमार पंकज महिला दलित शिक्षक को यह सब बोल रहे थे उस वक्त वहां डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्र, स्‍वर्ण सुमन और अमिता नामक तीन अध्यापक मौजूद थे इन तीनों ने संकाय प्रमुख के इस व्‍यवहार पर आपत्ति जतायी थी। डॉ. शोभना ने पुलिस से सुरक्षा की मांग भी की है

डॉ शोभना ने एक बातचीत में कहा है कि उनके साथ दलित होने के नाते बहुत लंबे समय से दुर्व्‍यवहार और उत्‍पीड़न चल रहा है। उन्‍होंने बताया कि बीती 23 मई से लगातार डॉ. कुमार पंकज उनकी हाजिरी नहीं लगा रहे थे और रिकॉर्ड में अनुपस्थित दर्शा रहे थे। 6 जुलाई को अपने कक्ष में बुलाकर उन्‍होंने पहले डॉ. शोभना की अनुपस्थिति की बात उठायी जबकि 23 मई को खुद पंकज ने ही उनकी परीक्षा ड्यूटी लगाई थी। वे कहती हैं कि उन्‍होंने दिन भर ड्यूटी की थी, सेमेस्‍टर परीक्षाओं में भी मौजूद रही थीं। डॉ. शोभना ने अपनी ड्यूटी के साक्ष्‍य जैसे ही कुमार पंकज को दिखाए, वे भड़क गए और गाली-गलौज करने लगे।वे कहती हैं, ”जाति के आधार पर गंदी-गंदी गालियां देते रहे।” डॉ. पंकज की रिटायरमेंट को छह माह बचे हैं और बीते दो साल से पत्रकारिता विभाग के भी प्रमुख हैं। वे कहती हैं, ”वे मेरी उपस्थिति का साक्ष्‍य देखकर चिढ़ गए। बोले, तुम्‍हें तो मार ही डालूंगा, जिंदा नहीं रहने दूंगा।” वे बताती हैं दलित होने के कारण उनका प्रमोशन रोक दिया गया है वरना वे इस वक्‍त पत्रकारिता विभाग की अध्‍यक्ष होतीं। 2011 में ही वे रीडर बन गई थीं और 2014 में उनका प्रमोशन लंबित था जिसे रोक दिया गया। 

 डॉ नर्लिकर ने बताया कि उन्‍होंने इस मामले की शिकायत चीफ प्रॉक्‍टर से लिखित तौर पर की थी जिस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। पुलिस ने भी इस मामले में ऍफ़आईआर दर्ज करने से मना कर दिया था ऐसा इसलिए क्योंकि विश्‍वविद्यालय प्रशासन ने पुलिस पर दबाव डालकर उन्हें ऐसा करने से रोका था था। जब डॉ. शोभना ने वाराणसी के एसएसपी को फोन पर अपनी व्‍यथा सुनाई जिसके बाद एसएसपी के आदेश से शनिवार की दोपहर मुकदमा दर्ज हो सका।

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